नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के कार्यान्वयन के लिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों पर विचार करने को कहा। जस्टिस सुनीत कुमार की बेंच ने मोदी सरकार को संविधान के अनुच्छेद 44 के तहत पूरे देश में इसे लागू करने का निर्देश दिया है|
दरअसल, हाईकोर्ट (Allahabad HC) की यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान आई है| सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता देश की जरूरत है और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वो नागरिकों के लिए इसे लागू करे और उसके पास इसके लिए विधायी क्षमता है|
हाईकोर्ट ने अपनी सलाह में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर को भी कोट किया है। कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता इस देश की जरुरत है और इसे अनिवार्य रूप से लाए जाने पर विचार करना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा व्यक्त की गई आशंका या भय को देखते हुए इसे सिर्फ स्वैच्छिक नहीं बनाया जा सकता। इस बारे में 75 साल पहले डॉ.बीआर अंबेडकर भी जिक्र कर चुके हैं।
क्या है समान नागरिक संहिता:
संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक के द्वारा राज्यों को कई मुद्दों पर सुझाव दिए गए हैं। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने इस कानून की जरूरत पर बल देते हुए कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 44 में उम्मीद जताई गई है कि राज्य अपने नागरिकों के समान नागरिक संहिता की सुरक्षा करेगा। अनुच्छेद की यह भावना महज उम्मीद बनकर ही नहीं रह जाए। अनुच्छेद 44 राज्य को सही समय पर सभी धर्मों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने का निर्देश देता है।
भारतीय संविधान और यूनिफॉर्म सिविल कोड:
भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में यूनिफॉर्म सिविल कोड (समान नागरिक संहिता) का उल्लेख किया गया है। इस अनुच्छेद में कानून को लेकर नीति निर्देश दिया गया है और कहा गया है कि समान नागरिक संहिता लागू करना हमारा लक्ष्य होगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कई बार सुप्रीम कोर्ट भी केंद्र सरकार को निर्देश दे चुका है।
भारत में क्यों है कि पर्सनल लॉ?:
भारत में अगल-अगल धर्मों के मसलों को सुलझाने के लिए पर्सनल लॉ बनाया है। इस कानून के तहत शादी, तलाक, परिवार जैसे मामले आते हैं। भारत में अधिकतर निजी कानून धर्म के आधार पर तय किए गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं, जबकि मुस्लिम और ईसाई के लिए अपने अलग कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के कानून भारतीय संसद के संविधान पर आधारित हैं।