नई दिल्ली: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रवक्ता प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा कि,''एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय की रिसर्च जो हम पिछले कई दिनों से कर रहे हैं, उसकी रिपोर्ट लेकर आया हूं और जो मैं डेटा आपके सामने रखूगा सबूत के साथ, तो मोदी सरकार की डिसइनवेस्टमेंट पॉलिसी की वस्तुस्थिति आप सब लोगों के सामने आ जाएगी। हमने पहले CEL कंपनी के बारे में आप सब लोगों को बताया, तो आज वो कंपनी जो औने-पौने दामों पर सरकार अपने दोस्तों के हवाले कर रही थी, वो रुक गई । हमने कोनकोर का मुद्दा उठाया, तो कोनकोर का डिसइनवेस्टमेंट भी आज रोक दिया गया और आज जो हम कंपनी लेकर आए हैं, जिसको सरकार ने किसे बेचा, क्यों बेचा और क्यों इतने कम में बेचा, उसकी सारी बातें सबूत के साथ आपके सामने रखूगा।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा कि,''कंपनी का नाम है पवन हंस। पवन हंस हेलीकॉप्टर सेवाएं प्रदान करता है देश में और साउथ एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी है, देश की नहीं। दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी है, जिसके पास सबसे ज्यादा हैलीकॉप्टर है, सबसे ज्यादा फ्लाइंग आवर (घंटो) का अनुभव है, सबसे ज्यादा हैलीपैड हैं, जिसका विश्वास है, आज भी हमें केदारनाथ जी, बद्रीनाथ जी, माता वैष्णो देवी जी, अमरनाथ जी की यात्रा करनी होती है, तो ये कंपनी हमें पहुँचाती है, वहाँ तक। हमारे बुजुर्गों को यही कंपनी केदारनाथ जी के मंदिर के सामने पहुंचाती है। उसको कब भारत सरकार ने अपना 51 प्रतिशत हिस्सा बेचने का निर्णय कर लिया और किसको बेच रहे हैं, वो जानकारी दूंगा आपको।
उन्होंने कहा,''मात्र 211 करोड़ रुपए में और किस कंपनी को बेच रहे हैं, कंपनी का नाम स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड है और ये स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड है, जिसका इनकॉर्पोरेशन होता है, 29 अक्टूबर, 2021; 6 महीने पुरानी कंपनी को, जो 6 महीने पहले बनी और ये जो मैं डॉक्यूमेंट है, ये मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर की साइट से लाया हूं। ये कोई सरकारी सोर्स है, कोई निजी सोर्स से डेटा नहीं लाया हं। 6 महीने पुरानी कंपनी को पवन हंस जो कि देश की, मतलब 30-35 साल, 40 साल पुरानी हैलीकॉप्टर कंपनी है, उसको 6 महीने पुरानी कंपनी को भारत सरकार ने अपनी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी, 211 करोड़ में बेचने का निर्णय कर लिया। आपको लग रहा होगा साहब कोई आया ही नहीं होगा। नहीं, दो बिडर और थे और उनकी भी कहानी सुनिए और फिर मैं इस स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड की कहानी आपके सामने रखूगा।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा,''उनकी कहानी सुनिए कि एक बिडर था, उसने बिड किया 181 करोड़। दूसरा बिडर था, जिसने बिड किया 153.15 करोड़ और रिजर्व प्राइस थी 199.92 करोड़। तीन बिडर, दो बिडर करते रहे रिजर्व प्राइस से कम। सिर्फ एक बिडर करता है रिजर्व प्राइस से ज्यादा और वो कंपनी भारत सरकार उस बिडर के हवाले कर देती है। 199.92, लगभग 200 करोड़ रिजर्व प्राइस, रिजर्व प्राइस से मात्र 11 करोड़ और 11 अपने यहाँ बड़ा लक्की, शगुनी नंबर है। तो सरकार ने रिजर्व प्राइस के 11 करोड़ रुपए ज्यादा लेकर अपने 51 प्रतिशत हिस्सेदारी पवन हंस की, जो कि सबसे पुरानी दक्षिण एशिया की हैलीकॉप्टर कंपनी है, वो 6 महीने पुरानी कंपनी के हवाले कर दिया। जिसका नाम है स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड। अब स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड की हकीकत आपको बताता हूं। स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड जो है, इसके तीन एसोशिएट हैं। उन तीनों एसोशियेट की कहानी सुनिए और उनकी जानकारी आपके सामने रख रहा हूं।
प्रो. ने कहा,''पहला एसोशिएट है, जिसका नाम है - बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड। दूसरा एसोशिएट है, उसका नाम है - महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और तीसरा एसोशिएट है, उसका नाम है - अल्मास ग्लोबल ऑपर्युनिटी फंड एसपीसी। तो सबसे पहले अल्मास ग्लोबल ऑपर्युनिटी फंड कहाँ हैं - Cayman Islands में। हिंदुस्तान में नहीं है और Cayman Islands में क्या होता है, मोदी जी 2014 के पहले बता थे कि वहाँ से जो ब्लैक मनी पड़ी है, वो देश में लेकर आएंगे और सबके खाते में 15 लाख रुपए जमा होंगे और आज एक ऐसी कंपनी जो Cayman Islands में है, उसको देश की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी पकड़ा दी। उसका कोई अता-पता नहीं है। चलो साहब एक का नहीं है पता, दूसरे का तो होगा।
दूसरी कंपनी का नाम है - महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड और तीसरी का नाम है बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड। ये बिग चार्टर प्राइवेट लिमिटेड का दिल्ली हाईकोर्ट में हैलीकॉप्टर संबंधित केस चल रहा है। ये मैं नहीं कह रहा, उस केस की डिटेल भी आपको दूंगा।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा,''एक कंपनी, तीन साझेदार थे स्टार9 मोबिलिटी प्राइवेट लिमिटेड के, जो 6 महीने पहले बनी है। एक साझेदार तो है Cayman Islands में है। एक साझेदार जो हिंदुस्तान में है, उसके खिलाफ हैलीकॉप्टर ड्यू से संबंधित केस चल रहा है दिल्ली हाईकोर्ट में और तीसरी कंपनी हैं, जिसका नाम है महाराजा एविएशन प्राइवेट लिमिटेड, उसकी इंटरनेट पर कोई डिटेल नहीं है। पर मैंने उसके फेसबुक पेज पर जाकर डिटेल एकत्रित की है।
उन्होंने कहा,'''फेसबुक पेज पर महाराजा एविएशन कहता है कि हमारे पास तीन हेलीकॉप्टर हैं और फेसबुक पेज पर 4-5 फोटो ही थी, उन 4-5 में से तीन फोटो देश में जो 35 रुपए तेल बिकवाना चाह रहे थे, बाबा रामदेव जी की है। ये मैं नहीं, ये उस कंपनी के फेसबुक पेज से लाया हूं। बाबा रामदेव जी इनके चहेते कस्टमर हैं, क्या है मुझे नहीं पता। पर मैं ये जानता हूं कि ये वही बाबा हैं, जो 35 रुपए प्रति लीटर तेल बिकवाने की बात कर रहे थे 2014 से पहले। इस बात की मेरी गारंटी है, ये इनके चहेते कस्टमर हैं। इनका इनसे क्या रिश्ता है, मुझे नहीं पता, पर 5-7 फोटो में तीन तो बाबा रामदेव जी की हैं, जो मैं आपके सामने रख रहा है।
उन्होंने कहा,''एक आचार्य बालकृष्ण जी हैं, जो बाबा रामदेव की कंपनी के सीईओ हैं। एक हेमा मालिनी जी की है। ये कंपनी क्या करती है, इसकी क्या वेबसाइट है, इसके फेसबुक पेज पर ये बताया गया है कि हमारे पास तीन हेलीकॉप्टर हैं और बाबा से इनका क्या संबंध हैं या तो ये कोरोनील की दवा देते हैं हेलीकॉप्टर में बैठने वालों को या ये अनुलोम-विलोम सिखाते हैं, हैलीकॉप्टर में बैठकर मुझे नहीं पता। इनका इस हैलीकॉप्टर से क्या संबंध हैं, मुझे नहीं पता, पर ये कंपनी बाबा जी को हैलीकॉप्टर में बैठाकर फोटो अपने फेसबुक पेज पर डाल रही हैं।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा,,''तो एक ऐसी कंपनी जो 6 महीने पहले बनी, जिसके तीन में से एक एसोशिएट तो Cayman Islands में बैठा है, दूसरा एसोशिएट का दिल्ली हाईकोर्ट में केस चल रहा है, तीसरा एसोशिएट बाबा जी के साथ अपनी फेसबुक पेज पर फोटो डाल रहा है।
अब इस संबंध में हमारे प्रश्न हैं भारत सरकार से
● पहला, क्यों, ऐसे बिडर जिनके तीन एसोशिएट कंपनी, तीन पार्टनर हैं उस बिडर के तीनों में से किसी की भी आइडेंटिटी आपको वेबसाइट पर नहीं मिलेगी। जो कंपनी 6 महीने पहले बनी, गवर्मेंट ने अपनी सार्वजनिक क्षेत्र की हैलीकॉप्टर कंपनी को 211 करोड़ रुपए मात्र में ऐसे लोगों के हवाले करने का निर्णय क्यों किया?
,''● दूसरा-ऐसा क्या कारण था कि तीन बिडर आते हैं, दो रिजर्व प्राइस से कम करते हैं। एक मात्र 11 करोड़ रुपए रिजर्व प्राइस से ज्यादा देता है और उसको हैलीकॉप्टर कंपनी पकड़ा दी जाती
● तीसरा-ये जो पवन हंस है, इसकी 51 प्रतिशत हिस्सेदारी भारत सरकार के पास है, 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ओएनजीसी के पास है और ओएनजीसी कह रहा है- मैं खरीदना चाहता हूं। क्यों ओएनजीसी को नहीं देकर एक 6 महीने पुरानी कंपनी को दे दिया गया? क्योंकि ओएनजीसी के मूवमेंट पवन हंस के द्वारा होता है और ना केवल ओएनजीसी के, एचएएल के मूवमेंट भी पवन हंस के द्वारा हो रहे हैं, क्यों उन कंपनियों को ये कंपनी नहीं दी गई? और तो और पवन हंस कंपनी के जो कर्मचारी हैं, वो कह रहे हैं, हमें दे दो, हम खरीद लेते हैं, हम चला लेंगे। उनकी यूनियन ने बिड भी की, पर भारत सरकार ने कहा, नहीं, तुम योग्य नहीं हो, 6 महीने पुरानी कंपनी योग्य है, तुम्हें कुछ नहीं आता है। Cayman Islands में जो लोग बैठे हैं, वो योग्य हैं हमारे देश की सबसे पुरानी हैलीकॉप्टर कंपनी चलाने के लिए।
उन्होंने कहा,''फिर एक और इसमें चीज आपके सामने रख रहा हं। मैं पिछले 12 साल का इस कंपनी का प्रॉफिट और रेवेन्यू आपके सामने रख रहा ह। 2017-18 तक ये कंपनी निरंतर प्रॉफिट कर रही थी। 2018-19 में ऐसा क्या हुआ जो प्रॉफिट मेकिंग, और प्रॉफिट भी छोटा-मोटा नहीं 350-400 करोड़ प्रॉफिट था, 2016-17 में 376 करोड़, 2017-18 में वो घटकर हो गया 12 करोड़ और 2018-19 से ये लॉस में आ गई। क्या हुआ, इस दौरान क्या हुआ, वो भी बताता हं। ये लॉस में क्यों आई, वो भी बताता हूं।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा,''इस कंपनी को जानबूझकर लॉस में डाला गया। क्योंकि इस कंपनी को कहा गया कि रोहिणी में एक हैलीपैड बना है। इस कंपनी को कहा गया कि वहाँ पर अपना पैसा लगाओ। वो हैलीपैड की आज क्या स्थिति है, आपको, मुझे दोनों को पता है, वो बंद पड़ा है। इस कंपनी को, प्रॉफिट मेकिंग कंपनी को पहले लॉस में डालो। लॉस में डालकर औने-पौने दाम में बिना ड्यू डिलिजेंस के, बिना प्रॉपर प्रोसेस के पता नहीं किसी के हवाले कर दो, क्या इसको डिसइनवेस्टमेंट कहा जाता है? ये डिसइनवेस्टमेंट नहीं है, इसको फ्रॉड कहा जाता है। ये हिंदुस्तान के लोगों के पसीने की कमाई को औने-पौने दामों में अपने दोस्तों के हवाले करने की प्रक्रिया कहा जाता है। इसको मैं ये कहँगा This is the magic one-o-one tutorial to lower valuation before disinvestment. पहले प्रॉफिट मेकिंग कंपनी को चिन्हित कर लो, फिर उस कंपनी के प्रॉफिट को लॉस में डालो। फिर लॉस में डालकर उसकी वैल्यूएशन को कम करो।
फिर उस कम वैल्यूएशन को औने-पौने दाम में 4-6 महीने पुरानी कंपनी को, जिसका कोई अनुभव नहीं है हैलीकॉप्टर में, उसके हवाले कर दो। क्या ये डिसइनवेस्टमेंट प्रक्रिया है?
उन्होंने कहा,''ये जितनी भी बातें मैंने आपसे कही, इस कंपनी का इनकॉरपोरेशन सर्टिफिकेट, पवन हंस का पिछले 12 साल का रेवेन्यू और नेट प्रॉफिट, 2017-18 तक पवन हंस प्रॉफिट में थी और हैवी प्रॉफिट और ये जो कंपनी है स्टार9 मोबिलिटी, इसमें एक जो पार्टनर है, उस कंपनी के पास तीन हैलीकॉप्टर हैं और वो कपंनी सिर्फ बाबा रामदेव की फोटो डाल रही है। मुझे नही पता ये रिश्ता क्या है इनका।
प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा,''तो हमारी मांग है कि भारत सरकार जो ये डिसइनवेस्टमेंट नहीं फ्रॉड का जो गेम खेल रही है, उनका एक ही कांसेप्ट है| ये भारत सरकार का एक मोटो हो गया है कि एक गलत वित्तीय प्रबंधन करो और औने-पौने दामों में सरकारी कंपनियां अपने दोस्तों के हवाले करो। अगर नहीं हैं, तो ये 6 महीने पुरानी कंपनी को, साउथ एशिया की सबसे बड़ी हैलीकॉप्टर कंपनी भारत सरकार ने क्यों दी, इसका जवाब आज देश का हर व्यक्ति चाहता है।
उन्होंने कहा,''मतलब जिस कंपनी के खिलाफ केस चल रहे हैं, जिसका एक प्रमोटर केमैन आईलैंड में है और तीसरा बाबा रामदेव जी की फोटोज डाल रहा है, जिसको 6 महीने पहले जो कंपनी बनी है, उसको साउथ एशिया की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी, जिसमें 42 हैलिकॉप्टर है, वो कंपनी आपने हवाले कर दी। सारी डिटेल पता है, इस कंपनी का एक साल का प्रॉफिट 376 करोड़ और इस कंपनी को बेच दिया, 211 करोड़ में, ऐसी कंपनी जो 6 महीने पहले बनी है और उस कंपनी के तीन प्रमोटर हैं, एक केमैन आईलैंड में बैठे हैं, दूसरे के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में केस चल रहा है और तीसरे के पास तीन हैलिकॉप्टर हैं और वो बाबा रामदेव जी की फोटोज अपने फेसबुक पेज पर डाल रहे हैं, उनकी वेबसाइट उपलब्ध नहीं है।
जब आपके पास तीन बिडर्स ने बिड लगाई, दो ने रिजर्व प्राइस से कम पैसा लगाया, मात्र एक ने रिजर्व प्राइस से 11 करोड़ रुपए ज्यादा लगाया, आप ऐसे डिसइंवेस्टमेंट को आगे क्यों ले जा रहे हो? ऐसी क्या बाध्यता है?
क्या सरकार ने एक बार भी सोचा कि पवन हंस को ओएनजीसी के हवाले कर दें, क्योंकि 50 प्रतिशत हिस्सेदारी पवन हंस मे ओएनजीसी की है। वो खरीदना भी चाहता था। पवन हंस के एम्पलॉइज कह रहे थे कि हम खरीद लेते हैं और रन कर लेंगे, पर उन्होंने कहा- नहीं, तुम्हें सिर्फ 40 साल का अनुभव हैं, मैं सिर्फ 6 महीने पुरानी कंपनी के हवाले करूँगा ये 42 हैलिकॉप्टर की कंपनी। जिसके पास 42 हैलिकॉप्टर हैं, 10 लाख घंटों से ज्यादा उड़ने का अनुभव है, लाखों लैंडिंग और टेकऑफ का अनुभव है, उस कंपनी को 211 करोड़ रुपए में 6 महीने पुरानी कंपनी के हवाले कर दिया गया।
एक कंपनी जो 2017-18 तक प्रॉफिट देती है, जिसका एक साल का प्रॉफिट उसके पूरे वैल्यूएशन से ज्यादा है और 2018-19 में अचानक से लॉस में आ जाती है और ध्यान रहे, 2018-19 में ही पवन हंस का डिसइंवेस्टमेंट का प्रॉसेस चालू होता है। ऐसी क्या बाध्यता है कि हमारे देश के लोगों की कमाई, हमारे देश के लोगों के अनुभव, हमारे देश के लोगों का परिचालन का प्रबंधन का जो अनुभव है, वो सब मिक्स करके आप
औने-पौने दामों में ऐसे लोगों को भारत की पब्लिक सेक्टर कंपनियाँ दे रहे हो, जिस कंपनी को 10 लाख, वन मिलियन घंटे से ज्यादा का फ्लाइंग एक्सपीरियंस है? जिस कंपनी के पास कई हैलीपोर्टस हैं, जिनके अधिपत्य में हैं, साउथ एशिया की सबसे बड़ी हैलिकॉप्टर कंपनी है, जिस कंपनी के पास 42 हैलिकॉप्टर हैं, जो कंपनी आज भी हमें अगर बद्रीनाथ जी जाना होता है, केदारनाथ जी माता-पिता को लेकर, क्योंकि वो नहीं चढ़ सकते, तो इस पवन हंस के हैलिकॉप्टर में बैठा कर ले जाते हैं, उस कंपनी को आपने 6 माह पुरानी कंपनी के हवाले कर दिया और वो भी एक साल का जो प्रॉफिट है, उससे कम पैसों में उसको दे दिया, ऐसा क्यों, देश ये जानना जाता है?
तो मैंने आपको जितनी भी डिटेल्स बोली हैं, एनेक्सचर-1, जिसको मैं इनकॉर्पोरेशन है; एनेक्सचर-2, जिसमें पवन हंस का पिछले 12 साल का प्रॉफिट और रेवेन्यू और एनेक्सचर3, 35 रुपए प्रति लीटर में तेल देना वाले बाबा जी के साथ जिन्होंने इस कंपनी को खरीदा है, उनके फेसबुक पेज पर इनकी फोटोज हैं, मुझे नहीं पता इनका क्या रिश्ता है?
पवन हंस कंपनी के संदर्भ में पूछे एक प्रश्न के उत्तर में प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा कि अब आपको मैं 2016-17 के आंकड़े देता हूँ। ये 2016-17 साल है (एनेक्सचर दिखाते हुए), इसमें इस कंपनी का नेट प्रॉफिट 376 करोड़ है और कंपनी बिक गई 211 करोड़। मतलब एक साल का प्रॉफिट भी इस कंपनी का जिस वैल्यू पर ये बिकी, उससे ज्यादा था। ये मैं नहीं कह रहा, ये डिटेल हैं। अगर मैं पिछले 10 साल का प्रॉफिट जोड़ लूं, 2010-11 से लेकर 2016-17 मतलब, पिछले सात साल का प्रॉफिट जोड़ लूं, तो प्रॉफिट होता है लगभग 1,000 करोड़, सिर्फ 7 साल का प्रोफिट। क्यों? आपने बिल्कुल सही है कि ओएनजीसी कह रही है मैं भी तैयार हूं खरीदने के लिए, वो 50 प्रतिशत हिस्सेदारी मेरे पास है, 51 मैं खरीद लेती हूं, बोले नहीं, तुम कैसे खरीद लोगे, Cayman Islands वाले खरीदेंगे, तुम कैसे खरीद लोगे, 6 महीने पुरानी कंपनी खरीदेगी।
क्या ये डिसइनवेस्टमेंट प्रोसेस है? इसको डिसइनवेस्टमेंट प्रोसेस नहीं कहते, इसका वर्ड मैंने इजाद किया है, जो ये वन ओ वन ट्यूटोरियल है डिसइनवेस्टमेंट का धोखा देने का, ये हर बार लागू होता है। आप कंपनी को चिन्हित कर लो, ये क्रोनोलॉजी है। इस कंपनी को चिन्हित कर लिया कि इसका डिसइनवेस्टमेंट करना है, पहले उसको प्रॉफिट से लॉस में लाओ ताकि उसका वैल्यूएशन कम हो, फिर ढूंढो किसको दे सकते हैं। हमने बात आपको CEL की भी बताई थी, एक इलेक्ट्रॉनिक कंपनी एक फर्नीचर बनाने वाले के हवाले कर रहे हैं।
कांग्रेस पार्टी ने जब इसके विरोध में अपने स्वर उठाए तो बंद किया। हमने कोंकर की बात की, कोंकर अडाणी बिना खरीदे ही बोल रहा है कि कोंकर को खरीदना हमारे लिए एक ठंडी हवा का झोंका है और वो भी प्रॉफिट में चल रही है। ये कंपनी भी प्रॉफिट में चल रही थी। प्रॉफिट मेकिंग कंपनियों को आप लोअर वैल्यूएशन करके क्यों औने-पौने दाम में ऐसे लोगों के हवाले करना चाहते हैं, जिनको कोई अनुभव नहीं है उस चीज का, कोई लेना-देना नहीं है उनके उस बिजनेस से, उनके हवाले कर दिया।
Cayman Islands वाले लोगों की कंपनी के हवाले कर दी हैलीकॉप्टर की कंपनी, पता नहीं। इसलिए हम चाहते हैं कि भारत सरकार हमारे चारों सवाल का जवाब दें कि जब तीन ही बिडर थे और दो बिडर ने रिजर्व प्राइस से कम पर बिड की, तो एक बिडर ही आपका बचा और उसने भी रिजर्व प्राइस से मात्र 11 करोड़ से ज्यादा पर बिड की, उसको आपने दक्षिण एशिया की, देश की नहीं, साउथ एशिया की सबसे बड़ी हेलीकॉप्टर कंपनी दे दी? क्यों ये कंपनी ओएनजीसी को नहीं दी जा सकती थी या एम्प्लॉई यूनियन, जो चाहती थी कि हम खरीद कर इसको चला लें, उनको नहीं दी? क्यों ये कंपनी सिर्फ 6 महीने पुरानी इनकॉर्पोरेटेड कंपनी को दे दी गई? क्यों ऐसा हआ कि जब इस कंपनी का डिसइनवेस्टमेंट हआ, उस वक्त से ये कंपनी प्रॉफिट से लॉस में आ गई, ये रिश्ता क्या है? What is this, what is this relationship? और ये 35 रुपए प्रति लीटर वाले बाबा बताएं, मुझे तो नहीं पता आपका रिश्ता क्या है? पर ये कंपनी फेसबुक पर सिर्फ आपके और आपके सीईओ के फैन हैं और एक फोटो उन्होंने हेमा मालिनी जी की भी डाली है, क्या रिश्ता है, मुझे नहीं पता, बताइए?
एक अन्य प्रश्न के उत्तर में प्रो. गौरव वल्लभ ने कहा कि अब ओएनजीसी क्या बोलेगी। वो बोल सकती है, उसको तो आपने गुजरात..., जो स्टेट पेट्रोलियम जीएसपीएल थी, पकड़ा थी। आपने उस जीएसपीएल को बिल्कुल खत्म कर दिया, ओएनजीसी को पकड़ा दी। मैं तो कह रहा हं कि एम्प्लॉई यूनियन कह रही है कि हम तैयार हैं खरीदने को, पैसा देते हैं, तो बोले नहीं तुम नहीं। तुम्हें 40 साल हेलीकॉप्टर चलाने का अनुभव है, हम 6 महीने पुरानी Cayman Islands वालों को देंगे, क्यों? क्या ये डिसइनवेस्टमेंट है? मात्र 211 करोड़ रुपए में 42 हेलीकॉप्टर वाली कंपनी दे दी। मतलब, अगर आप इसकी कैलकुलेशन करें तो 4, 4.5 करोड़ का एक हैलीकॉप्टर, उसके अलावा आपका अनुभव, इसके अलावा आपके हैलीपैड, उसके अलावा आपको जो लाइसेंस हैं, फ्लाइंग लाइसेंस कि बद्रीनाथ जी में ही सिर्फ आप लैंड कर सकते हैं, आपके पास लैंडिंग राइट्स हैं। केदारनाथ जी में आप ही लैंड कर सकते हैं, माता वैष्णो देवी जी में आप ही लैंड कर सकते हैं। उसके अलावा आपकी जितनी सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी हैं, ओएनजीसी हो, बीएसएफ हो, जिनके सुदूर इलाकों में मूवमेंट करना हो, तो सिर्फ आप पर विश्वास है।
एक मिलियन घंटे से ज्यादा फ्लाइंग एक्सपीरियंस बहुत कम हैलीकॉप्टर कंपनियां हैं दुनिया में, जिनके पास एक मिलियन अर्थात् 10 लाख घंटों से ज्यादा का फ्लाइंग अनुभव है। एक लाख से ज्यादा लैंडिंग और टेकऑफ का अनुभव। उस कंपनी को आपने बेच दिया। देश तो सवाल पूछेगा और ये भी जरुर पूछेगा कि एक साल का प्रॉफिट भी आपने जिस-जिस भाव में बेचा, उससे ज्यादा था, ऐसा क्यों किया? ये भी पूछेगा कि ये संयोग है या प्रयोग है कि जैसे ही आपने डिसइनवेस्टमेंट का निर्णय किया, उसी वर्ष से प्रॉफिट मेकिंग कंपनी लॉस में टर्न हो जाती है। ये भी पूछेगा कि इस कंपनी को लॉस में डालने के लिए रोहिणी हैलीपैड जो बना वहाँ पर इस कंपनी से पैसा क्यों लगवाया गया? ये सवालों का जवाब भारत सरकार को देना पड़ेगा और प्रधानमंत्री जी आपको चुप्पी तोड़नी पड़ेगी, देश के इस पुरानी संसाधन युक्त पब्लिक सेक्टर कंपनियों को देश औने-पौने दामों में नहीं बिकने देगा। हमने सीइएल को रुकवाया, हमने कोंकर को रुकवाया और मैं ये वायदा करता हूं कि ये जो तथ्य मैं आपको दूंगा, अगर आप इसे प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे, तो सरकार को ये रोकना पड़ेगा।