लखनऊ: पारुल सुनिल त्रिपाठी (लेखिका - लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा है, विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर कविता एवं कहानियों के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करती रहती है)| लेखिका पारुल सुनिल त्रिपाठी ने अपनी कविता के मध्यम से पिता और बेटी के रिश्तो को उन पल को साझा किया हैं जो आपका दिल चुरा लेंगी|
किसी भी लड़की के लिए उसका पिता ही पहला हीरो होता है. न जाने उसे ये भरोसा कब और कैसे हो जाता है कि उसके पिता जितना ताकतवर इस पूरी दुनिया में कोई नहीं| ये सोच कब आ जाती है कि जब तक पापा हैं, तब तक कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता
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बड़े नाजो से रखते है
बड़े शानो शौकत से पाले है
ये जो बंधन रहे समाज के
पापा ने तोड़ दिए सबके ताले है।
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बेटी कहने में उन्हें नाज है
कहते है,बेटी है मेरी,मेरे सर की ताज है
भरी सभा में भी बेहिचक तारीफों की बुलंदियां बनाते है,
अरे पापा हैं मेरे ,समाज है सबका,मुझे ऊंचा उठाने में बहुतों से टकराते है।
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चाहत न उपजे किसी चीज की,
ख्वाहिशें ऐसी पूरी करते हैं,
मान, सम्मान , प्रतिष्ठा सब सौंप मुझे,
मुझे अब वो खोने से डरते हैं,
पापा है मेरे,मेरे लिए बहुत लड़ते हैं।
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ये जो मुस्कुराहट कभी होठों से हम ठुकराते नहीं हैं,
वजह ''बेटी है मेरी ,ये बताने में पापा मेरे शरमाते नहीं हैं,
महंगे जूते, नए कपड़े , फोन नया,मेरे शौक सारे पूरे करते हैं,
अपने शौकिया मिजाज़ को दिल में दबाकर ,जाने मेरे पापा कैसे रहते है।
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हो जख्म भरे दिल में उनके चाहे जितना,
मुझे खुश रखकर वो खुश रहते हैं,
पापा है मेरे ,मेरे लिए जाने कितना कुछ सहते हैं।
पारुल सुनील त्रिपाठी, लखनऊ विश्वविद्यालय