बस्ती: बस्ती की रहने वाली बेटी मौत के साए से निकलकर गुरुवार को गोटवा के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. वीके वर्मा की पुत्री सुरभि वर्मा यूक्रेन से घर पहुंची। उसे देख परिजनों को ऐसा लगा जैसे उन्हें कोई बहुत बड़ी निधि मिल गई हो । बेटी को मां-बाप की आंखों से खुशी के आंसू छलक गए| लेकिन जब सुरभि ने अपनी आपबीती सुनाई तो उसे सुनकर भी लोगों का कलेजा कांप गया।
सुरभि वर्मा यूक्रेन से एमबीबीएस कर रही थी। 23 फरवरी की शाम हॉस्टल से निकल कर एयरपोर्ट पहुंचने वाली थी। तभी मैसेज आया कि सारी प्लेन कैंसिल हो गई हैं। वहां से ले जाकर दूतावास के निकट एक स्कूल के बेसमेंट में डाल दिया गया। बताया कि 24 की सुबह से ही बमबारी शुरू हो गई थी। वहां 24 घंटे में छः बच्चों के बीच एक बार एक प्लेट खाना मिलता था। जिसमें एक आदमी को तीन कौर मिलना भी मुश्किल हो जाता था। वहां के दूतावास से गुहार लगाते रहे लेकिन कोई हमारी सुनने वाला नहीं था।
सुरभि ने बताया कि तीन दिन इंतजार के बाद किसी तरह कीव के रेलवे स्टेशन पहुंचे। वहां 13 घंटे रेल में खड़े होकर सफर करने बाद वापस अपने उर्दू ग्रोथ नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी के हॉस्टल आ गए। हॉस्टल इंचार्ज के सहयोग से एक टैंकर में बैठा कर हंगरी बॉर्डर पहुंचाए गए।जहां पहुंचने में 28 घंटे का समय लगा जो सामान्य स्थिति में मुश्किल से 28 मिनट का सफर है। इस दौरान एक-एक पल जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करते बीता।
सुरभि ने कहा कि पहले ही बता दिया गया था कि बाहर निकलने पर हम अपने रिस्क पर जा रहे हैं। हर क्षण युद्ध के सायरन बजते थे,कहीं न कहीं बमबारी होती रहती थी। एक मार्च की सुबह हंगरी में प्रवेश करने के बाद तब जाकर चैन मिला। यूक्रेन के कीव स्थित दूतावास,उसके कर्मचारियों का किसी तरह का सहयोग नहीं मिल पाया|
सुरभि ने बताया कि हंगरी का दूतावास पूरी तरह सक्रिय मिला और हमारे खाने पीने के साथ दिल्ली पहुंचाने की बेहतर व्यवस्था की गई। 2 मार्च की सुबह दिल्ली पहुंच गए। वहां से पांच-पांच की टोली में इनोवा गाड़ी से उनके घर भेजा गया। बताया कि एक सप्ताह का समय बिना कुछ खाए पिये बीता लेकिन न तो कभी भूख का एहसास हुआ और न ही कभी प्यास लगी। बस यही चिंता थी कि हम किसी तरह यूक्रेन की सीमा से बाहर निकल जाएं.