Ram Bahal Chaudhary,Basti
Share

लेखिका पारुल सुनिल त्रिपाठी ने अपनी कविता के माध्यम से किया साझा 'जब ससुराल में बेटी मायके में गुज़रे हुए पलों को याद करती है, पढ़ें ज़रूर..

  • by: news desk
  • 06 April, 2020
लेखिका पारुल सुनिल त्रिपाठी ने अपनी कविता के माध्यम से किया साझा 'जब ससुराल में बेटी मायके में गुज़रे हुए पलों को याद करती है, पढ़ें ज़रूर..

लखनऊ:  पारुल सुनिल त्रिपाठी (लेखिका - लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा है, विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर कविता एवं कहानियों के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करती रहती है)|




विवाह एक ऐसा बंधन होता है, जो रिश्तों को नए पायदान पर ले जाता है। इस बंधन में बंधकर औरत की एक नई जिंदगी की शुरुआत होती है। जिसमें वह एक नए घर में नए रिश्तों के साथ प्रवेश करती है।शादी के बाद उसका ससुराल ही उसका घर होता है। उसके बाद मायका उसके लिए पराया घर हो जाता है। 




लेखिका पारुल सुनिल त्रिपाठी ने अपनी कविता के मध्यम से मां और बेटी के रिश्तो को उन पल को साझा किया हैं जब वह शादी के बाद मायके में गुज़रे हुए पलों को याद करती है। 




पढ़ें---------



मां ने बोला था कि बेटी थी अब तक मेरी तू,मेरी अमानत थी
अब बहू होगी किसी और कि और अमानत भी किसी और कि
ये कह मां ने रो रो कर विदा किया अपनी प्यारी को
पहन सकती थी जो मनचाहे कपड़े , विवश हुई अब साड़ी को।



----------




बेटी के जो सपने थे ,मां के जो अरमान थे
उसके विपरीत हुआ सब कुछ
छीन गई आजादी उसकी, शरारती मिजाज उसका
रहा ना उसके पास अब कुछ।



----------




मां के मना करने पर भी भाग जो घर के बाहर जाती थी
सांस के एक इशारे पर चौकस लांघ न पाती थी
सोचती थी मां बाप ने बड़ी मुश्किल से पढ़ाया है ,नौकरी कर पैसे खूब कमाऊंगी
खुद भी मजे करूंगी और मां-बाप के भी सपने सच कर दिखाऊंगी।



----------



मजबूर हुई शादी को और गई घर किसी और के
समझ ना पाई तौर-तरीके नए दौर के
नौकरी तो दूर घर से निकलने में भी कठिनाई है
क्या करेगी बाहर जाकर तेरे पति कि ईतनी कमाई है
घूंघट सरके अगर  सर से तो संस्कार नहीं तुझमें
यह बहू बनकर तो घर नाश करने आई है
ससुराल के बोल यह बड़े उसे चुभते हैं
खिड़की से झांकती गर बाहर तो दुनिया की चकाचौंध उसे लूभते हैं।



----------



पीड़ा वेदना से उसका मन व्यथित हो जाता है
नारी है इतना सहना ही होगा ,ये कथित हो जाता है
मां बाप को याद कर वो घुट घुट कर रोती है
पति करता चाहे अत्याचार कितना, फिर भी संग खुशी से सोती है।



----------




व्याकुल मन उसका दुनिया देखने को तरसता है
थक गई पर्दे से झांक कर अब बाहर निकलने को जी उसका तड़पता है
मां की लाडली अब घर की जिम्मेदारियां बखूबी निभाती है
प्यार न पाती भरपूर अब लेकिन ताने भरपूर सुन जाती है।



----------



अस्तित्व का एहसास नहीं उसे अपने
तब तक बस वो इतना झेलती है
उसे पता नहीं सच्चाई अब तक की
पुरुष तो है ही बदनाम लेकिन स्त्री भी स्त्री के साथ खेलती है।







आप हमसे यहां भी जुड़ सकते हैं
TVL News

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें : https://www.facebook.com/TVLNews
चैनल सब्सक्राइब करें : https://www.youtube.com/TheViralLines
हमें ट्विटर पर फॉलो करें: https://twitter.com/theViralLines
ईमेल : thevirallines@gmail.com

You may like

स्टे कनेक्टेड

विज्ञापन