नई दिल्ली: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ी राहत मिली है। मुख्यमंत्री और उनके करीबियों द्वारा शेल कंपनियों में निवेश और गलत तरीके से माइनिंग लीज लेने के आरोपों से संबंधित जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के योग्य नहीं माना है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राज्य सरकार की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया है | सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर हेमंत सोरेन की भी प्रतिक्रिया आ गई हैं| उन्होंने सोशल मीडिया पर ट्वीट करते हुए लिखा कि सत्यमेव जयते!|
शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उन जनहित याचिकाओं को बरकरार रखा गया था, जिसमें सोरेन के खिलाफ मुखौटा कंपनियों के माध्यम से कथित धन शोधन और सत्ता में रहते हुए खनन पट्टा प्राप्त करने के लिए जांच की मांग की गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने यह आदेश सुरक्षित रखा था।
शेल कंपनियों के जरिए मनी लांड्रिंग के आरोप पर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई पर SC ने रोक लगा दी थी| कोर्ट ने हाईकोर्ट में याचिका के सुनवाई योग्य होने पर फैसला सुरक्षित रख लिया था| कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता या ED सोरेन के खिलाफ पहली नजर में केस स्थापित नहीं कर पाए| कोर्ट ने ED पर बड़े सवाल उठाए और कहा, आपके पास सोरेन के खिलाफ इतने सबूत हैं तो कार्रवाई करिए| पीआईएल याचिकाकर्ता के कंधे पर बंदूक क्यों चला रहे हैं? यदि आपके पास इतने अधिक ठोस सबूत हैं तो आपको कोर्ट के आदेश की आवश्यकता क्यों है? पहली नजर में सामग्री होनी चाहिए|
सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार की ओर से पेश सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने प्रस्तुतियां प्रस्तुत कीं, जिसमें मूल याचिकाकर्ता के संदिग्ध आचरण को प्रदर्शित करना शामिल था, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उच्च न्यायालय ने मामले के मैरिट को कैसे देखा, जिसने इसे विचार करने के लिए कहा था। सोरेन के खिलाफ कोई सबूत नहीं होने के कारण प्रवर्तन निदेशालय ने सीलबंद लिफाफे में सामग्री का उत्पादन कैसे किया।
सोरेन के वकील मुकुल रोहतगी ने प्रस्तुत किया कि कैसे अदालत की संतुष्टि के लिए कोई क्रेडेंशियल नहीं दिखाया गया, कैसे याचिकाकर्ता और उनके वकील ने उनके द्वारा दायर जनहित याचिकाओं को दबा दिया और कैसे इस मामले में उच्च न्यायालय की कोई प्रथम दृष्टया संतुष्टि नहीं थी।