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बिना किसी डर और घबराहट के पीएम मोदी भी 3 सवालों दें जवाब, राफेल घोटाले में किसने लिया पैसा?: छात्रों से बोले राहुल गांधी

  • by: news desk
  • 09 April, 2021
बिना किसी डर और घबराहट के पीएम मोदी भी 3 सवालों दें जवाब, राफेल घोटाले में किसने लिया पैसा?: छात्रों से बोले राहुल गांधी

नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने छात्रों से कहा कि,''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपसे कहा था कि बिना किसी डर और घबराहट के सवालों के जवाब दें। तो आप लोग कृपया ''प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बिना किसी डर और घबराहट के सवालों का जबाब देने के लिए कहे| राफेल भ्रष्टाचार के बारे पूछे- राफेल भ्रष्टाचार घोटाले में किसने लिया पैसा?..किसने अनुबंध में भ्रष्टाचार विरोधी धारा हटाई?...किसने बिचौलियों को प्रमुख रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज दिए?




कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट किया,''प्रिय छात्रों,

पीएम ने कहा कि बिना किसी डर और घबराहट के सवालों के जवाब दें। कृपया उनसे ऐसे ही जवाब देंने के लिए कहें: 

राफेल भ्रष्टाचार घोटाले में किसने लिया पैसा?

किसने अनुबंध में भ्रष्टाचार विरोधी धारा हटाई?

किसने बिचौलियों को प्रमुख रक्षा मंत्रालय के दस्तावेज दिए?




कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि,'' राफेल के भ्रष्टाचार का खुलासा अब हो चुका है। राफेल में जिस प्रकार से पैसे का आदान-प्रदान हुआ, राफेल घोटाले में जैसे सरकार के खजाने को चूना लगाया गया, राफेल खरीद घोटाले में जिस प्रकार से कीमत बढ़ाकर हजारों-करोड़ रुपए, 21 हजार 75 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान किया गया। ये कोई छोटा-मोटा घोटाला नहीं। अब जो कागज सामने हैं, तथ्य सामने हैं, उनसे एक बात साफ है कि राफेल खरीद में यूरो 2.81 बिलियन डॉलर यानि 21 हजार 75 करोड़ रुपए 2016 के यूरो के रेट के मुताबिक अतिरिक्त पैसे की पेमेंट हुई है। यूरो 2.81 बिलियन यानि 21 हजार 75 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान किया गया है। राफेल घोटाला अब सबके सामने हैं। तो एक बात साफ है, देशवासियों, एक बात साफ है, ये खाते भी हैं, खिलाते भी हैं और पकड़े जाने पर गुर्राते भी हैं। चोरी भी और सीना जोरी भी।




जो सबसे ताजा साक्ष्य और तथ्य अब एक फ्रेंच वेबसाइट के न्यूज पॉर्टल के हवाले से सामने आए हैं, उनसे साफ है कि राफेल खरीद में (massive) , बहुत भयंकर भ्रष्टाचार हुआ, देशद्रोह हुआ। मैं दोबारा दोहराता हूं, देशद्रोह हुआ, देश के हितों से खिलवाड़ हुआ। राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता हुआ और सरकार के खजाने को यूरो 2.81 बिलियन या 2016 के रेट के मुताबिक आज तो वो 39 हजार करोड़ रुपए बनता है, पर 2016 के रेट के मुताबिक 21 हजार 75 करोड़ रुपए का चूना लगाया गया।




प्रधानमंत्री जी और मोदी सरकार को अब देश को जवाब देना चाहिए और केवल 4 बातें तथ्यों पर आधारित, जो सामने हैं, मैं आपके समक्ष रखूगा, देश के समक्ष रखूगा :




पहला: क्या ये सही है कि रक्षा मंत्रालय की नेगोशियेशन टीम, इंडियन नेगोशियेशन टीम जो थी, उनके मुताबिक 36 राफेल लड़ाकू जहाज, पूरी वेपनरी, सिम्युलेटर्स, मेंटेनेंस, इन सबकी कुल मिलाकर लागत केवल 5.6 बिलियन यूरो थी। मैं दोबारा दोहराता हूं, क्या ये सही है कि रक्षा मंत्रालय भारत सरकार के मुताबिक और ये कागज अब जो दलाल से पकड़ा गया है, ईडी का, ये सामने है। पहली बार ये कागज सार्वजनिक पटल पर सामने आया है। 





मैं आपको भी भेज रहा हूं कि क्या रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 36 राफेल लड़ाकू जहाजों, उसके सारे हथियारों, सिम्युलेटर और मेंटेनेंस की कीमत कुल यूरो 5.6 बिलियन निर्धारित की गई थी? क्या ये कागज जो आज तक सार्वजनिक पटल पर नहीं आया था, जो एक दलाल से ईडी ने पकड़ा है और अब एक फ्रेंच वेबसाइट ने इसे जग जाहिर किया है, क्या इसमें ये बात स्पष्ट तौर से नहीं लिखी गई? क्या ये भी सही है कि रक्षा मंत्रालय भारत सरकार के विपरीत दसॉल्ट कंपनी, जो राफेल जहाज बनाने वाली कंपनी है, उसने अपनी इंटर्नल मीटिंग में 20 जनवरी, 2016 को ये निर्णय किया कि वो 36 राफेल जहाज की कीमत 7.87 बिलियन यूरो लगाएंगे?




क्या ये भी सही है कि इंडियन नेगोशियेशन टीम ने दसॉल्ट के इस 7.87 बिलियन यूरो के मूल्य निर्धारण को अगले दिन ही खारिज कर दिया? और क्या ये भी सही है कि भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के द्वारा 7.87 बिलियन डॉलर की दसॉल्ट की 36 लड़ाकू जहाज की कीमत खारिज किए जाने के बाद 23 सितंबर, 2016 को मोदी जी ने और उनकी सरकार ने इन 36 जहाज की कीमत यूरो 7.87 बिलियन डॉलर ही मान ली?तो फिर देश को बताएं कि वो क्विड प्रो क्वो (Quid pro quo) क्या थी, जिसके तहत रक्षा मंत्रालय के द्वारा निर्धारित कीमत को खारिज कर दसॉल्ट द्वारा निर्धारित 7.87 बिलियन डॉलर की कीमत मान कर मोदी जी ने उन्हें 36 जहाज के खरीदने का निर्णय किया?



 क्या कारण है कि यूरो 2.81 बिलियन यानि 21 हजार 75 करोड़ रुपए का अतिरिक्त भुगतान किया गया, क्यों? क्या इससे सीधे-सीधे सरकार के खजाने को चूना नहीं लगा? क्या अब इन साक्ष्यों के सार्वजनिक पटल पर आने के बाद राफेल घोटाले और 21 हजार 75 करोड़ रुपए के प्राईमा फेसी जो साबित होता है, सरकार को चूना लगाने के लिए, इस देश के 130 करोड़ लोगों को चूना लगाने की पूरे मामले की सार्वजनिक जांच नहीं होनी चाहिए?




दूसरा सवाल: क्या ये सही नहीं कि एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट ने 26 मार्च, 2019 को जब राफेल के एक सहयोगी पर रेड़ की, तो उस रेड़ में रक्षा मंत्रालय के सबसे गुप्त कागजात पकड़े गए? क्या ये सही है कि उन कागजात में जो पकड़े गए, उनमें जो रक्षा मंत्रालय ने प्राइस का निर्धारण किया था, 5.6 बिलियन डॉलर का, एक ये कागज था. जो ईडी ने पकड़ा।




दूसरा, कागज जो उन्होंने पकड़ा, वो इंडियन नेगोशियेशन टीम की सिक्रेट मीटिंग की प्रोसीडिंग थी, (एक कागजात दिखाते हुए श्री सुरजेवाला ने कहा) ये वाली, ये ईडी ने उस मिडिल मैन के यहाँ से पकड़ी। तीसरा, जो भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कैलकुलेशन शीट बनाई थी रुपयों की, कि कीमत का आंकलन कैसे होगा, वो भी ईडी ने पकड़ लिया. मिडिल मैन के यहाँ राफेल के और चौथा, जो एक कागज आया था, जिससे यूरो फाइटर ने 20 प्रतिशत भारत सरकार को कीमत कम करने के लिए कहा था, वो कागज भी ईडी ने उस मिडिल मैन के यहाँ से पकड़ लिया, क्या ये सही नहीं? अगर ये सही है, तो क्या ये देशद्रोह नहीं?




क्या ये कागज जो भारत सरकार के सबसे गुप्त कागज हैं, जिनके आधार पर 36 लड़ाकू जहाजों की कीमत का निर्णय होना है, ये कंपनी के दलाल के पास कैसे पहुंच गए, क्यों पहुंच गए, किसने पहुंचा दिए, कैसे पहुंचाए और क्या ये देशद्रोह नहीं? तो फिर देशद्रोह क्या है? और जब 26 मार्च, 2019 से मोदी जी को और मोदी सरकार को ये पता है कि दसॉल्ट कंपनी के मिडिल मैन के पास ये सारे रक्षा मंत्रालय के सबसे गुप्त कागज हैं, तो मोदी जी ने 2 साल से अधिक के दसॉल्ट कंपनी पर जिस राजनैतिक व्यक्ति या आला रक्षा मंत्रालय के अधिकारी ने ये कागजात दिए, उन पर एफआईआर दर्ज कर, गिरफ्तार कर कार्यवाही क्यों नहीं की, क्यों?



तीसरा: क्या ये सही है कि हमारे देश में ये अनिवार्य है, इसे कोई मिटा नहीं सकता, ये अनिवार्य है कि हर रक्षा मसौदे में नो ब्राइबरी, कोई भ्रष्टाचार नहीं, नो इनफुलेंस (influence), कोई असरदारी नहीं, कोई मिडिल मैन, कोई बिचौलिया, दलाल नहीं और कोई कमीशन नहीं और कोई गिफ्ट नहीं, ये शर्त अनिवार्य है। 




डिफेंस प्रिक्योरमेंट प्रोसिजर में ये लिखा है और इसे कोई मिटा नहीं सकता, वो प्रधानमंत्री हो, रक्षा मंत्री हो या कोई और हो, क्या ये सही है? और क्या ये सही नहीं कि जब यूपीए सरकार में 126 लड़ाकू जहाजों की खरीद का टेंडर जारी किया तो एंटी करप्शन क्लोजिस उस टेंडर का हिस्सा थे? क्योंकि ये डिफेंस प्रिक्योरमेंट प्रोसिजर का हिस्सा है, ये अनिवार्य है। और क्या ये सही है कि जब मोदी जी ने ये सब इंटर गवर्मेंटल एग्रीमेंट साइन करने की बात की, तो उस समय भी जुलाई, 2015 में रक्षा मंत्रालय ने आईजीए का हिस्सा एंटी करप्शन क्लोजिस को बनाया था। 




ये वो कागजात हैं, (एक कागजात दिखाते हुए सुरजेवाला ने कहा) जो अब भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय का फ्रांस की एक वेबसाइट पर जारी कर दिया गया है। ये वो कागज है, जिसमें साफ लिखा है कि ये सारी एंटी करप्शन क्लोजिस होंगी, इंटर गवर्मेंटल एग्रीमेंट में और ये क्या ये सही है कि फ्रांस और दसॉल्ट कंपनी ने ये एंटी करप्शन क्लोजिस मानने से इंकार कर दिया था? कहा था इन्हें खारिज कर दिया है, हम पर ना लगाइए। ये वो कागज हैं, जो वेबसाइट पर लगा है, रक्षा मंत्रालय का कागज है, आईजीए ने, जो नेगोशियेशन के। 



ये कागज भी अब सार्वजनिक हो गए हैं। तो क्या ये एंटी करप्शन क्लोज इसलिए हटाई जा रही थी कि बाद में भ्रष्टाचार, दलाली, घूसखोरी, अगर वो सामने आए तो फिर इसकी जिम्मेदारी निर्धारित ना हो? और फिर प्रधानमंत्री, मोदी और मोदी सरकार ने सितंबर, 2016 में इंटर गवर्मेंटल एग्रीमेंट साइन करते हुए इन एंटी करप्शन क्लोजिस को क्यों हटा दिया? जबकि खुद रक्षा मंत्रालय ये कह रहा था कि ये एंटी करप्शन क्लोजिस अनिवार्य हैं और लिखनी होंगी। 




ये कागज मे लिखा है, रक्षा मंत्रालय के कागज अब सार्वजनिक हैं। तो मोदी जी एंटी करप्शन क्लोजिस क्यों हटा रहे थे? जबकि रक्षा मंत्रालय कह रहा था कि रखनी चाहिएं, तो आपने क्यों हटा दी? क्या ये सब इसलिए हटाई गई कि बाद में जब घुसखोरी और दलाली के सबूत सामने आएं, तो कोई कार्यवाही ना की जाए? तो मोदी सरकार ऐसा क्यों कर रही थी? दाल काली है पूरी या दाल में काला है?



चौथा और आखिरी सवाल:  24 जून, 2014 को एक बिचौलिया दसॉल्ट को पत्र लिखकर ये कैसे कह रहा था वो इंडियन पॉलिटिक्ल हाई कमांड से मीटिंग कराएगा और रक्षा मंत्री भी बदला जाएगा? क्या ऐसी कोई मीटिंग हुई और क्या ऐसी मीटिंग के बाद ही 10 अप्रैल, 2015 को मोदी जी ने केले, सेब की तरह 36 राफेल एयरक्राफ्ट खरीदने का निर्णय किया और एचएएल को बदल कर एक प्राइवेंट इंडस्ट्रियलिस्ट को लगा दिया, क्या इसके बाद ही रक्षा मंत्री को बदल दिया गया? एक प्राइवेट व्यक्ति देश के सबसे बड़े रक्षा सौदे में मोदी सरकार के बारे ये क्लेम कैसे कर सकता है? अब भी अगर तफ्तीश का सबूत और साक्ष्य नहीं है, तो फिर कब होगा? मोदी सरकार अब छुप नहीं सकती, उन्हें देश को जवाब देना होगा।






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