कानपुर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को (25 जुलाई, 2022 को) दिवंगत हरमोहन सिंह यादव की 10वीं पुण्यतिथि पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए कानपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया। सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि, "हाल के समय में विचारधारा या राजनीतिक हितों को समाज और देश के हित से भी ऊपर रखने का चलन शुरू हुआ है"| "ये हर एक राजनीतिक पार्टी का दायित्व है कि दल का विरोध, व्यक्ति का विरोध देश के विरोध में न बदले" | विचारधाराओं का अपना स्थान है, और होना चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, तो हो सकती हैं। लेकिन, देश सबसे पहले है, समाज सबसे पहले है।
प्रधानमंत्री ने कहा, ''व्यक्ति से बड़ा दल, दल से बड़ा देश क्योंकि दलों का अस्तित्व लोकतन्त्र की वजह से है, और लोकतन्त्र का अस्तित्व देश की वजह से है। हमारे देश में अधिकांश पार्टियों ने, विशेष रूप से सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने इस विचार को, देश के लिए सहयोग और समन्वय के आदर्श को निभाया भी है।” उन्होंने 1971 के युद्ध, परमाणु परीक्षण और आपातकाल के खिलाफ लड़ाई का उदाहरण देते हुए देश के लिए एक संयुक्त मोर्चा बनाने को लेकर राजनीतिक दलों की भावना को स्पष्ट किया। “आपातकाल के दौरान जब देश के लोकतंत्र को कुचला गया तो सभी प्रमुख पार्टियों ने, हम सबने एक साथ आकर संविधान को बचाने के लिए लड़ाई भी लड़ी।
उन्होंने कहा, "चौधरी हरमोहन सिंह यादव जी भी उस संघर्ष के एक जुझारू सैनिक थे। यानी, हमारे यहां देश और समाज के हित, विचारधाराओं से बड़े रहे हैं।” प्रधानमंत्री ने कहा, “हालांकि, हाल के समय में विचारधारा या राजनीतिक हितों को समाज और देश के हित से भी ऊपर रखने का चलन शुरू हुआ है। कई बार तो सरकार के कामों में विपक्ष के कुछ दल इसलिए अड़ंगे लगाते हैं क्योंकि जब वो सत्ता में थे तो अपने लिए फैसले वो लागू नहीं कर पाए।
”प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देश की जनता को पसंद नहीं है। उन्होंने कहा, “ये हर एक राजनीतिक पार्टी का दायित्व है कि दल का विरोध, व्यक्ति का विरोध देश के विरोध में न बदले। विचारधाराओं का अपना स्थान है, और होना चाहिए। राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हैं, तो हो सकती हैं। लेकिन, देश सबसे पहले है, समाज सबसे पहले है। राष्ट्र प्रथम है।"
प्रधानमंत्री ने डॉ. लोहिया की सांस्कृतिक शक्ति की अवधारणा के बारे में बताया। मोदी ने कहा कि मूल भारतीय चिंतन में समाज, विवाद या बहस का मुद्दा नहीं है और इसे एकता और सामूहिकता के ढांचे के रूप में देखा जाता है। उन्होंने याद करते हुए कहा कि डॉ. लोहिया ने रामायण मेलों का आयोजन और गंगा की देखभाल करके देश की सांस्कृतिक ताकत को मजबूत करने का काम किया। उन्होंने कहा कि भारत नमामि गंगे, समाज के सांस्कृतिक प्रतीकों को पुनर्जीवित करने और अधिकारों को सुनिश्चित करने के साथ कर्तव्य के महत्व पर जोर देने जैसी पहलों से इन सपनों को साकार कर रहा है।
प्रधानमंत्री ने जोर देकर कहा कि समाज की सेवा के लिए ये भी आवश्यक है कि हम सामाजिक न्याय की भावना को स्वीकार करें, उसे अंगीकार करें। उन्होंने कहा कि आज जब देश अपनी आजादी के 75 वर्ष पर अमृत महोत्सव मना रहा है, तो इसे समझना और इस दिशा में आगे बढ़ना बहुत जरूरी है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि सामाजिक न्याय का अर्थ है- समाज के हर वर्ग को समान अवसर मिलें, जीवन की मौलिक जरूरतों से कोई भी वंचित न रहे। दलित, पिछड़ा, आदिवासी, महिलाएं, दिव्यांग, जब आगे आएंगे, तभी देश आगे जाएगा। हरमोहन जी इस बदलाव के लिए शिक्षा को सबसे जरूरी मानते थे। शिक्षा के क्षेत्र में उनका काम प्रेरणादायक है। उन्होंने कहा कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, आदिवासी क्षेत्रों के लिए एकलव्य स्कूल, मातृभाषा में शिक्षा को बढ़ावा देने जैसी पहलों के माध्यम से देश इस रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। उन्होंने कहा, "देश शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण के मंत्र पर आगे बढ़ रहा है और शिक्षा ही सशक्तिकरण है।”