लखनऊ: ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने बैठक में समान नागरिक संहिता (UCC ) पर प्रस्ताव पारित कर इसके कार्यान्वयन को "अनावश्यक" माना और साथ ही इस बात पर जोर दिया गया कि 1991 के पूजा स्थल अधिनियम को "बनाए रखा और अच्छी तरह से लागू" किया जाना चाहिए। इस में धर्मांतरण के मुद्दे पर धर्म की स्वतंत्रता पर भी जोर दिया है। ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एग्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग नदवतुल उलमा लखनऊ में बोर्ड के अध्यक्ष मौलाना सै० राबे हसनी नदवी की अध्यक्षता में हुई। जिसमें देश भर से सदस्यों ने शिरकत की। इस अवसर पर बहुत से बिन्दुओं पर विस्तार से चर्चा हुई जिनमें युनिफार्म सिविल कोड, और देश के विभिन्न अदालतों में चल रहे मुस्लिम पर्सनल लॉ से सम्बन्धित मुकद्दमात का जायजा लिया गया।
बोर्ड ने कहा कि यह बैठक महसूस करती है कि देश में नफरत का जहर घोला जा रहा है जो देश के लिए नुकसानदेह है! स्वतन्त्रतासंग्राम और संविधान के बनाने वालों ने इस देश के लिए जो रास्ता तय किया था यह उसके बिलकुल खिलाफ है।
यहाँ सदियों से हर धर्म के मानने वाले, विभिन्न जबानों और सभ्यतों से सम्बन्ध रखने वालों ने देश की खिदमत की है और देश को आगे बढ़ाने में बराबर का हिस्सा लिया है। अगर यह भाई चारा खत्म हो गया तो देश का बड़ा नुकसान होगा। इस लिए कि यह बैठक हुकूमत, मजहबी रहनुमाओं, दानिश्वरों, कानून दानों, सियासी रहनुमाओं और मीडिया के लोगों से अपील करता है कि नफरत की इस आग को बुझाने की कोशिश करें।
ऑल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि हमारे संविधान में इस अधिकार को स्वीकार्य किया गया है और हर नागरिक को किसी धर्म को अपनाने और धर्म का प्रचार करने की पूरी आजादी दी गयी है लेकिन वर्तमान में कुछ प्रदेशों में ऐसे कानून लाये गए हैं जो नागरिकों को इस अधिकार से वंचित करने की कोशिश है जो कि निन्दनीय है। यह बैठक मुसलमानों से अपील करती है कि अधिक से अधिक अपने शैक्षिक संस्थान कायम करें जहाँ पर मार्डन शिक्षा के साथ साथ अपनी सभ्यता और कलचर की सुरक्षा को भी यकीनी बनाया जा सके।
सभी को अपनी पहचान के साथ जीने की आजादी होनी चाहिए: रहमानी
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने कहा कि,'' समान नागरिक संहिता को लागू नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि भारत में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग हैं। सभी को अपनी पहचान के साथ जीने की आजादी होनी चाहिए|
असम में, बाल विवाह कार्रवाई पर मौलाना खालिद सैफुल्ला रहमानी ने कहा कि,''असम में, लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है क्योंकि सालों पहले उन्होंने 18 साल से कम उम्र की महिलाओं से शादी की थी। यह मामला हरियाणा और पंजाब से पहले ही सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका था, इसलिए फैसला आने तक असम सरकार को कोई कार्रवाई नहीं करनी चाहिए|
बता दें कि, असम में बाल विवाह के खिलाफ जारी व्यापक मुहिम में शनिवार तक राज्य भर में 4,074 प्राथमिकी दर्ज़ की गई और 2,258 लोगों को गिरफ्तार किया गया है| गिरफ़्तार व्यक्तियों की संख्या अभी और बढ़ेगी| राज्य सरकार के अनुसार, 14 वर्ष से कम आयु की लड़कियों से शादी करने वालों के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और जिन्होंने 14-18 वर्ष आयु वर्ग की लड़कियों से शादी की है उनके खिलाफ बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत मामले दर्ज किए जाएंगे|