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मोदी सरकार के तीन काले अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार, राहुल गांधी का केंद्र पर हमला

  • by: news desk
  • 14 September, 2020
मोदी सरकार के तीन काले अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार, राहुल गांधी का केंद्र पर हमला

नई दिल्ली: कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर हमला बोला है|  कृषि अध्यादेशों के मुद्दे को लेकर कांग्रेस नेता राहल गांधी ने मोदी सरकार पर हमला बोला है| कृषि अध्यादेशों के मुद्दे पर कांग्रेस नेता ने कहा कि,'' PM नरेंद्र मोदी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र। मोदी सरकार के तीन 'काले' अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं|





कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया,''किसान ही हैं जो ख़रीद खुदरा में और अपने उत्पाद की बिक्री थोक के भाव करते हैं। मोदी सरकार के तीन 'काले' अध्यादेश किसान-खेतिहर मज़दूर पर घातक प्रहार हैं ताकि न तो उन्हें MSP व हक़ मिलें और मजबूरी में किसान अपनी ज़मीन पूँजीपतियों को बेच दें। मोदी जी का एक और किसान-विरोधी षड्यंत्र।




बता दें कि किसानों ने आशंका जताई है कि इन अध्यादेशों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म करने का रास्ता साफ होगा और वे बड़े कॉरपोरेट घरानों की ‘दया’ के भरोसे रह जाएंगे. वे इन अध्यादेशों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं|




मोदी सरकार के कृषि अध्यादेशों के खिलाफ 10 सितंबर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र में जमकर हंगामा हुआ| 'किसान बचाओ मंडी बचाओ' रैली की अनुमति न मिलने पर किसानों ने जाम लगाया तो पुलिस ने उन पर लाठी चार्ज किया| इन अध्यादेशों को वापस न लेने पर दोबारा आंदोलन की चेतावनी दी गई है|इस मुद्दे को लेकर पंजाब में किसान ट्रैक्टर आंदोलन कर चुके हैं और व्यापारी चार राज्यों में मंडियों की हड़ताल करवा चुके हैं| कुल मिलाकर इसके खिलाफ किसान और व्यापारी दोनों एकजुट हो गए हैं| हालांकि, केंद्र सरकार इसे कृषि सुधार की दिशा में मास्टर स्ट्रोक बता रही है|मोदी मंत्रिमंडल ने 3 जून को दो नए अध्यादेशों पर मुहर लगाई थी और EC Act में संशोधन की मंजूरी दी थी|





अन्नदाताओं के लिए काम करने वाले संगठनों और कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस अध्यादेश के बाद किसान अपने ही खेत में सिर्फ मजदूर बनकर रह जाएगा| केंद्र सरकार पश्चिमी देशों के खेती का मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है|कांट्रैक्ट फार्मिंग में कंपनियां किसानों का शोषण करती हैं|उनके उत्पाद को खराब बताकर रिजेक्ट कर देती हैं| दूसरी ओर व्यापारियों को डर है कि जब बड़े मार्केट लीडर उपज खेतों से ही खरीद लेंगे तो आढ़तियों को कौन पूछेगा| मंडी में कौन जाएगा|




इससे पहले कांग्रेस ने कहा था कि पांच जून को अध्यादेश के जरिए भाजपा ने तीन केंद्रीय कानूनों को प्रवर्तित कर दिया। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि भाजपा किसानों को गुलाम बनाने के लिए 'ईस्ट इंडिया कंपनी' की तरह व्यवहार कर रही है। रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था, "पहले मोदी सरकार किसानों का जमीन का अधिग्रहण करने के लिए कानून लेकर आई और अब सरकार किसानों के उत्पाद का अधिग्रहण करने के लिए कानून लेकर आई है।




शनिवार को रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा था कि,''किसान-खेत मजदूर-आढ़ती-अनाज व सब्जी मंडियों को जड़ से खत्म करने के तीन काले कानूनों की सच्चाई 10 बिंदुओं से उजागर होती है- 1. APMC को खत्म करने से ‘कृषि उपज खरीद व्यवस्था’ पूरी तरह नष्ट हो जाएगी। ऐसे में किसानों को न तो MSP मिलेगा और न ही बाजार भाव के अनुसार फसल की कीमत।




2. अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था किसान की फसल की सही कीमत,वजन व बिक्री की गारंटी है अगर किसान की फसल मुट्ठीभर कंपनियां मंडी में सामूहिक खरीद की बजाय उसके खेत से खरीदेंगे तो मूल्य निर्धारण, वजन व कीमत की सामूहिक मोलभाव की शक्ति खत्म हो जाएगी स्वाभाविक तौर से नुकसान किसान को होगा



3.मोदी सरकार का दावा- अब किसान अपनी फसल देश में कही भी बेच सकता है, पूरी तरह सफेद झूठ है कृषि सेंसस 2015-16 के मुताबिक देश का 86% किसान 5acre से कम भूमि का मालिक है ऐसे में 86% किसान अपनी उपज नजदीक अनाज मंडी-सब्जी मंडी के अलावा कही और ट्रांसपोर्ट कर न ले जा सकता न बेच सकता




4. मंडियां खत्म होते ही अनाज-सब्जी मंडी में काम करने वाले लाखों-करोड़ों मजदूरों, आढ़तियों, मुनीम, ढुलाईदारों, ट्रांसपोर्टरों, शेलर आदि की रोजी रोटी और आजीविका अपने आप खत्म हो जाएगी।



5.  अनाज-सब्जी मंडी व्यवस्था खत्म होने के साथ ही प्रांतों की आय भी खत्म हो जाएगी। प्रांत ‘मार्केट फीस’ व ‘ग्रामीण विकास फंड’ के माध्यम से ग्रामीण अंचल का ढांचागत विकास करते हैं व खेती को प्रोत्साहन देते हैं। 



6. कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अध्यादेश की आड़ में मोदी सरकार असल में ‘शांता कुमार कमेटी’ की रिपोर्ट लागू करना चाहती है,ताकि एफसीआई के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद ही न करनी पड़े व सालाना 80,000 से 1 लाखCr की बचत हो इसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव खेत खलिहान पर पड़ेगा



7. अध्यादेश के माध्यम से किसान को ‘ठेका प्रथा’ में फंसाकर उसे अपनी ही जमीन में मजदूर बना दिया जाएगा। क्या 2 से 5 एकड़ भूमि का मालिक गरीब किसान बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ फसल की खरीद फरोख्त का कॉन्ट्रैक्ट बनाने, समझने व साईन करने में सक्षम है? साफ तौर से जवाब नहीं में है!



8. कृषि उत्पाद,खाने की चीजों व फल-फूल-सब्जियो की स्टॉक लिमिट को पूरी तरह से हटाकर आखिरकार न किसान को फायदा होगा और न ही उपभोक्ता को बस चीजो की जमाखोरी-कालाबाजारी करने वाले मुट्ठीभर लोगो को फायदा होगा वो सस्ते भाव खरीदकर, कानूनन जमाखोरी कर महंगे दामों पर चीजों को बेच पाएंगे



9. अध्यादेशों में न तो खेत मजदूरों के अधिकारों के संरक्षण का कोई प्रावधान है और न ही जमीन जोतने वाले बंटाईदारों या मुजारों के अधिकारों के संरक्षण का। ऐसा लगता है कि उन्हें पूरी तरह से खत्म कर अपने हाल पर छोड़ दिया गया है। 




10. ‘खेती’ व ‘मंडियां’ संविधान के 7वे शेड्यूल में प्रांतीय अधिकारों के क्षेत्र में आते है। परंतु मोदी सरकार ने प्रांतों से राय करना तक उचित नहीं समझा। खेती का संरक्षण और प्रोत्साहन स्वाभाविक तौर से प्रांतों का विषय है, परंतु उनकी कोई राय नहीं ली गई।











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