“आशा के दीप वाली दीपावली (लघुकथा)”
कान्हा की कोरोना त्रासदी में बुरी हालत हो गई। वह प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था जोकि इस महामारी के कारण चली गई। माता-पिता भी कोरोना की मार सहन न कर पाए। कोरोना ने तो जीवन भर रोने को विवश कर दिया। अब क्या करूँ, कैसे करूँ, दीपावली के लिए थोड़ा धन संग्रह करना भी जरूरी है तभी नन्ही दुर्गा के लिए पटाखे और मिठाई ला पाऊँगा। यह बात कान्हा ने सुभद्रा से कहीं। सुभद्रा अत्यंत ही समझदार और परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेने वाली महिला थी। उसने कान्हा को सुझाया की मेरे भैया दीपावली पर दीये बेचते है तो क्यों न हम उनसे दीये ले आए। आप और मैं अलग-अलग स्थानों पर दीये विक्रय करेंगे। उसने कहाँ की दादा-दादी भी यही चाहते थे की नन्ही दुर्गा हमेशा मुस्कुराती और खिलखिलाती रहें। इसलिए हमें मन की पीड़ा को छुपाकर दुर्गा के लिए प्रयासरत होना होगा और उसके लिए दीपावली मनानी होगी।
कान्हा सोचने लगा प्राइवेट कंपनी में नौकरी करना तो फिर भी ठीक था पर सड़क पर दीपक बेचना यह बात कान्हा समझ नहीं पा रहा था, पर दुर्गा तो पापा की परी थी तो फिर उसके लिए पापा क्या न करते। इसलिए उसे यह रास्ता अपनाना भी ठीक लगा। कान्हा अपने साले के यहाँ से दीपक ले आया। कान्हा और सुभद्रा ने दीपावली के काफी दिन पहले से ही दीपक बेचने का निर्णय लिया। ईश्वर में सच्ची आस्था रखो तो वह निश्चित ही फलीभूत होती है।
कान्हा की पत्नी घर से निकलने से पहले रोज ठाकुरजी से प्रार्थना करती की है प्रभु मेरे दीपक मेरे घर और सभी के घर में खुशी के दीप बनकर प्रज्वलित हो। सुभद्रा ने कान्हा को एक महत्वपूर्ण बात समझाई थी की व्यवसाय की नींव कुशल व्यवहार और विनम्रता होती है। दोनों पति-पत्नी प्रत्येक ग्राहक का विनम्रतापूर्वक अभिवादन करते। उनके भाव-ताव करने पर कम मुनाफे में भी व्यवसाय करना स्वीकार करते जिसके परिणाम स्वरूप उनके सारे दीपक बिकते चले गए। कान्हा की पत्नी सुभद्रा ने कुछ दीपक को सुंदर से सजा भी दिया और उसका उसे अधिक मूल्य प्राप्त हुआ।
कान्हा और सुभद्रा की मिली-जुली सोचसमझ के कारण वे अत्यंत प्रसन्न थे और अब कान्हा के घर खुशी के दीपक के लौ जगमगा रही थी। वे आशा के दीप के साथ दीपावली मनाने को तैयार थे। इस लघु कथा से यह शिक्षा मिलती है की जीवन में परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेना सदैव हितकारी होता है। आपसी सूझबुझ से हम उचित निर्णय तक पहुँच सकते है। इस बार क्यों न हम सबके हित के अनुसार अपना पैसा खर्च करें। थोड़ी मदद फुटकर विक्रेता और सड़क पर मेहनत करने वालों के लिए भी करें। उनकी आस को व्यर्थ न जाने दे। उनकी मेहनत से उनके घर में भी खुशी वाली दीपावली मनाने में सहयोग करें। इस बार आशा के दीप वाली दीपावली मनाने की जरूरत है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)