लखनऊ: पारुल सुनिल त्रिपाठी (लेखिका - लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा है, विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर कविता एवं कहानियों के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करती रहती है)
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तुम उस रोड से अपनी कार को जरूर मोड़ कर ले जाते हो,
जहां प्यार पैसों के बदले बिकता है ,
घनी रात के चमकते चांद में भी
सूरज जैसा आग दहकता है
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वह खूबसूरत है या बदसूरत,
काली है या कुरूप ,
वो छाव सी है या है
कोई दहकती धूप ,
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सब देख पैसों का भाव तुम लगाते हो ,
जिस्म सौंप देती चंद रुपयों में तुम्हें वो,
मन को तृप्त कर फिर तुम वहां से जाते हो ,
तुम्हें नहीं पता उसे कैसा लगा|
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तुम्हें नहीं जानना उसके भीतर क्या जगा,
तुमने अपने पैसों की कीमत बकायदा बसूली ,
उसके जिस्म में झांक झांक कर तुमने उसे टटोली ,
उससे तो तुम उस वक्त बहुत खुश होगे
भूल सब गम अपना उसका तुम आनंद लोगे,
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लेकिन यह सोचने की इच्छा भी नहीं होगी तुम्हें,
उम्र भर उसे अपने पास रखने की ,
जो आनंद तुमने उस क्षण पैसों से खरीदा,
उसे प्यार के भाव में चखने की
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कदाचित यह ख्याल तुम्हें नहीं आएगा,
वह अब ठहरी अबला,तुम गए फिर कोई और उसके पास आएगा,
वह भी यही करेगा पैसों के बदले भूख अपनी मिटाएगा,
अपनी हैवानी हरकतें उस वक्त उसे दिखाएगा ,
वह तड़प रही होगी या होगा कोई दर्द उसे
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वह सोचेगी इन चंद पैसों के बदले तुम क्यों मिले हो मर्द उसे,
बस उसे यह लानत हर बार होती होगी,
फिर भी वह यह कहानी दोहराने को लाचार होती होगी ,
मैं नहीं समझ सकती वेदना उसकी,
लेकिन जब भी वह सोती होगी मन ही मन बहुत रोती होगी।
लेखिका-पारुल सुनिल त्रिपाठी