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सत्ता की कायरता हार गई, देश के अन्नदाता जीत गए; पर आंदोलन ख़त्म हुआ है, संघर्ष नहीं: रणदीप सिंह सुरजेवाला

  • by: news desk
  • 09 December, 2021
सत्ता की कायरता हार गई, देश के अन्नदाता जीत गए; पर आंदोलन ख़त्म हुआ है, संघर्ष नहीं: रणदीप सिंह सुरजेवाला

नई दिल्ली : संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने 378 दिनों के बाद किसान आंदोलन (Farmers Protest) को खत्म करने का ऐलान कर दिया है| 11 दिसंबर को किसान आंदोलन स्थल खाली करगे| 378 दिनों के बाद किसानों द्वारा आंदोलन समाप्त करने पर कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा,'' आज सत्ता की कायरता हार गई और देश के अन्नदाता, भाग्य विधाता किसान जीत गए! पर आंदोलन ख़त्म हुआ है, संघर्ष नहीं।  सुरजेवाला ने कहा,','''इतिहास साक्षी है कि अहंकार हमेशा हारता है। चाहे वो इतिहास के पन्नों में अंकित रावण का अहंकार हो या बहुमत के नशे में झूमती मोदी सरकार का। आज सत्ता की कायरता हार गई और देश के अन्नदाता, भाग्य विधाता किसान जीत गए! पर आंदोलन ख़त्म हुआ है, संघर्ष नहीं।



भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता व महासचिव रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा,'इतिहास साक्षी है कि अहंकार हमेशा हारता है। चाहे वो इतिहास के पन्नों में अंकित रावण का अहंकार हो, या प्रचंड बहुमत की मोदी सरकार का। 



सुरजेवाला ने कहा,''दिल्ली की सीमाओं पर 378 दिनों के सतत संघर्ष के बाद देश के अन्नदाताओं को मिली विजय के लिए करोड़ों किसानों व खेत मजदूरों को हार्दिक बधाई। किसान आंदोलन ने महात्मा गांधी जी के सिद्धांत को अक्षरशः सही सिद्ध किया है कि, "जनतंत्र की असली शक्ति जनता में निहित है।" 



समकालीन विश्व इतिहास में ऐसा अनुशासित, मर्यादित और मुद्दों पर आधारित आंदोलन देखने में नहीं आया। किसान संगठनों का नेतृत्व भी बधाई और साधुवाद का पात्र है। 



आज भारत के प्रजातंत्र ने समूचे विश्व को ये पाठ पढ़ाया है कि अगर मुट्ठीभर पूँजीपतियों के सहयोग से सत्ता हासिल भी कर लोगे तो भी उसके संचालन के सूत्र जनता के हाथ ही में रहते हैं। मोदी सरकार की सदन की असंवैधानिक मनमानियों को सड़क पर कैसे ठीक किया जाता है आज ये पाठ किसानों के आंदोलन ने देश को पढ़ाया है। 



आज हम कह सकते हैं कि प्रजातंत्र के नए युग की शुरुआत हुई है और मोदी सरकार की हार में ही "जनहित" की जीत है। पर लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई। यह एक बड़े संघर्ष की शुरुआत है। यह संघर्ष है :



1. किसानों को उपज का केवल "न्यूनतम समर्थन मूल्य" नहीं, बल्कि “लाभकारी मूल्य" दिलाने का।

2. आज साल 2022 शुरू होने में मात्र 20 दिन शेष हैं, इसीलिए किसान की आय साल 2022 तक दोगुनी
करने का वादा निभवाने का। 


मोदी जी सत्ता में आए और वोट हथियाए किसान की आय 2022 तक दोगुनी करने के वादे के साथ। पर भारत सरकार के एनएसओ के मुताबिक किसान की औसत आय तो ₹27 प्रतिदिन है, जो मनरेगा की मजदूरी से भी कम है। सवाल तो पूछना ही होगा।



 3. किसान-खेत मजदूर को जानलेवा कर्ज मुक्ति के बंधन से आजाद करवाने का।

आज जब भारत सरकार का एनएसओ यह कहता है कि देश के हर किसान पर औसत 172,000 का कर्ज है और मोदी सरकार यह कहती है कि किसान की कर्जमाफी के लिए उसके पास फूटी कौड़ी नहीं, तो यह सोचने का वक्त है कि फिर पूंजीपति मित्रों के सात साल में ₹10 लाख करोड़ माफ कैसे कर दिए? यह सवाल तो पूछना ही होगी। 



4. किसान को ₹6,000 प्रति हेक्टेयर का सालाना जुमला दिया और उसकी जेब से 25,000 रु. प्रति हेक्टेयर सालाना निकाल लिया। डीज़ल पर एक्साईज़ शुल्क कांग्रेस के शासन में ₹3.56 प्रति लीटर से ₹21.80 प्रति लीटर बढ़ाकर | खाद पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाकर । कीटनाशक दवाई पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगाकर। ट्रैक्टर और खेती के उपकरणों पर 12 प्रतिशत जीएसटी लगाकर। खेती पर इतना टैक्स लगाओगे, तो किसान को न्याय कैसे दिलवाओगे।



5. किसानों पर जुल्म ढाने वाले भारत सरकार के गृहमंत्री, अजय मिश्रा टीडी जैसे भाजपाई हुक्मरानों को सजा दिलवाकर। सात सौ शहीद किसानों के परिवारों को मुआवज़ा व रोजगार दिलवाकर और किसानों को आतंकवादी व देशद्रोही बताने वाले अहंकारियों को मुँहतोड़ जवाब दिलवाकर। आज सत्ता की कायरता हार गई और देश के अन्नदाता, भाग्यविधाता किसान जीत गए। पर पूंजीपतियों को पूजने वाली सरकार के खिलाफ गरीबों, मजदूरों व किसानों का संघर्ष नए तरीकों से जारी रहेगा।



https://www.thevirallines.net/india-news-samyukt-kisan-morcha-announced-to-end-the-movement-farmers-will-return-home-on-december-11



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