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मथुरा: विजयदशमी के मौके पर सारस्वत ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने की रावण की पूजा

  • by: news desk
  • 15 October, 2021
मथुरा: विजयदशमी के मौके पर सारस्वत ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने की रावण की पूजा

मथुरा: हर साल दशहरा पर रावण का पुतला फूंका जाता है जबकि भगवान राम की पूजा की जाती है... इस दिन को अच्छाई की बुराई पर जीत के प्रतीक के तौर पर भी मनाया जाता है|  एक और जहां देश भर में रावण का पुतला दहन किया जाता है, तो वहीं भगवान कृष्ण की जन्मभूमि मथुरा में रावण की पूजा की जाती है|   दरअसल, दशमी तिथि को भगवान राम ने रावण का वध किया था| इसीलिए इस दिन को विजयादशमी का पर्व भी कहते हैं|




मथुरा में सारस्वत ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने विजयदशमी के मौके पर रावण की पूजा की। विजयदशमी के अवसर पर मंडल के पदाधिकारियों ने प्रकांड विद्वान दशानन रावण की महाआरती की| इस दौरान उन्होंने पुतला दहन की परंपरा का विरोध किया|



दशहरा पर्व पर लंकेश भक्त मंडल के पदाधिकारी यमुना किनारे पहुंचते हैं| यहां बने एक शिवलिंग का रावण बने स्वरूप के साथ पूजन करते हैं| इसके बाद लंकेश की महाआरती करते हैं| मंडल के पदाधिकारी ने बताया कि वह पिछले 25 वर्षों से यह पूजन करते चले आ रहे हैं|



रावण के वंशज और लंकेश भक्त मंडल के अध्यक्ष ओमवीर सारस्वत ने बताया कि उनके द्वारा लगातार रावण दहन का विरोध किया जाता रहा है| उन्होंने 2003 में मथुरा जिला न्यायालय में याचिका भी दायर की थी| जिसमें मथुरा में हो रही रामलीला में रावण के पुतला दहन पर रोक लगाने की मांग की गई थी| लेकिन न्यायालय ने अधिकार क्षेत्र से बाहर का मामला होने का हवाले देकर याचिका निरस्त कर दी थी|




ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने कहा कि त्रिकालदर्शी प्रकांड विद्वान का हर साल पुतला दहन करना एक कुरीति है| हिंदू धर्म में एक बार ही व्यक्ति के अंतिम संस्कार करने की व्यवस्था है...लेकिन हमारे समाज में पुतला दहन की कुरीति प्राचीन समय से गलत आधारों पर अपनाई जा रही है| लंकेश भक्त मंडल दशानन के भक्त और अनुयायी होने के नाते पुतला दहन का विरोध करता है लोगों को रावण की अच्छाइयों से सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने एकाग्र चित्त होकर घोर तपस्या कर शक्ति हासिल की थी|  भगवान राम ने युद्ध में विजय प्राप्ति के समय दशानन के विष्णुलोक जाने के दौरान, अपने भाई लक्ष्मण को रावण के पास राजनीति की शिक्षा लेने के लिए भेजा था|




ओमवीर सारस्वत ने बताया,"भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्ति के लिए सेतु बंधु रामेश्वरम की स्थापना के दौरान जामवंत को रावण के पास आचार्य बनाने के लिए निमंत्रण भेजा था, जिसे दशानन ने स्वीकार किया था| रावण स्वयं सीता को साथ लेकर आए थे| भगवान राम को पूजन कराके उन्होंने स्वयं लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए आशीर्वाद दिया था| जब हम लोग भगवान राम में आस्था रखते हैं, तो हमें रावण का भी सम्मान करना चाहिए|







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