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'महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई,' 'मोदी सरकार का नया नारा है, 'हम दो - हमारे दो, जो भी मिले, बेच दो': राजीव शुक्ला का हमला

  • by: news desk
  • 05 March, 2021
'महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई,' 'मोदी सरकार का नया नारा है, 'हम दो - हमारे दो, जो भी मिले, बेच दो': राजीव शुक्ला का हमला

नई दिल्ली:   वरिष्ठ कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि मैं इसलिए प्रेस वार्ता कर रहा हूं, कि मुझे इस सरकार की अर्थव्यवस्था का मॉडल समझ में नहीं आ रहा है। मैं तो इस देश का योजना मंत्री भी रहा, योजना आयोग में, प्लानिंग कमीशन में बैठता था, जहाँ सारे आर्थिक विषय आते थे।लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आ रहा है कि किस आर्थिक मॉडल पर ये सरकार चल रही है? सरकारी खजाने अगर खाली हैं, तो आपने सारे टैक्स बढ़ा-बढ़ाकर हर चीज को महंगा कर दिया। चाहे पेट्रोल-डीजल की कीमतें हों, या दूसरी जरूरी चीजों की कीमतें हों। 





2014 का चुनाव मुझे याद है कि इन्होंने वायदा किया था देश से कि हम 40 रुपए लीटर पेट्रोल और 30 रुपए लीटर डीजल देंगे, अगर भाईयों और बहनों, हमारी सरकार आ गई तो। तो 40 रुपए पर पेट्रोल छोड़ तो दो, 100 रुपए का आंकड़ा पार कर रहा है और डीजल, जो आम आदमी का ईंधन होता था, जिसके जरिए वो अपना टांसपोर्ट. छोटे-मोटे वाहन चलाता था. वो भी पेट्रोल की कीमतों के करीब-करीब पहुंच गया। तो उससे हर चीज महंगी होती है।  तो आज आप देखो पेट्रोल-डीजल, गैस, तीन चीजों को जिसकी आम आदमी को जरुरत पड़ती है, भयानक महंगी है और कांग्रेस ने आज 'इंडिया स्पीक्स' करके इस पर कैंपेन भी चलाया हुआ है, वहाँ पर, क्योंकि उससे हर आदमी, गांव तक आदमी जुड़ा हुआ है। वो सारा महंगा हो रहा है। इसके अतिरिक्त खाने की सारी चीजें महंगी, सरसों का तेल कहाँ पहुंच गया, प्याज की कीमतें कहाँ पहुंच गई।




अगर आप देखते जाओ, एक-एक आईटम, ऐसी कोई चीज नहीं जो सस्ती है और हर चीज पर कर भी बढ़ाते चले जा रहे हैं, उसे महंगा भी करता चले जा रहे हैं। हम आपका एक तर्क समझ सकते हैं कि इसकी जरिए सरकार अपने जो है, खजाने में पैसा ला रही है। जब मैं मिनिस्टर था, योजना आयोग में तो 115 डॉलर में क्रूड ऑयल मिलता था और कुछ दिन 130-140 डॉलर तक भी गया। इनके जमाने में 30 डॉलर पर आ गया और 30 से 60 के बीच में घूमता रहता है। 





मतलब कि ऑलमोस्ट ये मान लो कि आधा और आधे से भी कम कच्चा तेल है पर 100 पर पेट्रोल मिल रहा है और इसके बावजूद जो हमारे जमाने में था तेल का आयात मूल्य, इससे डेढ़ गुना ज्यादा था। मैं उस सरकार में था, तो 68 रुपए में पेट्रोल था, आज 100 के पार हो रहा है और कोई कुछ नहीं बोल रहा है। चाहे जितने हीरो उस समय बोल रहे थे, देश के नायक-खलनायक सब बोल रहे थे, सब चुप बैठे हैं, कोई नहीं बोल रहा है और लोगों की जेब से पैसा चलता चला जा रहा है। इसी तरह दूसरी तमाम जो चीजें हैं, वो सब भी बढ़ती चली जा रही हैं। कोई चीज आज की तारीख में सस्ती नहीं है। महंगाई अपने चरम पर पहुंच गई है। 





अब अगर आप तर्क देते हैं कि हमारे पास पैसा नहीं है, आगे बजट के लिए पैसा है, कमिटमेंट पूरे करने के लिए, उसके लिए पैसा जोड़ रहे हैं, तो फिर आप जो हमारी संपत्तियां हैं, उनको क्यों बेच रहे हैं? अगर जनता से धन ले रहे हो, तो पब्लिक फंड से बनी जो संपत्तियां हैं, उनको बचा कर रखो। एक तरफ तो आप जनता को कोई फायदा नहीं दे रहे हो, उनसे पूरी लूट जारी है।  कर के जरिए आप ले रहे हो और दूसरी तरफ आप जो एसेट बनाए हुए नेहरु जी के जमाने के, वो सारे भी आप बेचने की तैयारी में हो और उसमें जो दुख की बात है, कि सबसे ज्यादा वो एसेट बेचे जा रहे हैं, जो प्रोफिट में पब्लिक सेक्टर हैं। 




क घाटे का पब्लिक सेक्टर एक बार आप बात करें कि इसे हमें डिसइनवेस्ट करना है, ये समझ में आता है कि इसका सही मैनजमेंट नहीं है, इसको सही ढंग से चला नहीं पा रहे हैं और ये घाटे में चल रहा है और उससे देश की जनता का नुकसान हो रहा है, पब्लिक मनी का। तो आप उसकी डिसइनवेस्टमेंट की बात करे। एक बार उस तर्क से लोगों को समझाने की कोशिश कोई कर सकता है, हालांकि बहुत लोग उस पर भी तैयार नहीं होंगे। लेकिन जो प्रॉफिटेबल पब्लिक सेक्टर है, उनको आप क्यों बेचे जा रहे हो?





फिर सरकारों का क्या मतलब है? नोर्थ ब्लॉक, साउथब्लॉक में खड़े दफ्तर में ये भारत सरकार रह जाएगी। अगर सरकार पूरे देश में दिखेगी नहीं, सरकार पूरे देश में कैसे दिखती है। सरकार पूरे देश में दिखती है, ये पब्लिक सेक्टर, जो बड़े - बड़े स्टील प्लांट, बड़े-बड़े जो ओएनजीसी, दुनिया भर के तमाम सरकारी बैंक, इन सबके जरिए सरकार दिखती है ना। देशभर में लोग रहते हैं, सब जगह, कश्मीर से कन्याकुमारी तक। फिर तो आप ये सब खत्म करके, सब प्राईवेट, रेल जाती है,तो आपको लगता है कि हां, सरकार की ट्रेन चली जा रही है। जहाज चलते हैं, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के, तो आपको लगता है कि हां, ये सरकार के जहाज माल ढोने में लगे हुए हैं। 





जगह-जगह एक्सप्लोरेशन होता है तेल का, तो आप कहते हैं कि माईनिंग जो सरकार के लोग करते हैं, माईनिंग डिपार्टमेंट के, तो लगता है कि हां, माईनिंग हो रही है। फिर तो सरकार नोर्थ ब्लॉक और साउथ ब्लॉक ही रह जाएगी बस खाली। दिल्ली के सरकारी दफ्तर सिर्फ भारत सरकार होगी। नीचे परे भारत देश में तो भारत सरकार कहीं नजर आएगी नहीं। सब कुछ आप प्राईवेटाइज करते चले जा रहे हो, सब कुछ आप निजी हाथों में बेचते जा रहे हो। 'मैं देश नहीं झुकने नहीं दूंगा, मैं देश नहीं बिकने दूंगा'। देश में झुकने पर तो चलो बाद में बात करेंगे, बिकने का काम तो चालू हो गया। तो उस वायदे का भी क्या हुआ, कि 'मैं देश नहीं बिकने दूंगा'? तो एक तरफ आप जनता को महंगाई के बोझ से दबा करके पैसा इक्कट्ठा कर रहे हैं और दूसरी तरफ




जो कुछ जनता के पैसे से बना है 70 साल में, वो सब आप बेच दे रहे हो। उसमें भी प्रॉफिटेबल चीजें। तो सरकार को इसे रीकंसिडर करना चाहिए कि जो प्रॉफिटेबल पब्लिक सेक्टर है, उनको ना बेचा जाए, बल्कि उनका मैनजमेंट ठीक किया जाए और उनको और अच्छे ढंग से चलाया जाए। कई ऐसे स्ट्रैटेजिक सेक्टर हैं, जिसमें प्राईवेट कंपनी नहीं आएंगी। उस समय कौन तैयार था, स्टील प्लांट लगाने के लिए, जब नेहरु जी ने लगाए थे, स्टील अथॉर्टी ऑफ इंडिया शुरु किया था? कौन एक्सप्लोरेशन में इतना पैसा डालने के लिए तैयार था, जब ओएनजीसी बनाया गया था और तमाम पब्लिक सेक्टर? तो ऐसे सेक्टर हैं, जहा प्राईवेट सेक्टर ना उतना पैसा लगा सकता है और ना रिस्क लेने को तैयार हैं। प्राईवेट सेक्टर उसी जगह जाएगा जहाँ उसे लगेगा आमदनी हो रही है और यहाँ से वो आमदनी बना सकते हैं। 




एयर इंडिया क्यों नहीं बेच पा रही है सरकार, इतने दिन से, क्यों नहीं आप बेच पा रहे हैं क्योंकि उससे लगता है कि कहीं घाटा ना हो जाए। सब एसेट दिखते हैं कि किसी पब्लिक सेक्टर के साथ कितनी जमीन है, कितने हजार एकड़ जमीन है, कितनी ये है, वो सब देखकर पब्लिक सेक्टर खरीदने के लिए लोग ये करते हैं। इसमें सरकार को बहत सोचना चाहिए और इस चीज को देखना चाहिए कि एक तरफ आप महंगाई बढ़ाकर लोगों की जेब से पैसा ले रहे हो और दसरी तरफ आम जनता के धन से बनाई हई संपत्तियां हैं, उनके खून पसीने से,उनको बेचने का ये सरकार काम कर रही है। अब जो इसमें बेचने वाली बात है, उसमें याद हो कि सोनिया जी ने भी परसों काफी विस्तार से प्रकाश डाला है। 





देश की अर्थव्यवस्था पर मनमोहन सिंह जी ने भी कहा कि पहले तो आपने गलत फैसले लिए, आपने लागू किया, इस देश में नोटबंदी, आप जैसी जीएसटी लाए, पर जैसे जिस ढंग से आपने लॉकडाउन किया, उसकी वजह से अर्थव्यवस्था चौपट हो गई। अब उसकी सजा आप जनता को दे रहे हो, कि उनकी जेब पर भी डाका डाला जा रहा है, उनकी जेब पर महंगाई भी आपने बढ़ा दी और उनके जो एसेट्स हैं, उसे बेच बाचकर आप इस देश में सिर्फ नोर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक बचेगा, कुछ बचेगा ही नहीं। बाकी कहीं कुछ रह नहीं जाएगा, भारत सरकार नाम की चीज नहीं दिखेगी। इस मामले में विस्तार से रिसर्च करके जो हमारे गौरव वल्लभ जी ने तैयार किया है, एक टेक्निकल आस्पेक्ट है इसका कि किस तरह से बेचने का कितना ये नुकसान है, तो मैं गौरव जी से अनुरोध करुंगा कि आप हमारे मित्रों को इस मामले में बताएं। 






प्रो गौरव वल्लभ ने कहा कि हमारे वरिष्ठ नेता और भूतपूर्व यूनियन मिनिस्टर राजीव शुक्ला जी ने संक्षेप में अपनी बात आपको बताई। कुछ टेक्निकल आस्पेक्ट जो इस बात के हैं, वो मैं अभी इनक्ल्यूड (include) करुंगा। मोदी सरकार का नया नारा है, 'हम दो - हमारे दो, जो भी मिले, बेच दो' और सरकार की एक-एक यूएसपी है, चीजों का नाम बदलने की। 




आज मैं इस पटल से उनको अनुरोध करता हूं कि वित्त मंत्रालय के अंतर्गत एक विभाग है दीपम, जो स्ट्रैटेजिक सेल का, डिसइनवेस्टमेंट का एक विभाग है। जिसका फुल फॉर्म है – डिपार्टमेंट ऑफ डिसइनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनजमेंट। मैं उनसे अनुरोध करता हूं कि इसका नाम कर दीजिए डीपीडीएम, दीपम से, डीपीडीएम। डिस्ट्रैस प्राईवेटाइजेशन ड्राइव मैनजमेंट डिपार्टमेंट। 




मैं उनसे ये अनुरोध करता हूं कि जिस तरह से आप डिस्ट्रैस सेल कर रहे हैं और ध्यान रखो मित्रों, ये डिसइनवेस्टमेंट नहीं है, इसे डिस्ट्रैस सेल कहेंगे। क्योंकि डिसइनवेस्टमेंट हमेशा स्ट्रैटेजिक होती है। डिसइनवेस्टमेंट में 100 प्रतिशत चाबी के साथ सारी चीजें किसी व्यक्ति के हवाले नहीं की जाती हैं। ये डिस्ट्रैस सेल प्राईवेटाइजेशन ड्राइव है और ये कौन खरीदेगा ये संपत्तियां, उसको मुझे देश को बताने की जरुरत नहीं है, क्योंकि हमारी सभ्यता में पंच महाभूत हैं - आकाश, अग्नि, पृथ्वी, जल, वायु। पंच महाभूत में जो भी बिके, भले ही वो हवाई अड़े हों, किसने खरीदे, देश जानता है। 




भले ही वो कोल (COAL) की माईन्स हों, यहाँ से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, किसने खरीदी, देश जानता है। भले ही वो आकाश में उड़ने वाले हवाई जहाज की कंपनियां हों, कौन चला रहे हैं, किनके पास मैज्योरिटी शेयर हैं, देश जानता है। भले ही वो शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया है डिसइनवेस्टमेंट किया सरकार ने, कैबिनेट अप्रूवल दे दिया है, वो कौन खरीदेगा, देश जानता है। ये पंच महाभूत जो हैं, वो दो व्यक्तियों के, दो समूह के हवाले करने का काम हो रहा है और इसको समझने के लिए मैं थोड़ा सा आपको एक इकोनॉमिक बैकग्राउंड देता हूं। 




इकोनॉमिक बैकग्राउंड ये है कि कोविड 19 से पहले से ही हमारी इकॉनमी, जीडीपी कंटीन्यूअसली नीचे गिर रही थी। बेरोजगारी की दर 45 साल की, कोविड के पहले की बात बता रहा हूं, कोविड के बाद की नहीं बता रहा हूं, बेरोजगारी दर 45 साल के सर्वोतम स्तर पर पहुंच चुकी थी। आज फरवरी, 2021 का बेरोजगारी दर का आंकड़ा आया, जो 6.9 प्रतिशत है। जो फिर से बढ़ना चालू हो गया है। 




जो तथाकथित लोगों ने और कई मंत्रियों ने कहा 'V' shaped recovery, ये 'V' shaped नहीं है, ये K shaped है। 'K' का अर्थ है, आधे लोग अब ऊपर बढेंगे, वो कौन लोग हैं, चुनिंदा लोग, जो हम ‘दो - हमारे दो, जो भी मिले बेच दो'। जो खरीदेंगे, वो ऊपर बढ़ेंगे, बाकि देश के जो आम लोग हैं, जो 135 करोड़ हिंदुस्तानी हैं, वो 'K' शेप में नीचे जाएंगे। फिर आया बजट, लोगों को बड़ी आशा थी कि बजट में जरुर मध्यम आय वर्गीय लोगों के लिए, जिन लोगों ने अपनी नौकरी खोई है, उनके लिए जरुर ऐसे ठोस उपाय होंगे कि उनकी डिस्पोजेबल इंकम, मतलब कि उनके हाथ में नया पैसा ज्यादा रहेगा। 





क्या एक भी ऐसा बजट में उपाय किया गया, जिसमें मध्यम आय वर्गीय, जिसमें किसान, जिसमें मजदूर के हाथ में एक नया पैसा भी एक्स्ट्रा आ रहा है? हां, बजट में पहले एक घंटे तक क्या उल्लेख हुआ, वो भी बताता हूं। सरकारी बैंकों से लेकर सरकारी बीमा कंपनियों तक, बिजली की लाइनों से लेकर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर तक, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया से लेकर फॉर्मास्यूटिकल कंपनियां, जो पीएसयू में हैं, वहाँ तक, सब जगह से एक ही बात आ रही थी कि बेच दो और टेग लाइन ये थी कि ये पीएसयू सेल लगाई है मोदी सरकार ने और उसकी टेग लाइन ये है कि हमसे सस्ता कहीं नहीं और हमसे अच्छा भी कहीं नहीं, क्योंकि ये 70 साल का, देश के लोगों का पसीना था, उन उपक्रमों को बनाने के लिए। उन टैक्सपेयर का पैसा था, जिन्होंने इस उपक्रम को बनाया। उन पूर्ववर्ती सरकारों का एक विजन था, जिससे वो विजन बने हैं, जिसे आप बेच रहे हो और मैं आपको दो-तीन उपक्रमों का उदाहरण भी दूंगा, जिससे आपको समझ आए कि ये क्रोनोलॉजी क्या है, क्योंकि क्रोनोलॉजी आपको समझनी जरुरी है। फिर इस चीज को आगे बढ़ाते हैं। डिसइनवेस्टमेंट हमेशा किसके लिए होते हैं। डिसइनवेस्टमेंट होते हैं कि कोई नोन स्ट्रैटेजिक एरिया में कोई ऑर्गनाइजेशन है। उसको हम वेल्यू क्रियेट करने के लिए किया जाता है। जबकि 100 प्रतिशत डिस्ट्रैस सेल क्यों किया जा रहा है, क्योंकि सरकार के पास आय के साधन का एक भी नया उपाय नहीं है। 






उसको आप बेच रहे हो, क्योंकि आपके पास कोई साधन ही नहीं है, आपके पास कोई विजन ही नहीं है। हमारी सभ्यता में, जहाँ मेरी परवरिश हुई है, वहाँ हमारे माता-पिता कहते थे बेटा या तो पढ़ लिख ले अच्छे से नौकरी कर ले, या बाप-दादा की संपत्तियां बेच कर अपना काम चलाना। ये वही सरकार है, जिसका कोई रेवेन्यू जनरेशन का विजन नहीं है। जिसका रेवेन्यू का एक ही मॉडल है या तो पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ाओ, जो कि कोई भी कर सकता है। आप क्यों नहीं इनडॉयरेक्ट टैक्स, जीएसटी, डॉयरेक्ट टैक्स से कलेक्ट करते हैं मनी?




 क्योंकि आपने, जैसा राजीव शुक्ला साहब ने बताया कि नोटबंदी के बाद तालाबंदी का जो सफर हुआ, नोटबंदी से लेकर तालाबंदी तक, उसमें आपने ऑर्गनाइज्ड सेक्टर हो या अनऑर्गनाइज्ड सेक्टर. दोनों को खत्म कर दिया, तो आपके पास आय का साधन ही नहीं है। केवल 2 साधन हैं आपके पास, या तो जो भी मिले उसे बेच दें अथवा पेटोल-डीजल पर एक्साइड ड्यूटी बढ़ाते जाओ। 800 प्रतिशत डीजल पर बढ़ा दी, 250 प्रतिशत से ज्यादा पेट्रोल पर बढ़ा दी एक्साइज ड्यूटी, 2014 की तुलना में। अब मैं आपको क्रोनोलॉजी को समझता हूं और 2-3 जरुरी आंकड़े देता हूं। यूपीए 1 और 2 के कार्यकाल में कुल डिसइनवेस्टमेंट से या सेल ऑफ पीएसयू से 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपए एकत्रित हुआ। 1.14 लाख, 10 साल में। मोदी सरकार के पहले साल का कारनामा सुनिए - 2 लाख 80 हजार करोड़ in the first five years of the Modi Government. Last year they can't do anything, because, we were under the pandemic. 




तो मैं आपको सिर्फ 5 साल का ही आंकड़ा दे रहा हूं। 5 साल में 2 लाख 80 हजार करोड़ और 10 साल में कुल 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपए यूपीए -1 और 2 में डिसइनवस्टमेंट। मतलब उस समय भी नई योजनाएं आई थी। मनरेगा उसी समय आया था। उस समय भी रेवेन्यू का संकट था, पर उस समय नेतृत्व कर रहे थे डॉ. मनमोहन सिंह जी। जिनके पास इकोनॉमी को कैसे ठीक रखना है, इकोनॉमी के क्या रेवेन्यू के मॉडल होंगे, क्या फ्यूचर विजन होगा इंडियन इकोनॉमी का। वो उस समय एक्साइज ड्यूटी. तेल पर बढ़ाकर पैसा एकत्र नहीं कर रहे थे। वो पिछले 50 साल में बने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम को बेचकर पैसा एकत्र नहीं कर रहे थे। वो एक लॉग टर्म विजन के साथ चल रहे थे। उस समय भी मिड डे मील के लिए पैसे के लिए जरुरत होती थी, उस समय भी राइट टू फूड के लिए पैसों की जरुरत होती थी। पर उस समय की सरकार ने जो आज का जो रेवेन्यू का मॉडल है, उसको यूज नहीं किया।





फिर आप किनको बेच रहे हो, आपकी योजना क्या है? आप तो जो मिलें प्रोफिट मेकिंग है, बेचो। लॉस मेकिंग है, बेचो। थोड़ा कम प्रोफिट वाला है, बेचो। आपका कोई मॉडल ही नहीं है, ना आपकी कोई सोच है, ना आप इन चीजों के बारे में चर्चा करते हो पार्लियामेंट में आकर। अचानक से लिस्ट आती है। माननीय राजीव शुक्ला जी ने आपको बताया कि अचानक से आज न्यूज आ गई कि अब आप प्रोफिट मेकिंग भी बेच देंगे। कभी बोले लॉस मेकिंग बेचेंगे। आपकी योजना क्या है, आपका लॉग टर्म विजन क्या है और ये पीएसयू 5-6 साल में नहीं बने हैं। इसमें हमारे बाप-दादाओं का पसीना है, हमारे बाप-दादा भी टैक्सपेयर थे, उस समय उनका पैसा लगा हुआ है और उन सरकारों का विजन है, जिन्होंने इन पीएसयू को बनाया है। चलो आपको आगे अब मैं क्रोनोलॉजी समझाता हूं। ये भी समझना जरुरी है कि कैसे बेचते हैं। एलआईसी, भारतीय जीवन बीमा निगम, जिसके ऊपर एक आम हिंदुस्तानी का अटूट विश्वास है, आज भी है। लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन में कौन पैसा लगाता है - एक मध्यम आय वर्गीय व्यक्ति। एक किसान अपने भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए, एक मजदूर अपने बच्चों के भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए, ये विश्वास से पैसा लगाते हैं कि मेरे साथ कुछ अप्रिय घटना हो गई तो लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, भारत सरकार का उपक्रम मेरे पीछे खड़ा रहेगा। अब उसकी भी डिसइनवेस्टमेंट के सेल की परी योजना चल रही है। उसके बारे में एक आंकड़ा देता हं।






कुल 2014 से लेकर 2019 के बीच, लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन मतलब मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में एलआईसी ने जो बीमार इंडस्ट्रियल कंपनियां थी, उसमें 10 लाख 70 हजार करोड़ रुपए का निवेश किया। मतलब आजादी के बाद 2014 तक 10 लाख 70 हजार का निवे किया एलआईसी ने। ये 5 साल में 10 लाख 70 हजार करोड़ का निवेश किया। कुछ तो प्राईवेट बैंक में किया, मुझे बताने की जरुरत नहीं है। यस बैंक में पैसा लगा दिया, क्यों भाई? ये भारत के लोगों ने अपना विश्वास, जिस कंपनी के अंदर अपना पैसा डाला, वो आप उसको इस्तेमाल कर रहे हो प्राईवेट सेक्टर के बैंकों को वापस अपलिफ्ट करने के लिए, उनको जीवित करने के लिए। ये कौन से विकास का मॉडल है?




एक और आंकड़ा सुनिएगा, 2014 तक एलआईसी का एनपीए, जिसको हम डूबता लोन कहते हैं। वो डेढ़ से 2 प्रतिशत से ज्यादा नहीं था। आज कितना है - आज है वो 8.17 प्रतिशत। ये क्रोनोलॉजी समझिए। पहले एक टारगेट दिया जाता है कि अब टारगेट एलआईसी है। पहले उसको कमजोर करो, क्यों कमजोर करो- ताकि वो ओने-पौने दामों में बिक सके और कौन खरीदेंगे, मुझे बताने की जरुरत नहीं है, देश जानता है। तो पहले एक सार्वजनिक सेक्टर की यूनिट को टॉरगेट किया जाता है। उसकी फाइनेंशियल रीढ़ की हड्डी तोड़ी जाती है। उसका पैसा 10 लाख 70 हजार करोड़ 2014 तक जबसे एलआईसी बना है, जबसे 2014 तक 10 लाख 70 हजार करोड़ का निवेश नहीं हुआ, पर 2014 से 19 के बीच हो जाता है। 2014 तक एलआईसी का एनपीए डेढ़ से 2 प्रतिशत से ज्यादा नहीं रहा पर 2014 से 19 के बीच 8.17 प्रतिशत हो जाता है। 



अब उसको, क्यों हुआ ये,//क्योंकि ये क्रोनोलॉजी है, इसको पहले कमजोर करो, इसका वेल्यूवेशन कम करो और फिर इसको डिस्ट्रैस सेल करो। ये मॉडल देश के लिए हितकारी नहीं हो सकता है। माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं हमें बिजनेस में गवर्मेंट बिजनेस में नहीं है, कोई बात नहीं, पर गवर्मेंट उस धंधे में भी नहीं रहनी चाहिए, जिसमें वो अपनी आजीविका पुरानी सरकारों ने जो स्थापित किया, उसको बेचकर अपना काम चला रही हो। 




मैं यहाँ से 4 प्रश्न पूछना चाहता हूं माननीय वित्त मंत्री जी से, क्योंकि आपने देखा होगा तेल और डीजल के बारे में जब सवाल पूछा गया, तो 7 साल से जो सरकार केन्द्र में है, उनके मुखिया माननीय प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि डीजल और पेट्रोल के लिए पूर्ववर्ती सरकारें दोषी हैं। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता बस। 7 साल से जो सरकार केन्द्र में है, वो कहती है कि पूर्ववर्ती सरकारें दोषी हैं। वित्त मंत्री जी कहते हैं कि पेट्रोल के दाम को कम करना धर्म संकट है। 




ये कौन सा संकट है? माननीय पेट्रोल के मंत्री जी कहते हैं कि पेट्रोल को कम करने के लिए उसको जीएसटी में लाना होगा, किसने रोका आपको? ये कौन से जीएसटी काउंसिल की मीटिंग में आपने ये कोशिश की कि आप पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंदर लेकर आओ? कौन सी वो मीटिंग थी, कौन सी? हमारे वित्त मंत्रियों ने जीएसटी काउंसिल में बार-बार ये मुद्दा उठाया कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के अंदर लेकर आईए, पर आप नहीं लेकर आते। जीएसटी काउंसिल के चेयरपर्सन कौन हैं -



 माननीय वित्त मंत्री जी स्वयं हैं। पेट्रोल के मंत्री जी की बात माननीय वित्त मंत्री जी क्यों नहीं सुनते हैं? कल ही एसबीआई की एक रिपोर्ट आई है कि अगर पेट्रोल और डीजल के प्रोडक्ट जीएसटी में आ जाते हैं, तो पेट्रोल और डीजल के दाम 20 से 25 रुपए प्रति लीटर कम हो जाएंगे। ये रिपोर्ट मैं नहीं कह रहा हूं, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट है। अर्थात् इच्छा शक्ति की कमी है अर्थात् माननीय वित्त मंत्री जी धर्म संकट की कमी नहीं है, आपकी इच्छा शक्ति में कमी है। 




माननीय प्रधानमंत्री जी 7 साल में जिस सरकार ने 800 प्रतिशत डीजल की एक्साइज ड्यूटी बढ़ाई हो और 250 प्रतिशत पेट्रोल पर बढ़ाई हो और आप कहते हो कि पूर्ववर्ती सरकारें दोषी हैं। एक बार तो पेट्रोल के मंत्री जी ने एक और बयान दिया कि अभी जाड़ा लग गया है। अब पेट्रोल के दाम भी जाड़े के हिसाब से डिसाइड होते हैं। मैंने बचपन में ये जरुर सुना था कि स्वेटर जाड़े में महंगे मिलते हैं और समर में थोड़े सस्ते हो जाते हैं। यहाँ पेट्रोल और डीजल को भी जाड़े लग गए और समर आ गया है, ये कौन से तर्क हैं? इच्छा शक्ति की कमी को दर्शाता है।




मैं 4 सवाल पूछना चाहता हूंक्या भारत सरकार डेलिब्रेटली पीएसयू को कमजोर करके उनको बेचने का काम कर रही है? क्योंकि मैंने तो आपको उदाहरण दिया है लाइफ इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन का।



मेरा दूसरा प्रश्न है, क्या भारत सरकार के पास एक भी ऐसा रेवेन्यू मॉडल नहीं है, इन दो के अलावा - पीएसयू को बेचना और एक्साइज ड्यूटी, पेट्रोल, डीजल और एलपीजी पर बढ़ाना। कोई और रेवेन्यू मॉडल नहीं है आपके पास अपने खर्चों को निकालने का? मेरा तीसरा सवाल है कि क्या पीएसयू को बेचने से पहले लॉग टर्म इन्ट्रस्ट का ध्यान रखा जाएगा कि नहीं? आप एलआईसी को बेच दोगे, तो उन लोगों का क्या होगा, उन मध्यम आय वर्गीय लोगों का क्या होगा, जिन्होंने एलआईसी में विश्वास के तहत अपना पैसा लगाया? अंत में कि क्या सरकार सिर्फ एक ऐजेंडा के तहत डिस्ट्रैस सेल ड्राइव कर रही है? डिस्ट्रैस प्राइवेटाइजेशन डिपार्टमेंट मैनेजमेंट, जो मैंने डीपीडीएम नाम दिया था, क्या ये एक एजेंडा के तहत काम हो रहा है? जो एविडेंस हैं, वो तो इसी और इशारा कर रहे हैं।





एक प्रश्न के उत्तर में प्रो वल्लभ ने कहा कि और सेस का मतलब क्या है! Cess is only way so that state should not get the revenue, otherwise why is cess. भाई, एक्साइज ड्यूटी डिस्पोजेबल जो पूल है, डिवीजिबल पूल है, उसके अंदर आती है। आप सेस लगाते हो, then it is only for Government of India. आपने नाम दिया था, कॉपरेटिव फेडरलिज्म। आपने नाम दिया था टीम इंडिया। याद है, न 2015 में ये दो शब्द आए थे, कहाँ है ये कॉपरेटिव फेडरलिज्म। मैं तो कहता हूँ, न केवल कांग्रेस के मुख्यमंत्री, भाजपा के मुख्यमंत्रियों को भी सोचना चाहिए कि आपका जो आने वाले रेवेन्यू को रोक लिया गया है, अगर आप सेस लगा लेते हो, तो जो आपका डिवीजिबल पल है. वो कम हो जाएगा, डिविजिबल पूल कम हो गया, तो आपको पैसा नहीं मिलेगा. आपको पैसा नहीं मिलेगा तो आप कैसे काम चलाओगे।



सरकार से नौकरी मांगे तो सरकार कहती है, नौकरी देना हमारा काम नहीं है। पीएसयूज चलाना हमारा काम नहीं है। कोविड को रोकना हमारा काम नहीं था, स्टेट्स का काम था, हैल्थ उनके अंतर्गत आता है। पैसे आप उनको दो नहीं, तो फिर आपका काम क्या है,



हमें ये पूछना आपका काम है क्या? आपका काम कई बार मेरे से पूछा जाता है। आपने भी सुना होगा, अरे 50 साल में क्या किया? महोदय, 50 साल मे ये कंपनियाँ बनाईं, जो आज आप बेच रहे हो, ये किया था। जिस कारण से आज आप आपना जो रेवेन्यू कलैक्ट कर रहे हो, क्योंकि और तो आपके पास साधन है नहीं। ये 50 साल में ये कंपनियाँ बनाईं थी, जिनको बेचकर आज अपना भरण-पोषण कर रहे हैं। किसान आंदोलन से संबंधित एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री शुक्ला ने कहा हम लोग तो शुरु से ही किसान आंदोलन के समर्थन में हैं कि किसानों की बात सुननी चाहिए। उनको जो ये थका देना और बिठाए रहने देना और उनकी उपेक्षा करना ये उचित नहीं है। 






देश की रीढ़ किसान हैं और किसान के लिए हम लोग पूरी तरह से खड़े हए हैं, आज कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी बयान आया। हमारी पंजाब सरका । तरह से उनकी मांगो के समर्थन में है और आप सुन नहीं रहे है, उनकी ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं, हर तरह से उनके आंदोलन को कुचला-दबाया जा रहा है और किसान की क्या स्थिति देश में है, आपको पता है। कल मैं सुन रहा था कि किसान कितने हैं देश में यही आंकड़ा सरकार के पास नहीं है। इस देश में कितने टाइगर हैं, कितने लायन्स हैं, कितने भालू हैं, कितने गैंडे हैं, कितने पक्षी हैं, ये सब आंकड़ा है, सरकार के पास, फॉरेस्ट मिनिस्ट्री के पास, लेकिन किसान कितने हैं, किसी के पास कोई आंकड़ा नहीं हैं। न एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री के पास, न फाइनेंस मिनिस्ट्री के पास। तो ये तो विचित्र स्थिति है, कि किसानों की तरफ कोई आपका ध्यान ही नहीं है और उनको आप दुश्मन मानकर चल रहे है, बिल्कुल ऐसा होगा कि किसान सुनते ही इस सरकार के मंत्री उछल जाते हैं। हर बात किसान के विरोध में है। सब किसान विरोधी बिल, एक वातावरण सरकार के अंदर हो गया है।




 तो एक बात, आपने प्रश्न पूछा है, बिल्कुल सही है, सौ दिन हो गए, सौ दिन से कोई बैठा है, उनका धैर्य देखिए और किस तरह से उनके प्रति आपका रवैया उपेक्षापूर्ण है, कांग्रेस पार्टी, श्री राहुल गांधी जी ने भी पहले स्पष्ट किया। प्रियंका जी ने भी बात स्पष्ट की, सोनिया जी भी डे वन से यही बात कह रही हैं और कैप्टन अमरिंदर सिंह और जितने हमारे लीडर्स हैं, सभी इस बात मे है कि हम किसानों की मांगो के साथ हैं, तत्काल सरकार को उनसे बातचीत करके और उनकी समस्याओं को मानना चाहिए।



मैंने पार्लियामेंटरी अफेयर विभाग भी देखा है। जब आप क्लॉज बाइ क्लॉज डिस्कशन को तैयार हो बिल पर, तो टैक्निकली चीज होती है कि जब आप क्लॉज बाइ क्लॉज अमेंडमेंट कर रहे हो, तो जो पहले का बिल है. वो आप विदड्रॉ करोगे, क्योंकि वहाँ पर I ये बोलना पड़ता है मिनिस्टर को, तो वैसे ही रिपील हो गया, तो वहाँ पर प्रेस्टीज का मुद्दा बनाया हआ है, बिल रिपील करने को लेकर। आप बोलो हम नया बिल लाएंगे, ये बिल वापस है और नए बिल पर काम शुरु कर दो, उनसे बातचीत करके।






एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री शुक्ला ने कहा कि देखिए इंडिया का स्टेट्स तो हर क्षेत्र में गिरता ही चला जा रहा है, लेकिन आप लोगों को जो दे दिया जाता है सरकारी प्रेस नोट कि यहाँ वाह-वाही, बल्ले-बल्ले होती रहती है, तो ये है कि सब डाउनग्रेड कर रहे है, भारत को। अर्थव्यवस्था तो बहुत ही खराब है हर जगह से, हर एक ने किया। हम केवल बेवजह इनके बताए हुए सरकारी जो घोषणाएं और जो आश्वासन हैं, उनको दिनभर प्रोजैक्ट करते रहते हैं, उससे लोगों की वाहवाही करते रहते है, बाकि एक्चुअल अगर जाओ आप उस दृष्टि से भी चाहे इकॉनमिक पैरामीटर्स हों, चाहे इंटरनेशनल पैरामीटर्स हों, जिस क्षेत्र में भी हैं, कौन सा सेक्टर ठीक काम कर रहा है, कोई सैक्टर ठीक काम नहीं कर रहा है, सब जगह हम डाउन हैं। लेकिन ये बात खुलकर बोलना भी एक समस्या..




एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री शुक्ला ने कहा कि देखिए, मैं इस पर बिल्कुल स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि कांग्रेस पार्टी वैक्सीन की राजनीति न करती है और न करेगी, ये देश के लोगों के स्वास्थय का सवाल है, जो भी वैक्सीन लगवाना चाहे, लगवाए, हम लोग कोई वैक्सीन रिकमेंड नहीं करते हैं। ये डॉक्टर्स की एडवाइस होती है, हमारे लिए चाहे कोवैक्सिन हो. चाहे कोवी शील्ड हो. चाहे कोई भी हो, ये जो है, ये पूरी तरह से हमें जो हमारे डॉक्टर्स हैं, उन पर छोड़ देना चाहिए और लोगों को वैक्सीन लगवानी चाहिए। इसमें कोई हर्ज नहीं है। 




हम लोग किसी वैक्सीन का विरोध नहीं करते, कोवैक्सिन का क्यों विरोध करेंगे? भारत बायोटैक एक पब्लिक सेक्टर की कंपनी है, भई, पब्लिक सेक्टर की बात हम और गौरव जी कर रहे हैं, बैठकर यहाँ। अब तो पब्लिक सेक्टर की है, हम क्यों विरोध करेंगे। इनकी तो हर चीज है कि वैक्सीन में भी राजनीति करो, उसको भी पॉलिटिकल एंगल लाओ. कांग्रेस पार्टी ये कर रही है. हर चीज में कांग्रेस पार्टी नहीं है. हम कोई वैक्सीन की राजनीति करते नहीं, हाँ, एक बात जो मैंने कही थी, ट्वीट भी किया था, मैं फिर दोहरा रहा हूँ- Charity begins at home. पहले हमारे देश में एक से एक गरीब, एक से एक परेशान, लाचार हैं, उनको तो वैक्सीन दो। 




आप जो हैं, वहाँ भेज रहे हो, टिंबकटू और निकारागुआ और कहाँ-कहाँ आप डिप्लोमैटिक रिलेशन बनाने के लिए दान करते घूम रहे हो, वो भी करना, लेकिन पहले देश के लोगों को तो देख लो। भारत वालों को तो देख लो, उनको लगवा दो, फिर आप दान करो, विश्वभर में और अपनी छवि बनाओ। तो ये जो हैं अंतर्राष्ट्रीय छवि बनाने के चक्कर में जो भारत के लोगों को वैक्सीन नहीं मिल रही है, आप देखो, कितने लोग हैं, सब इंटाइटलमेंट में फंसे हुए हैं। अब एकदम से कल तो आप 60 साल के नहीं हो जाओगे, आप क्या करोगे आप फंसे हुए हो, तो क्यों फंसा रहे हो, पूरे देश के लिए वैक्सीन पडी है। 




मेरी इंफॉर्मेशन के हिसाब से 90 मिलियन वैक्सीन तो खाली सीरम इंस्टीट्यूट के पास है. वो खराब हो जाएंगी आगे, तो आप खोलो न, पहले देश की जनता को दो, उन पर क्यों रिस्ट्रीक्शन लगा रहे हो कि 60 साल की। अब जो बीमार नहीं हैं, बेचारे बीमारी कहाँ से लाए, तो लोग फर्जी सर्टिफिकेट बनवा रहे हैं वैक्सीन लगवाने के लिए बीमारी का। तो ये जो है न vaccine should be available to each and every Indian. सबको ये फैसलिटी दो. इसके बाद आप अंतर्राष्टीय दानदाता बनकर निकलो।







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