शिव तत्व में समाहित जीवन का अद्भुत सार:डॉ. रीना रवि मालपानी, लेखिका

नई दिल्ली:
आठ पहर आराधिये, ज्योतिर्लिंग शिव रूप।।
नैनन बीच बसाये, शिव का रूप अनूप।।
सृष्टि के कल्याण और मंगल के लिए शिव ने स्वयं को साक्षात लिङ्ग रूप में स्थापित किया है। शिव का स्मरण आत्मा में आनंद की धारा प्रवाहित करने वाला है। महादेव का ध्यान ही अनेक सुखों का उद्गम स्थल है। शिवशम्भु का नाम और दर्शन ही मनुष्य के अनेक कष्ट को हरने के लिए पर्याप्त है। शिव ईश्वर का सबसे सरल, पवित्र और शक्तिशाली नाम है। सच्चे हृदय से शिव का स्मरण करने से अनेक पाप क्षण भर में नष्ट हो जाते है।
शिव तत्व में समाहित अनेक शिक्षाओं को हम अपने जीवन से जोड़ सकते है। जैसे त्रिकालदर्शी शिव त्रिनेत्रधारी है वे दो नेत्रों से बाहरी दृष्टि और तीसरे नेत्र से अंतर्मन में झाँकते है। मनुष्य को भी जीवन मे अपने बाहर और भीतर में अवलोकन करने वाला होना चाहिए। शिव उमापति की अंतर्दृष्टि हमे स्वमूल्यांकन को प्रेरित करती है।
उमापति नागेश्वर तो वे देव है जिन्होंने काम को भस्म कर विजय प्राप्त की है। उमाकांत तो जीवन में उपासना को महत्व प्रदान करते है वासना को नहीं। जगपालनकर्ता शिव ने तो जीवन से कामनाओ का भी अंत कर दिया। उन्हें सिर्फ राम आराधना, राम दर्शन,राम कथा श्रवण और अपने आराध्य राम नाम के अनवरत जप की ही मनोकामना रहती है। शिव के आराध्य देव श्रीराम एवं श्रीराम के ईश्वर रामेश्वर है। महादेव पार्वती से कहते है की राम नाम विष्णुसहस्त्रनाम के तुल्य है और में सदैव राम नाम का ही भजन करता हूँ।
राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने॥
विश्वनाथ शम्भु बहिर्मुखी होने के बजाए अंतर्मुखी होने पर बल देते है। वे महायोगी,परमार्थी, भक्तवत्सल, अभिमानमुक्त, क्षमावान एवं भक्त की मनोवांछित मनोकामना को पूर्ण करने में सक्षम है। शिव तत्व का एक और अनोखा सूत्र विशिष्ट है। भगवान चंद्रशेखर की गृहस्थी में अजीब सा विराधाभास होने पर भी सर्वत्र शांति व्याप्त है। शिव का वाहन नंदी और शक्ति का वाहन शेर है और दोनों का परस्पर वैमनस्य रहता है परंतु फिर भी शिव परिवार में यह दोनों प्रेमपूर्वक साथ में रहते है।
इसी प्रकार कार्तिकेय का वाहन मोर एवं शिव के गले मे सर्प की माला, इन दोनों का भी वेर जगजाहिर है। विनायक का वाहन चूहा और शिव का सर्प, इतने सारे विरोधभास होने के बाद भी शिव परिवार में कोई वैमनस्य उत्पन्न नहीं होता है, सर्वत्र शांति ही व्याप्त है। इसी प्रकार घर को भी शिवालय का रूप देने के लिए घर के समस्त सदस्यों के स्वत्रंत अस्तित्व का सम्मान करना चाहिए। अलग जीवन, अलग विचार होते हुए भी सबके प्रति सदभाव रखना होगा।
शिव तत्व को जीवन मे निहित करके हम भोजन को प्रसाद, संगीत को भजन, कर्म को पूजा, यात्रा को तीर्थयात्रा एवं जीवन को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बना सकते है। शिव तो जीवन मे भव्यता को छोड़कर दिव्यता को स्थान देते है। आइये श्रावण के अंतिम सोमवार शिव का आह्वान करे शिव गायत्री मंत्र से:-
ॐ तत्पुरुषाय विद्महि महादेवाय धीमहि तानो रुद्र प्रचोदयात।।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)
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