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ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का दावा, कोराना वैक्‍सीन के मानव ट्रायल में मिली सफलता

  • by: news desk
  • 20 July, 2020
 ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का दावा, कोराना वैक्‍सीन के मानव ट्रायल में मिली सफलता

● ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को कोराना वैक्‍सीन के मानव ट्रायल में मिली सफलता

● ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुआ परीक्षण

● वैक्सीन पूरी तरह से सहनशील और प्रतिरक्षात्मक, 

● विवि के रिसर्च पेपर में दी गई जानकारी

●18-55 साल की उम्र के लोगों पर हुआ ट्रायल

● कुल 56 दिन तक चला वैक्सीन का ट्रायल

● सिरदर्द, बुखार, बदन दर्द जैसी शिकायतें ठीक हुई





लंदन: कोरोना वायरस की वैक्सीन की तलाश में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को बड़ी कामयाबी मिली है| ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने जिस वैक्सीन को तैयार किया है वह सुरक्षित साबित हुई है और उससे इम्यून सिस्टम बेहतर होने के संकेत मिले हैं|यूनिवर्सिटी ने ह्यूमन ट्रायल के दौरान यह पाया कि इस वैक्सीन से लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की इम्युनिटी यानी वायरस से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई|




ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी कोरोना वायरस की वैक्सीन ChAdOx1 nCoV-19 का मानव परीक्षण कर रहा है। सोमवार को आई रिपोर्ट के अनुसार इसके ट्रायल के सकारात्मक नतीजे सामने आए हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि उनकी वैक्सीन ने शुरुआती परीक्षण में लोगों में सुरक्षात्मक प्रतिरोधक प्रतिक्रिया उत्पन्न की है, जिन्हें यह वैक्सीन लगाई गई थी। ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने पहली बार अप्रैल में लगभग 1,000 लोगों में वैक्सीन का परीक्षण शुरू किया था, जिनमें से आधे लोगों को वैक्सीन लगाई गई थी।



सोमवार को प्रकाशित शोध में, वैज्ञानिकों ने कहा कि ट्रायल में पाया गया कि वैक्सीन ने 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों में दोहरी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न की है। इस तरह के शुरुआती परीक्षणों को आमतौर पर केवल सुरक्षा का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है, लेकिन इस मामले में विशेषज्ञ यह भी देखना चाह रहे थे कि इसकी किस तरह की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होगी।



विश्वविद्यालय में जेनर इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. एड्रियन हिल ने कहा, 'हम लगभग हर किसी में अच्छी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया देख रहे हैं। यह वैक्सीन प्रतिरक्षा प्रणाली के दोनों पक्षों को मजबूत कर देती है।' हिल ने कहा कि एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने से जो परमाणु उत्पन्न होते हैं जो संक्रमण को रोकने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसके अलावा, इस वैक्सीन से शरीर की टी-कोशिकाओं में एक प्रतिक्रिया होती है जो कोरोना वायरस से लड़ने में मदद करती है।



उन्होंने कहा कि वैक्सीन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने वाले बड़े परीक्षणों में ब्रिटेन के लगभग 10,000 लोगों के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील के प्रतिभागी शामिल हैं। ये परीक्षण अभी बड़े पैमाने पर जारी हैं। अमेरिका में जल्द ही एक और बड़ा परीक्षण शुरू होने वाली है, जिसमें लगभग 30,000 लोगों को शामिल करने का लक्ष्य रखा गया है।



टीके की प्रभावशीलता का निर्धारण वैज्ञानिक कितनी जल्दी कर पाते हैं, यह बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि वहां कितना अधिक परीक्षण होता है। लेकिन हिल ने अनुमान लगाया कि उनके पास यह सुनिश्चित करने के लिए वर्ष के अंत तक पर्याप्त डाटा हो सकता है कि क्या वैक्सीन को सामूहिक टीकाकरण अभियानों के लिए अपनाया जाना चाहिए। हिल ने कहा कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन बीमारी और उसके प्रसार को कम करने के लिए बनाई गई है।



रिपोर्ट के अनुसार यह ट्रायल 1077 लोगों पर किया गया था। इस दौरान देखा गया कि वैक्सीन लगाने के बाद उनके शरीर में एंटीबॉडी और सफेत रक्त कणिकाओं (डब्ल्यूबीसी) का निर्माण हुआ जो कोरोना वायरस से लड़ने में प्रभावी साबित हुई हैं। वैक्सीन ट्रायल के ये परिणाम काफी आशाजनक हैं। हालांकि, यह परिणाम अंतिम नहीं हैं और परीक्षण का दौर जारी है। इस वैक्सीन को अगले चरण के ट्रायल के लिए अनुमति दे दी गई है। ऑक्सफोर्ड इस वैक्सीन पर फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ काम कर रही है।



इस वैक्सीन को चिंपांजियों में सामान्य सर्दी जुकाम का कारण बनने वाले वायरस में जेनेटिक बदलाव लाकर तैयार किया गया है। इसे वैज्ञानिक भाषा में वायरल वेक्टर कहते हैं। इसमें इस तरह बदलाव लाया गया है कि यह लोगों को संक्रमित न कर सके और कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता पैदा कर सके। बता दें कि ऑक्सफोर्ड ने वैश्विक स्तर पर अपने वैक्सीन के उत्पादन के लिए दवा निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ साझेदारी की है और कंपनी पहले ही दो अरब खुराक बनाने की प्रतिबद्धा जता चुकी है।






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