ये खबर उन लोगों के लिए प्रेरणा दायक है जो कैंसर का नाम सुनते ही कांप जाते हैं। समाज के ऐसे लोग जो कैंसर के मरीजों का उत्साहवर्धन करने के बजाय उनको निराश करने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। जबकि चिकित्सकों का कहना है कि जीने की दृढ़ इच्छा शक्ति से इसे हराया जा सकता है।
समाज में ऐसे मरीजों की बड़ी संख्या है जिन्होंने कैंसर को मात देकर सुखद जीवन का आनंद ले रहे हैं। उनका कहना है कि जिंदगी चलने का नाम है और यह तभी संभव है जब जिंदगी में जिंदादिली हो।
फिर चाहे दुख कितना ही बड़ा क्यों न हो लोग दृढ़ इच्छाशक्ति से उस पर काबू पा लेते हैं। आज विश्व कैंसर दिवस पर अमृत विचार ने ऐसे ही कैंसर मरीजों से बात की, जिन्होंने इस जानलेवा बीमारी को हराकर खुद को खड़ा किया।
लखनऊ के सुजानपुर की रहने वाली नीतू अरोड़ा की कहानी किसी फिल्म या टीवी सीरियल से कम नहीं है। कक्षा-8 तक पढ़ी नीतू की महज 17 साल की उम्र में शादी हो जाती है। दो साल में दो बच्चों को जन्म देती है। पूरा परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा होता है। नीतू ने सिलाई का काम शुरू किया।
इस बीच उन्हें बच्चेदानी में गांठ का पता चला। डॉक्टरों ने बच्चेदानी निकाल दी। कुछ दिन बाद कान का पर्दा फट गया। जैसे तैसे इलाज करा रही थी कि वर्ष 2020 में लॉकडाउन के समय स्तन में असहनीय दर्द होने पर केजीएमयू में डॉ. गीतिका नंदा को दिखाया।
जांच में ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) की पुष्टि हुई। रिपोर्ट मिलते ही लगा जैसे पैरों तले से जमीन ही खिसक गई है। ऐसा लगा जैसे मौत सामने खड़ी हो। हालांकि, डॉक्टर ने हौसला बढ़ाया। ऑपरेशन सफल रहा। डॉक्टर की सलाह पर जीवनशैली में बदलाव किया। इलाज और जीने की दृढ़ इच्छा से आज हम पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
महिलाओं में स्तन और पुरुषों में मुंह का कैंसर अधिक होता है। समय से जानकारी मिलने पर इसका इलाज संभव है। मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकता है। अब सर्जरी की नई तकनीक से कैंसर खत्म होने के बाद फिर से स्तन को उसके मूल स्वरूप में लाया जा सकता है।
इसके लिए शरीर के दूसरे स्थान से मांस लेकर माइक्रो सर्जरी के जरिए नए सिरे से ब्रेस्ट को बना दिया जाता है। इससे महिलाओं का आत्मविश्वास बरकरार रहता है। मुंह के कैंसर का सबसे बड़ा कारण तंबाकू का सेवन है। कैंसर से बचने के लिए जागरूकता जरूरी है। समय-समय पर स्क्रीनिंग कराते रहें।