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'त्वचा से त्वचा संपर्क' के बिना छूना यौन अपराध नहीं' वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, आरोपी को बरी करने पर स्टे

  • by: news desk
  • 27 January, 2021
'त्वचा से त्वचा संपर्क' के बिना छूना यौन अपराध नहीं' वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक, आरोपी को बरी करने पर स्टे

नई दिल्ली: यौन उत्पीड़न को लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी है। यौन उत्पीड़न को लेकर एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के "त्वचा से त्वचा संपर्क" (Skin to Skin Contact) फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगाते हुए हाईकोर्ट से विस्तृत जानकारी मांगी है|



सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के उस ऑर्डर पर स्टे लगा दिया है जिसमें कोर्ट ने अभियुक्त को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि 'त्वचा से त्वचा के संपर्क' में न आने पर छूना यौन हिंसा की श्रेणी में नहीं आता| साथ ही चीफ़ जस्टिस एस.ए बोबडे की बेंच ने दोषी व्यक्ति को एक नोटिस जारी करके दो दिन के भीतर जवाब माँगा है|



सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आरोपियों को बरी करने के फैसले पर रोक लगा दी है| सुप्रीम कोर्ट ने मामले के आरोपी को नोटिस जारी किया है और दो सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में यूथ बार एसोसिएशन आफ इंडिया ने याचिका दाखिल कर चुनौती दी है।



बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने कहा था कि "त्वचा से त्वचा संपर्क" के बिना किसी नाबालिग के कपड़े उतारे बिना उसके वक्षस्थल को छूना यौन हमला नहीं कहा जा सकता। यौन हमले के लिए यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना जरूरी है। इस तरह के कृत्य को बाल यौन अपराध संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत यौन हमले के रूप में नहीं ठहराया जा सकता।



पॉक्सो के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट से बरी किए जाने के मामले में भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने मामले के आरोपियों को नोटिस जारी किया, दो सप्ताह में उनकी प्रतिक्रिया मांगी। 




बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को पारित एक आदेश में कहा कि यौन हमले का कृत्य माने जाने के लिए ‘‘यौन मंशा से त्वचा से त्वचा का संपर्क होना’’ जरूरी है| जस्टिस गनेडीवाला ने अपने फैसले में कहा कि महज छूना भर यौन हमले की परिभाषा में नहीं आता है| जस्टिस गनेडीवाला ने एक सत्र अदालत के फैसले में संशोधन करते हुए ये आदेश दिया| सत्र अदालत ने 12 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न करने के लिए 39 वर्षीय व्यक्ति को तीन साल जेल की सजा सुनाई थी|




अभियोजन पक्ष और नाबालिग पीड़िता की अदालत में गवाही के मुताबिक, दिसंबर 2016 में आरोपी सतीश नागपुर में लड़की को खाने का कोई सामान देने के बहाने अपने घर ले गया|हाई कोर्ट ने अपने फैसले में यह दर्ज किया है कि अपने घर ले जाने पर सतीश ने उसके ब्रेस्ट को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की| 




हाई कोर्ट ने कहा, क्योंकि आरोपी ने लड़की को निर्वस्त्र किए बिना उसके सीने को छूने की कोशिश की, इसलिए इस अपराध को यौन हमला नहीं कहा जा सकता है और यह IPC की धारा 354 के तहत महिला के शील को भंग करने का अपराध है| धारा 354 के तहत जहां न्यूनतम सजा एक साल की कैद है, वहीं POCSO कानून के तहत यौन हमले की न्यूनतम सजा तीन साल कारावास है|







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