लखनऊ: बसपा अध्यक्ष मायावती ने सोमवार को आरोप लगाया कि समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की 'रामचरितमानस' पर हालिया विवाद का उद्देश्य उनकी पार्टी और उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को चुनावी रूप से लाभ पहुंचाना है। मायावती ने कहा कि भाजपा की प्रतिक्रिया के बावजूद सपा नेतृत्व की चुप्पी से स्पष्ट है कि इसमें दोनों पार्टियों की मिलीभगत है, ताकि आगामी चुनावों में हिंदू-मुस्लिम उन्माद पर ध्रुवीकरण किया जा सके|
उत्तर प्रदेश के एक प्रमुख ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को एक विवाद को जन्म दिया, जब उन्होंने आरोप लगाया कि तुलसीदास द्वारा लिखित 'रामचरितमानस' के कुछ छंद -समाज के एक बड़े वर्ग का पिछड़ों, दलितों और महिलाओं का अपमान किया गया है" और पाठ में उन अंशों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की।
ट्वीट्स की एक श्रृंखला में, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि राजनीतिक लाभ के लिए नए विवाद पैदा करने की भाजपा की योजना सर्वविदित है, लेकिन समाजवादी पार्टी (सपा) भी ऐसा ही कर रही है। उन्होंने कहा, “संकीर्ण राजनीतिक और चुनावी स्वार्थों के लिए नए-नए विवाद पैदा करने, जातीय और धार्मिक घृणा फैलाने, उन्माद पैदा करने और धर्मांतरण आदि की भाजपा की राजनीतिक पहचान जगजाहिर है। लेकिन रामचरितमानस की आड़ में सपा का वही राजनीतिक रंग - दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
बसपा प्रमुख ने सोमवार को ट्वीट किया, “संकीर्ण राजनीतिक व चुनावी स्वार्थ हेतु नए-नए विवाद खड़ा करके जातीय व धार्मिक द्वेष, उन्माद-उत्तेजना व नफरत फैलाना, बायकाट कल्चर, धर्मान्तरण को लेकर उग्रता आदि भाजपा की राजनीतिक पहचान सर्वविदित है किन्तु रामचरितमानस की आड़ में सपा का वही राजनीतिक रंग-रूप दुःखद व दुर्भाग्यपूर्ण।
उन्होंने आगे कहा, “रामचरितमानस के विरुद्ध सपा नेता की टिप्पणी पर उठे विवाद व फिर उसे लेकर भाजपा की प्रतिक्रियाओं के बावजूद सपा नेतृत्व की चुप्पी से स्पष्ट है कि इसमें दोनों पार्टियों की मिलीभगत है ताकि आगामी चुनावों को जनता के ज्वलन्त मुद्दों के बजाए हिन्दू-मुस्लिम उन्माद पर पोलाराइज किया जा सके।
एक अन्य ट्वीट में मायावती ने कहा, “उत्तर प्रदेश में विधानसभा के हुए पिछले आमचुनाव को भी सपा-भाजपा ने षडयंत्र के तहत मिलीभगत करके धार्मिक उन्माद के जरिए घोर साम्प्रदायिक बनाकर एक-दूसरे के पूरक के रूप में काम किया, जिससे ही भाजपा दोबारा से यहाँ सत्ता में आ गई। ऐसी घृणित राजनीति का शिकार होने से बचना जरूरी।
गौरतलब है कि स्वामी प्रसाद मौर्य ने 22 जनवरी को एक बयान में श्रीरामचरितमानस की एक चौपाई का जिक्र करते हुए इसे महिलाओं तथा पिछड़ों के प्रति अपमानजनक करार दिया था और इस पर पाबंदी लगाने की मांग की थी| उनके इस बयान पर खासा विवाद उत्पन्न हो गया था| इस मामले में मौर्य के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ है| रामचरितमानस पर दिए गए बयान को लेकर सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य की जीभ काटने एवं सिर काटने वालों के लिए इनाम की घोषणा की गई थी|
महिलाओं और शूद्र समाज के सम्मान की बात करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता: स्वामी प्रसाद मौर्य
आज,सोमवार को सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा, “मेरे न रहने पर भी मेरा नाम FIR में शामिल करना इससे साबित होता है कि यह दबाव में थाने में बैठकर मजबूरी में FIR लिखी गई है। महिलाओं और शूद्र समाज के सम्मान की बात करना, आपत्तिजनक टिप्पणी को हटाने की मांग करना अपराध की श्रेणी में नहीं आता| सरकार के दबाव में भले ही FIR लिख ली गई हो लेकिन न्यायालय से सबको न्याय मिलेगा|
गाली कभी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता
इससे पहले रविवार को सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था,“गाली कभी धर्म का हिस्सा नहीं हो सकता। अपमान करना किसी धर्म का उद्देश्य नहीं होता। जिन पाखंडियों ने धर्म के नाम पर पिछड़ो, महिलाओं को अपमानित किया, नीच कहा, वो अधर्मी हैं...| उन्होंने कहा ,“किसने कहा रामचरितमानस धार्मिक ग्रंथ है? तुलसीदास ने तो नहीं कहा|
स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि, हाल में मेंरे दिये गये बयान पर कुछ धर्म के ठेकेदारों ने मेरी जीभ काटने एवं सिर काटने वालों को इनाम घोषित किया है, अगर यही बात कोई और कहता तो यही ठेकेदार उसे आतंकवादी कहते, किंतु अब इन संतों, महंतों, धर्माचार्यों व जाति विशेष लोगों को क्या कहा जाए आतंकवादी, महाशैतान या जल्लाद।