नई दिल्ली :संसद के शीतकालीन सत्र की सोमवार को शुरुआत हुई। संसद के शीतकालीन सत्र के पहले दिन की हंगामेदार शुरुआत हुई है| इस बीच सदन में हंगामे को लेकर राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है। पहले ही दिन सदन के पिछले सत्र में अनुशासनहीनता करने वाले राज्यसभा के 12 सांसदों को बाकी बचे पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। निलंबित किए गए सांसदों में कांग्रेस के छह, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के दो, सीपीआई का एक और शिवसेना के दो सांसद शामिल हैं।
सदन के पिछले सत्र में अनुशासनहीनता के आरोप में राज्यसभा के 12 सांसदों को निलंबित कर दिया गया है| सदन कल, 30 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दिया गया है|
उच्च सदन के जिन 12 सांसदों को सस्पेंड किया गया है उनके नाम- एल्मारम करीम (माकपा), फुलो देवी नेताम (कांग्रेस), छाया वर्मा (कांग्रेस), रिपुन बोरा (कांग्रेस), बिनोय विस्वाम (भाकपा), राजमणि पटेल (कांग्रेस), डोला सेन ( तृणमूल कांग्रेस), शांत छेत्री ( तृणमूल कांग्रेस), सैयद नासिर हुसैन ( कांग्रेस), प्रियंका चतुर्वेदी ( शिवसेना), अनिल देसाई (शिवसेना) और अखिलेश प्रसाद सिंह ( कांग्रेस) हैं| उपसभापति हरिवंश की अनुमति से संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने इस सिलसिले में एक प्रस्ताव रखा जिसे विपक्षी दलों के हंगामे के बीच सदन ने मंजूरी दे दी|
इन सांसदों के निलंबन को लेकर सदन की ओर से जारी आधिकारिक नोटिस में कहा गया है कि इन सांसदों ने राज्यसभा के 254वें सत्र के आखिरी दिन यानी 11 अगस्त को हिंसक व्यवहार किया, सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले किए, चेयर का अपमान किया। इन्होंने सदन के नियमों को तार-तार कर दिया और कार्यवाही में बाधा पहुंचाई।
कांग्रेस से राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा ने कहा कि यह निलंबन केवल अनुचित और अन्यायपूर्ण है। अन्य दलों के अन्य सदस्य भी थे, जिन्होंने हंगामा किया लेकिन अध्यक्ष ने मुझे निलंबित कर दिया। पीएम मोदी जैसा चाहते हैं वैसा ही कर रहे हैं क्योंकि उनके पास भारी बहुमत है।
कांग्रेस के ही निलंबित सांसद रिपुन बोरा ने कहा कि यह पूरी तरह से अलोकतांत्रिक है; लोकतंत्र और संविधान की हत्या। हमें सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया है। यह एकतरफा, पक्षपाती, प्रतिशोधी निर्णय है। विपक्षी दलों से सलाह नहीं ली गई। हमने पिछले सत्र में विरोध किया था। हमने किसानों, गरीब लोगों के लिए विरोध किया था और सांसदों के रूप में यह हमारा कर्तव्य है कि हम उत्पीड़ित, वंचितों की आवाज उठाएं। संसद में आवाज नहीं उठाएंगे तो कहां करेंगे?
शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक एक आरोपी को वहां भी सुना जाता है, उनके लिए वकील भी उपलब्ध कराए जाते हैं, कभी-कभी सरकारी अधिकारियों को उनका पक्ष लेने के लिए भेजा जाता है। यहां हमारा पक्ष नहीं लिया गया। निलंबित एक प्रियंका ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज देखें तो यह साफ पता चलता है कि कैसे पुरुष मार्शल महिला सांसदों से अभ्रदता कर रहे थे। एक तरफ ये सब और दूसरी तरफ आपका फैसला? यह कैसा असंसदीय व्यवहार है?