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“बाँटने की राजनीति करने वाले लोग ख़ुद बँट गये”: अखिलेश का बीजेपी पर हमला

  • by: news desk
  • 23 August, 2024
“बाँटने की राजनीति करने वाले लोग ख़ुद बँट गये”: अखिलेश का बीजेपी पर हमला

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि,'' अब जब भाजपा के संगी-साथी कह रहे हैं कि वो बूथ पर जाकर व्यवस्था संभालेंगे तो इसका मतलब साफ़ है कि वो लोकसभा चुनाव में हुई ऐतिहासिक पराजय को देखते हुए, ये मानकर चल रहे हैं कि भाजपा का कार्यकर्ता हताश होकर बूथ छोड़कर भाग चुका है या फिर अब भाजपा के मुखौटाधारी केवल सत्ता लोलुप संगी-साथियों को भाजपा के कार्यकर्ताओं पर भरोसा नहीं रहा है।''


 अखिलेश यादव ने कहा कि,'' दरअसल चुनावी हार के बाद भाजपाई गुटों ने आपस में विश्वास खो दिया है। इसका एक और पहलू यह भी है कि भाजपा का ‘संगी-साथी’ पक्ष ये दिखाना चाहता है कि हार का कारण वो नहीं था, वो तो अभी भी शक्तिशाली हैं, कमज़ोर तो भाजपा हुई है। इन दोनों ही परिस्थितियों में यह तो साबित होता है कि भाजपाइयों ने हार स्वीकार कर ली है और अब भविष्य के लिए बेहद चिंतित हैं, लेकिन आपस में दोषारोपण करके, न तो ये एक-दूसरे का भरोसा जीत पाएंगे और न ही कोई आगामी चुनाव। बाँटने की राजनीति करनेवाले लोग ख़ुद बँट गये हैं।''     


यादव ने कहा कि,'' भाजपा अपनी तथाकथित चाणक्य नीति के तहत जिन ‘पन्ना प्रमुखों’ की बात करती थी, अब क्या वो इतिहास बन गये? आज अगर वे उपलब्ध नहीं हैं तो उसके पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं। अब भाजपा के जो गिने-चुने कार्यकर्ता बाक़ी है। वे ये सोचकर हताश हैं कि वर्तमान परिस्थिति में, जबकि समाज का 90 प्रतिशत पीडीए समाज जाग उठा है और पीडीए की बात करने वालों के साथ खड़ा है तो फिर वे किसके पास जाकर वोट माँगें और 90 प्रतिशत पीडीए समाज के सामने आकर क्यों उनके विरोधी होने का ठप्पा ख़ुद पर लगाएं, आखि़रकार उन्हें भी तो उसी 90 प्रतिशत समाज के बीच ही रहना है।  ''   



उन्होंने कहा,''ऐसे भूतपूर्व भाजपाई पन्ना प्रमुख ये सच्चाई भी जान चुके हैं कि भाजपा में किसी की कोई सुनवाई नहीं है, तो ऐसे दल में रहकर कभी भी कोई मान-सम्मान-स्थान उन्हें मिलने वाला नहीं है। वे ऐसे दलों की सच्चाई भी जान चुके हैं जो भाजपा की राजनीति के मोहरे बनकर काम कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि जनता अब पीडीए की एकता और एकजुटता के साथ है क्योंकि पीडीए की सकारात्मक राजनीति लोगों को जोड़ती है और जनता के भले के लिए राजनीति को एक सशक्त माध्यम मानती है। इसीलिए समाज का अंतिम पंक्ति में खड़ा सर्वाधिक प्रताड़ित और शोषित-वंचित समाज भी पीडीए में ही अपना भविष्य देख रहा है।



 आज़ादी के बाद सामाजिक-मानसिक और आर्थिक परिप्रेक्ष्यों में पीडीए सर्वाधिक शक्तिशाली और सफल क्रांतिकारी आंदोलन बनकर उभरा है। पीडीए के लिए राजनीति साधन भर है, साध्य है समाज का कल्याण। इसके ठीक विपरीत भाजपा के लिए चुनावी जीत और सत्ता की किसी भी तरह प्राप्ति करके जनता के हितों को ताक पर रखकर भ्रष्टाचार करना ही साध्य है।     



 अखिलेश यादव ने कहा कि,''इन्हीं सब कारणों से भाजपा में ज़मीनी और बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं का सूखा पड़ गया है। अब जब ये भाजपाई संगी-साथी गाँव-गलियों में जाएँगे तो जनता के सवालों की लंबी सूची उनका इंतज़ार कर रही होगी। 



पीडीए प्रश्नों के रूप में एक लंबी सूची उनकी प्रतीक्षा कर रही होगी, जो पूछेगी:

— छुट्टा जानवरों से निजात दिलवाने का झूठा वादा क्यों किया?

काले क़ानून लाकर किसानों की भूमि क्यों हड़पनी चाही?

— किसानों पर गाड़ी क्यों चढ़वायी? . 

— किसानों को लाभकारी एमएसपी क्यों नहीं दिया? 

— संविधान की समीक्षा और उसे बदलने की बात क्यों की? 

— 69000 में आरक्षण का हक़ क्यों मारा? 

— आरक्षण का हक़ मारते हुए, पिछले दरवाज़े से लेटरल भर्ती का षडयंत्र क्यों रचा? 

नौकरियों की जगह संविदा की व्यवस्था लाकर आरक्षण का अधिकार क्यों छीना? 

अग्निवीर सैन्य भर्ती लाकर युवाओं का भविष्य बर्बाद क्यों किया? 

पुलिस भर्ती में हेराफेरी क्यों की?

नीट व अन्य पेपर लीक क्यों कराए? 

पैसेवालों को लाभ पहुँचाने के लिए महँगाई को बेतहाशा बढ़ने क्यों दिया?

हर एक के खाते में 15 लाख रू0 देने का महाझूठ क्यों बोला? 

नोटबंदी व जीएसटी से काम-कारोबार तबाह क्यों किया? 

नज़ूल व वक़्फ़ भूमि को हड़पने की कोशिश क्यों की? 

— लाखों लोगों के घर-मकान-दुकान पर बुलडोज़र क्यों चलवाया? 

ज़मीनों का सही मुआवज़ा क्यों नहीं दिया?

महिला का शोषण करने वालों को राजनीतिक प्रश्रय क्यों दिया? 

मज़दूरों की मज़दूरी में बढ़ोतरी क्यों नही करी? 

ग़रीबों के नाम पर चल रही योजनाओं में भ्रष्टाचार क्यों होने दिया? 

प्रेस के साथ अभिव्यक्ति की आज़ादी का गला घोटने के लिए क़ानून क्यों लाए? 

— बैंकों में पेनल्टी लगाकर जनता की बचत का पैसा क्यों हड़पा? 

शिक्षा और सेहत को निजी हाथों में देकर महंगा क्यों किया? 

समाज के प्रेम, सौहार्द, भाईचारे को ख़त्म करने की साज़िश क्यों की?        





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