लखनऊ: पारुल सुनिल त्रिपाठी (लेखिका - लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा है, विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों पर कविता एवं कहानियों के माध्यम से अपनी आवाज बुलंद करती रहती है)
पारुल त्रिपाठी की नई कविता पढ़ें---------
मुझे देखो,
मेरे बदन को नहीं,
मेरे चेहरे और मेरी टांगों से उपर उठकर मुझे देखो,
मेरे बाल,मेरे स्तन को छोड़ ,
मुझे देखो, मेरी बुद्धिमत्ता को देखो,
मैं तुम्हारे जैसी ही हूं,
उसी हवा में सांसे मै भी लेती हूं,
मुझे पता है,मेरा अलग दिखना ,तुम्हे मुझे घूरने को मजबूर करता है,
लेकिन मेरे बदन से उपर उठकर तो देखो ,तुम्हे मेरा हृदय मिलेगा जो तुम्हारी परवाह करता है,
तुम्हारे मन में मेरी सोच जानने की इच्छा जगेगी,बजाय कि मैंने क्या पहन रखा है,
उम्र महज़ 14 की ही रही होगी,
समाज की बेड़ियों में उलझकर रहने के सारे नियम मुझे बताए गए,
वजह ये रही थी कि मेरा यौवन अपने विकास के दौर में था जिस पर मेरा नियंत्रण नहीं था कोई,
मेरा बदन पूर्णतया ढंका रहना चाहिए, मुझे झुकने की अदाएं आनी चाहिए,
लेकिन मै स्वतंत्र औरत हूं,
मैं निडर , मै निर्भीक भी हूं,
मैं एक आकर्षित चेहरे,आकर्षित बदन से कहीं ज्यादा हूं,
मैं अपने विचारो से खुद का अस्तित्व बनाने की काबिलियत रखती हूं, जिन विचारों को तुम कभी ख़तम नहीं कर सकते,
मैं तुम्हारे जैसी ही हूं,
जो अकसर रोया करती हूं,
आशा है कि तुम जानते होगे,मुझे प्रेम में विश्वास है क्युकी प्रेम हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करता है,
मैं अपने आकर्षित चेहरे और बदन से कहीं ज्यादा हूं,
मेरी अलमारी में बहुत लुभावने कपड़ों का भंडार है,हन मगर मेरे पास किताबे उससे भी कहीं ज्यादा है,
मुझे अपने पसंदीदा मोमोज की तलब रहती बहुत है,मगर उतनी ही तलब मुझे मेरी स्वतंत्रता की भी है,
मुझे खुद पर यकीन है,खुद से बहुत प्यार है मुझे,
मेरे प्रिय, मै अपने लुभावनी चेहरे और बदन से कहीं ज्यादा हूं,
मैं एक तर्क वितर्क करने में सक्षम औरत हूं,
तुम्हे मेरे साथ अवश्य ही उस आनन्द कि अनुभूति होगी जिसकी तुम्हे तलाश है ,और ये सच भी है,
मेरे प्रिय,तुम मेरे लुभावनी ,आकर्षित चेहरे से मिल चुके,लेकिन अब मेरे लुभावने मस्तिष्क से मिलना होगा।
पारुल सुनील त्रिपाठी (लखनऊ विश्वविद्यालय)