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कृषि कानूनों पर मोदी सरकार ने भेजा 19 पन्नों का प्रस्ताव, किसान संगठन बोले- प्रस्ताव को पढ़ेंगे फिर चर्चा के बाद कोई फैसला लिया जाएगा

  • by: news desk
  • 09 December, 2020
कृषि कानूनों पर मोदी सरकार ने भेजा 19 पन्नों का प्रस्ताव, किसान संगठन बोले- प्रस्ताव को पढ़ेंगे फिर चर्चा के बाद कोई फैसला लिया जाएगा

नई दिल्ली: सरकार ने किसानों को कृषि बिलों में संशोधन का लिखित प्रस्ताव भेज दिया है। केंद्र सरकार ने 19 पन्नों का लिखित प्रस्ताव भेजा है| सिंघु बॉर्डर पर किसान नेताओं को कृषि कानूनों पर भारत सरकार का प्रस्ताव मिला। भारतीय किसान यूनियन के नेता मंजीत सिंह ने कहा,'हम प्रस्ताव को पढ़ेंगे, फिर इस पर चर्चा के बाद कोई फैसला लिया जाएगा। प्रस्ताव लगभग 20 पन्नों का है |किसानों ने सरकार का लिखित प्रस्ताव मीडिया के सामने दिखाया है। पूरा प्रस्ताव हिंदी में लिखा है।



एक किसानों ने बताया है कि उनके पास केंद्र सरकार ने 19 पन्नों का लिखित प्रस्ताव भेजा है जिसमें किसानों की मांग के आधार पर सरकार ने समाधान देने के प्रस्ताव दिया है। इस प्रस्ताव के मिलने के बाद किसानों की बैठक लगातार जारी है। 




सरकार ने किसान आंदोलन समाप्त करने के लिए किसान संगठनों को एक दस सूत्रीय प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव में एमएसपी और मंडी व्यवस्था को और मजबूत बनाने के साथ-साथ पराली जलाने से संबंधित कानून में किसानों के लिए विशेष ढील देने की बात की गई है। साथ ही यह भी कहा गया है कि सरकार कानून में संशोधन करके निजी मंडियों का भी रजिस्ट्रेशन करेगी और उन पर भी सेस और मंडी शुल्क लग सकेगा।


किसानों से फसल खरीदने वाले निजी व्यापारियों और स्टेकहोल्डर्स का रजिस्ट्रेशन से संबंधित कानून राज्य सरकारें भी बना सकेंगी, ऐसा प्रस्ताव केंद्र सरकार ने किसानों को दिया है। इसके साथ ही विवाद की स्थिति में किसान स्थानीय दीवानी न्यायालय में जाकर निजी व्यापारी या कंपनी के खिलाफ मुकदमा भी लड़ सकेंगे।



केंद्र सरकार ने अपने इस प्रस्ताव में किसानों की आशंका को खत्म करने की कोशिश करते हुए कहा है कि कानूनों में कही नहीं लिखा है कि किसानों की जमीन बड़े उद्योगपति कब्जा लेंगे, उसे बंधक बनाया जाएगा या उनकी कुर्की की जाएगी। सरकार ने अपने प्रस्ताव में लिखा है कि कृषि करार अधिनियम के अंतर्गत कृषि भूमि की बिक्री, लीज और मार्टगेज पर किसी प्रकार का करार नहीं हो सकता है। अगर कोई निर्माण होता भी है तो लीज समाप्त हो जाने पर जमीन की मिल्कियत किसानों के पास ही रहेगी।




-सरकार ने किसानों के सबसे बड़े मुद्दे एमएसपी पर कानून लाने की जगह उस पर लिखित में आश्वासन देने की बात कही है।सरकार ने प्रस्ताव में कहा है कि वह बिजली संशोधन बिल 2020 नहीं लाएगी। यह किसानों प्रमुख मांगों में से एक है।


-किसानों की मांग थी कि कृषि कानूनों में किसानों को विवाद के समय कोर्ट जाने का अधिकार नहीं दिया गया है, जो दिया जाना चाहिए। सरकार इस पर राजी हो गई है।


-किसानों डर है कि उनकी भूमि उद्योगपति कब्जा कर लेंगे, जिसका समाधान सरकार ने प्रस्ताव में दिया है।



-किसानों का मुद्दा था कि उसकी भूमि की कुर्की हो सकेगी लेकिन सरकार का कहना है कि किसान की भूमि की कुर्की नहीं की जा सकती।


-सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह राज्य सरकारों को अधिकार देगी ताकि किसानों के हित में फैसला लिया जा सके और व्यापारियों पंजीकरण कराना ही होगा।



-निजी मंडियों के रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था संशोधन के जरिए रखने का प्रस्ताव दिया गया है। किसानों को आपत्ति थी कि नए कानून से स्थापित मंडियां कमजोर होंगी और किसान निजी मंडियों के चंगुल में फंस जाएंगे।


-किसानों मुद्दा उठाया था कि कृषि अनुबंधों के पंजीकरण की व्यवस्था नए कानून में नहीं है। केंद्र ने प्रस्ताव दिया है कि जब तक राज्य सरकारें रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था नहीं करतींं तब तक एसडीएम को लिखित हस्ताक्षरित करार की प्रतिलिपि 30 दिन के भीतर संबंधित एसडीएम को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाएगी।






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