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“AAP का तथाकथित शिक्षा मॉडल बेनकाब...”: कांग्रेस का बड़ा हमला, कहा- केजरीवाल सरकार का शिक्षा का कोई मॉडल नहीं, बल्कि ‘फ्रॉड और मॉडलिंग का मॉडल’; पेश किये आंकड़े ..

  • by: news desk
  • 24 September, 2022
“AAP का तथाकथित शिक्षा मॉडल बेनकाब...”: कांग्रेस का बड़ा हमला, कहा- केजरीवाल सरकार का शिक्षा का कोई मॉडल नहीं, बल्कि ‘फ्रॉड और मॉडलिंग का मॉडल’; पेश किये आंकड़े ..

नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को आरोप लगाया कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार शिक्षा के जिस मॉडल का प्रचार करती है, वो असल में ‘फ्रॉड और मॉडलिंग का मॉडल’ है।  कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा राजधानी में 1 शिक्षा मॉडल आजकल बिक रहा है लेकिन जो हमारी समझ कहती है कि यह मॉडलिंग का मॉडल भी नहीं, फरेबी और फरेब का मॉडल है।  दिल्ली की केजरीवाल सरकार का शिक्षा का कोई मॉडल नहीं, बल्कि ‘फ्रॉड और मॉडलिंग का मॉडल’ है | उन्होंने कहा कि, AAP के तथाकथित शिक्षा मॉडल को बेनकाब करना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि कहीं दूसरे राज्यों में चल रही शिक्षा व्यवस्था इनके झांसे में आकर इस तथाकथित मॉडल को अपना बर्बाद ना हो जाएं|



प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा-,' मैं पिछले कई वर्षों से, खासकर 2018-19 से जो आम आदमी पार्टी काम कर रही है दिल्ली में, उन पर अकसर अपनी बात रखता रहा है, अपनी टिप्पणी देता रहा हूँ। मेरे हिसाब से सरकार की गंभीर नाकामियों को उजागर करता रहा हूं। धीरे-धीरे समय निकला और आम आदमी पार्टी ने आज जो भी उसको समझ थी उसके काम की, उसको एक नए तरीके से, नए-नए नाम देकर, विशेषकर आज कल एक बड़ा नाम चलता है, जिसको मॉडल कहा जाता है, उस नाम को अकसर लोगों के बीच में डालने की कोशिश में तो मेरा संवाद चला। हमने कोशिश की, पार्टी से भी बात हुई, कि नहीं जो चल रहा है, देखिए एक होता है कि चलिए थोड़ा-बहुत आपकी उपलब्धि है, उसके बारे में आप डींगे मार लीजिए, लेकिन जब ये दिखता है कि सरकार ऊपर से नीचे तक एक चीज कहे जाती है, वो या तो झूठ होती है, या किसी दूसरे के काम पर आधारित होती है, तो दायित्व बनता है, उस बात को सामने लाकर उजागर करने का।



उन्होंने कहा कि, तो इसलिए आज हमारी कोशिश रहेगी कि इनका जो शिक्षा का मॉडल है, खासकर जिसे कहते हैं, उनके सबसे ओपनिंग बैट्समैन होते हैं, वो शिक्षा की बात करते हैं, उस पर मैं कुछ तथ्यों के साथ असली हकीकत दिल्ली की रखना चाहता हूँ।



 कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि,  पहली चीज, जिसके बारे में ये कहा जाता है, वर्ल्ड क्लास एजुकेशन का मॉडल और ये बार-बार उसमें अपने रिजल्ट की बात करते हैं। रिजल्ट के पीछे की हकीकत तो दो आंकड़ों में ही अपने आप स्पष्ट हो जाती है। 1998-99 में जब कांग्रेस की सरकार आई थी, तो दिल्ली सरकार के जो स्कूल थे, 12वीं में उसमें 64 प्रतिशत बच्चे पास हुआ करते थे। 2013-14 में, हमारी सरकार हारी दिसम्बर में पर आप ये समझ लीजिए, 2013-14 का जो रिजल्ट था, 89 प्रतिशत पहुंच गया था। मतलब 25 प्रतिशत के करीब रिजल्ट हमारा बढ़कर आया। लेकिन आपने उस समय न कोई मॉडल की बात सुनी होगी, न ढिंढोरे की, न बैंड बाजे की बात सुनी होगी, तो 89 प्रतिशत पहुंचा था। 



संदीप दीक्षित ने कहा कि,अमूमन आप मानिए, 15 साल में अगर 25 प्रतिशत बढ़ता है, तो सवा डेढ़ प्रतिशत के करीब रिजलट हमारा हर साल बढ़ा करता था और कोई भी सरकार उसके बाद आती तो हर साल एक, डेढ़ प्रतिशत तो बढ़ना ही था, वही आज हाल है।  आज इनकी 12वीं में 96 प्रतिशत है और इसलिए मैं ये कहना चाहता हूँ कि ये कौन सा मॉडल है कि 25-26 प्रतिशत जब बढ़ता है, तो मॉडल नहीं माना जाता है और मुश्किल से 8 प्रतिशत में रेंगते-रेंगते 7 प्रतिशत बढ़ता है, उसको आप मॉडल मान लेते हैं और वही नहीं, 2013-14 में करीब 1,60,000 बच्चों ने 12वीं का इम्तिहान दिया था, वो अगर ये कोविड का साल न लें, जिसमें कुछ बच्चे बड़े हैं, प्राईवेट स्कूलों में आज भी वो 1,60,000 हैं, तो कभी 1,50,000, 1,40,000, 1,45,000 के बच्चे सामान्यतः दिल्ली सरकार के स्कूलों में 12वीं का इम्तिहान देते हैं। 



दीक्षित ने कहा कि,  'अभी तो आप मानेंगे कि 8 साल में अगर 8 साल पहले डेढ़ से दो लाख बच्चे इम्तिहान देते थे, तो दो, ढाई, तीन लाख बच्चे तो कम से कम आने चाहिए थे, न उन स्कूलों में। जहाँ ये कहा जाता है कि न केवल दिल्ली सरकार के बच्चे तो रहते ही हैं, प्राईवेट स्कूल के बच्चे कूद-कूदकर दिल्ली सरकार के स्कूलों में भाग रहे हैं, लेकिन यहां हमें कहानी विपरीत दिखाई देती है। चलिए 12वीं में मुश्किल से ये वो गति रख पाए, जो हमारी सरकारों ने 15 साल रखी था।



उन्होंने कहा कि, अब आते हैं, 10वीं पर, जो लोग शिक्षा के बारे में जानते हैं, वो जानेंगे कि 10वीं जितनी यंग क्लास की होती है, वो ज्यादा महत्वूपर्ण क्लासेज होती हैं। 1998 में दिल्ली सरकार के बच्चे का जो पास प्रतिशत था, 10वीं के बोर्ड इम्तिहान में, वो 34 प्रतिशत था। यही 34 प्रतिशत 2010, मैं आपको बताऊँगा, मैं 2010 का आंकड़ा ही क्यों ले रहा हूँ, 2010 में 34 प्रतिशत का पास बढ़कर हो गया, 89 प्रतिशत पर, 88 से 89 प्रतिशत पहुंचा। मतलब समझ लीजिए, 55 प्रतिशत के करीब नंबर बढ़ गए और तब भी आपने पिटता हुआ ढोल नहीं सुना होगा कहीं, और न इश्तेहारों में, सीएम साहब को देखा होगा, न हमारे बच्चों को झंडा लेकर भागते देखा होगा, न किसी विदेशी से आर्टिकल लिखते पाए होंगे, न उसके इश्तेहार पाए होंगे। 



उन्होंने कहा कि, '2010 के बाद यही आंकड़ा 89 प्रतिशत से 99 प्रतिशत पहुंचा, लेकिन हम उस 99 प्रतिशत को केजरीवाल की तरह अपनी उपलब्धि इसलिए नहीं बताते हैं क्योंकि 2010 के बाद जब आरटीई आया, तब 10वीं के बोर्ड एग्जाम ही खत्म हो गए और इंटर्नल एग्जाम होने लगे और इंटर्नल एग्जाम में आप जानते हैं, हर बच्चे को पास कर दिया जाता है। जैसे पिछली बार केजरीवाल के भी 10वीं के रिजल्ट, 98-99 प्रतिशत थे, क्योंकि इंटरनल थे। लेकिन जब आपसे 3-4 साल पहले मोदी सरकार ने कहा कि नहीं, 10वीं में भी बोर्ड इम्तिहान होने चाहिए, तो सबसे पहली बार जब बोर्ड इम्तिहान होता है दिल्ली का तो केजरीवाल मॉडल के अंदर आप लोग अचंभित रह जाएंगे, 10वीं का पास प्रतिशत गिरता है, 72 प्रतिशत पर, उसके अगले साल 80 प्रतिशत पर और इस साल 81 प्रतिशत पर। अब आप ये आंकड़ा क्यों नहीं दिखाते?



 कांग्रेस नेता दीक्षित ने कहा कि,  'ये जो हमारे समय में 89 प्रतिशत हो गया था, जो मेरे ख्याल से बढ़कर कम से कम 95-96-97 प्रतिशत तो आज हो ही जाना चाहिए था, वो बढ़कर 80 प्रतिशत पर आ जाता है, यानि 20 प्रतिशत दिल्ली का बच्चा अपना भविष्य दसवीं में ही बर्बाद कर लेता है और इसमें एक और आंकड़ा मैं आपको देना चाहता है, जिस बात का विशेष ध्यान रखिएगा। आप लोग तो सब जानते हैं, शिक्षा के बारे में जानते हैं, शिक्षा में एक नंबर होता है, जिसको ड्रॉप आउट रेट कहा जाता है, एक कक्षा से जब दूसरी कक्षा में बच्चे जाते हैं, तो उनकी संख्या में कितनी कमी आती है, या कितने बढ़ते हैं, तो स्वयं दिल्ली सरकार के आंकड़े, जो पार्लियामेंट के एक सवाल में भी प्रस्तुत किए गए थे और किसी दिल्ली सरकार के मंत्री ने उन आंकड़ों पर सवाल नहीं खड़ा किया था।



 9वीं से 10वीं तक जाने का जो डॉप आउट रेट है, वो 14 से 15 प्रतिशत है। ये अभूतपूर्व है हिंदुस्तान में कहीं और ऐसी स्थिति नहीं है। क्योंकि ये जानकर इसलिए करते हैं, मैं सीधे-सीधे इल्जाम लगाता हूँ, जो बच्चे इनके सिस्टम में ये समझते हैं, काबिल नहीं होते पास करने के उनको ये 9वीं में ही रोक लेते हैं। तो माना जाए 80 प्रतिशत आज भी पास नंबर नहीं है। अगर 9वीं के हिसाब से मानें तो आज भी इनका पास प्रतिशत 65 से 70 प्रतिशत है।



उन्होंने कहा कि, अब इन दो आंकड़ों को आप अगर पास का ही ले लेंगे, तो आप रंग-रोगन कर लीजिए स्कूलों में, पेंटिंग कर लीजिए स्कूलों में, उनके जितने फर्श हैं उन पर आप कालीन बिछा दीजिए, आप संगमरमर लगा लीजिए, आप एक की जगह 3 पंखे डाल दीजिए, कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर हमारे बच्चे पास नहीं हो रहे हैं तो। ये तो बात होती है, जहाँ तक इनके रिजल्ट की बात आती है और आप देखिएगा, जब भी ये ढिंढोरा पीटते हैं, कभी 10वीं का तो रिजल्ट बताने में ही ये लोग दूर भागते हैं। 



दीक्षित ने कहा कि,'फिर आ जाते हैं इनरोलमेंट में क्योंकि हमने बार-बार सुना है और मुख्यमंत्री ने भी अभी हाल में कहा कि ढाई लाख बच्चे प्राईवेट स्कूलों से सरकारी स्कूलों में आ गए। आपने भी आंकड़ा सुना होगा, जगह जगह इसका ढोल भी पिटता है। हमें बड़ी रुचि हुई, हमने कहा बहुत अच्छा है। दिल्ली सरकार में जब कांग्रेस की सरकार आई थी, तो दिल्ली सरकार में 8 लाख बच्चे पढ़ते थे, और जब शीला जी को आप लोगों ने हराया दिल्ली में तो 16,20,000 बच्चे पढ़ते थे। 4 से 5 प्रतिशत प्रति वर्ष बढ़ता चला जाता था।



कांग्रेस नेता ने कहा कि,याद रखिए, हमारी पॉप्यूलेशन ग्रोथ है, ढाई प्रतिशत, बच्चे बढ़ते थे, 5 प्रतिशत के करीब। अगर 5 प्रतिशत का हम अगर आंकड़ा मान लें कि 4 या 5 प्रतिशत पर बढ़ता चला जाना चाहिए था, तो इस समय करीब 21-22 लाख बच्चे होने चाहिए थे, दिल्ली सरकार के स्कूलों में बल्कि और ज्यादा, क्योंकि न केवल वो आ रहे हैं, जो आ सकते थे, ढाई लाख तो प्राईवेट के भी बच्चे कूदकर आए हैं, लेकिन अगर पिछले साल का आप आंकड़ा ले लें, इस साल तो कोविड के कारण पूरे हिंदुस्तान में गवर्मेंट सिस्टम में बच्चे बढ़े हैं, तो पिछले साल 15 लाख थे और इस साल 16,10,000 थे। अब ये कौन सा सिस्टम है, जिसमें 8 साल पहले से भी बच्चे कम हो जाते हैं। ढाई लाख प्राईवेट से भी ज्वाइन कर लेते हैं, फिर भी ओवर ऑल बच्चे कम हो जाते हैं। ये आंकड़ा मेरी समझ से तो बाहर है। इसलिए दिखता है कि सारी की सारी शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता केवल इश्तेहार में और बैंड बाजे में है, और कहीं नहीं है। नहीं तो कोई मुझे समझा दीजिए कि जहाँ आज 21 से 22 लाख बच्चे होने चाहिए थे, वहाँ 16 लाख बच्चे क्यों हैं, ये 6 लाख बच्चे कहाँ चले गए? यही 10वीं के रिजल्ट्स का भी है, यही 12वीं के रिजल्ट्स का भी है, यही इनरोलमेंट का है। 



कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने कहा कि,चलो ये सब छोड़ देते हैं और इनका जो शिक्षा का मॉडल है, तो मैं उसको एक पुराना नाम देता हूँ, जिसको मैं 'ठेकेदारी का मॉडल' कहता हूँ, इनका सारा काम ठेकेदारी का है और कुछ नहीं है। इन्होंने कहा कि आपको याद होगा, इनके मैनिफेस्टो में कहा था, 500 नए स्कूल हम बनाएंगे, चलो 500 नहीं बनते, उसका 10 प्रतिशत बना देते। 15 साल जब कांग्रेस की सरकार थी, हमने 142 नए स्कूल बनाए थे, नई बिल्डिगे, नए प्ले ग्राउंड, नई जमीनें। ये वो स्कूल नहीं थे कि मॉर्निंग के साथ इवनिंग जोड़ दिया तो उसे दो स्कूल बना दिए। ये पूरे के पूरे 142 नए स्कूल बने थे।



हमारे समय में 1,006 स्कूल थे, आज 1026, स्कूल हैं। अब ये कौन सा क्रांतिकारी परिवर्तन हो गया? फिर ये दिखाते हैं कि हमने रंग-रोगन बहुत सुंदर किया। बहुत अच्छे से हमने उसमें कलाकृति की, नएनए स्कूल बनाए और 24 हजार, 25 हजार का ये आंकड़ा दिया करते थे, कमरे का, वो तो बड़ा अच्छा लगा मुझे, जब कल-परसों टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा कि 24 हजार तो छोड़िए, जब आरटीआई से पता किया तो 7 हजार कमरे और 7 हजार कमरों में भी जब पता किया, तो पता चला कि 4 हजार कमरे हैं, क्योंकि इन्होंने टॉयलेट को भी कमरा दिखा दिया, प्रिंसीपल के दफ्तर को भी कमरा दिखा दिया और ये इनकी पुरानी आदत है। ये क्या चीज, क्या है, किसको क्या दिखाना है, कि ये पुरानी आदत है। 




दीक्षित ने कहा कि, मैं एक दूसरे विषय को लेकर इनकी जो आदत है, न क्या चीज है और उसको क्या दिखाने की, उसमें छोटा सा उदाहरण मैं आपके सामने दे देता हूँ, आप चाहोगे तो ये रिपोर्ट भी मैं आपको दिखा देता हैं। इनसे एक बार इनकी विधानसभा में पूछा गया कि कितने फ्लाई ओवर और कितने ब्रिज केजरीवाल साहब ने बनाए। अब कुछ तो दिखाना था, तो इन्होंने विधानसभा में जवाब दिया, 24 का और 24 की लिस्ट मैं आपको सामने पढ़ देता है, इसी से पता चल जाएगा कि इनकी जो पूरी ये जादूगरी है, वो रिपोर्टिंग की कैसी है और हकीकत की कैसी है। एक लिस्ट ये देते हैं, ये लिस्ट मेरे सामने है, कोई चाहेगा, तो इसको देख लीजिएगा। पहले आधी मैं आपके सामने पढ़ देता हूँ। 



कांग्रेस नेता ने कहा कि,''एलीवेटेड रोड़ ओवर बारापुल्ला, अब ये बारापुल्ला एलीवेटेड रोड़ कब बनी थी, आपको याद होगा, ये वही बारहपुल्ला की जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम से सड़क थी, जिसकी सीएजी की रिपोर्ट शीला जी के  समय आ गई थी। जिसकी रिपोर्ट भी मैडम के समय आ गई, उसको ये क्लेम करते हैं कि इन्होंने बनाई थी।



दूसरा आता है, आश्रम से नोएडा के फ्लाई ओवर में रैंप ए, रैंप बी, रैंप सी, रैंप डी, रैंप ई, रैंप एफ, रैंप जी, यानि अगर आपने घर में तीन जगह से सीढ़ियाँ बना दी तो ये कहेंगे कि तीन घर हैं, हमारे पास क्योंकि दक्षिण से भी चढ़ते हैं, उत्तर से भी चढ़तें है. पूर्व से भी चढ़ते हैं। अब ये तो इन्हीं की कहानियाँ हो सकती हैं। मैं मानता था कि 19 का 20 हो जाता है, लेकिन 19 का 19 हजार हो जाए, ये तो यही मॉडल हमको दिखाता है।



कांग्रेस नेता ने कहा कि,ये तो रही इनकी शिक्षा की कहानी, जहाँ तक इंफ्रास्ट्रक्चर की बात है। मैं आपको इस बात से अपनी बात अंत करूँगा, मैंने आपको रिजल्टस का बताया, कि 12वीं के रिजल्टस हमारे समय से भी बदतर निकले। बच्चे आने तो थे, स्कूल में वो हमारे से कम से कम 8 या 9 लाख कम हो गए, 6 लाख कम हो गए। हमारे 10वीं में जो रिजल्टस आने थे, वो तब से गिर गए, वो भी एक तब मैनेज कर पा रहे हैं, जब बच्चों को स्कूल से बाहर कर देते हैं, या इम्तिहान में नहीं बैठने देते हैं। 



उन्होंने कहा कि, आज टीचरों में ये हाल है, जो बात करते थे कि हम नौकरियाँ दिया करते हैं, इन्हीं की आरटीआई से जो मेरे पास है, मैं आपको दिखाना चाहूँगा, कांग्रेस के समय में करीब 7 या 8 हजार के करीब रिक्त पद थे, पूरे स्कूलों में मिलाकर, टीजीटी और पीजीटी मिलाकर, आज कुल रिक्त पद 20 हजार हैं। आप समझ लीजिए, हजार स्कूल हैं और 20 हजार पद रिक्त हैं, मतलब हर स्कूल में 20 टीचरों की कमी है, ये तो ऑफिशियल डेटा है, उसके ऊपर प्रिंसीपल कितने कम हैं. करीब 800 के करीब मैंने सना प्रिंसीपल कम है, उसकी बाकी चीजों में तो मैं जाना ही नहीं चाहता और जो बात मैं आखिरी में बताना चाह रहा था कि ये जो बार-बार आपने देखा होगा कि तस्वीरें दिखाते हैं बहुत सुंदर स्कूलों की, तो मैं केवल 2007 से लेकर 2011 के बीच में दिल्ली सरकारों में 12 से 14 हजार कमरों पर ये काम हुआ था, मैं कुछ की आपको तस्वीरें दिखाता हूँ, बड़ी मुश्किल से ये तस्वीरें मिली, क्योंकि मुझे बड़ी दिक्कत थी कि न मैं, न उस समय की हमारी मुख्यमंत्री जी, न हमारे मंत्री, न हमारे कांग्रेसियों में ये सेल्फी कल्चर था, ये था नहीं, नहीं तो हम भी काश जिस स्कूल में जाते, अगर सेल्फियाँ ले ली होती तो हमारे पास भी फोटो होती, तो मैं आग्रह करूँगा कि उनकी फोटो दिखाई जाए। 



केवल मैं आपके माध्यम से हिंदुस्तान को भी दिखाना चाहता हूँ कि जिन कमरों की तस्वीरों को दिखाया जाता है, वो कैसे हैं। ( कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने वर्ष 2007 के बाद 2011 में स्कूलों में हुए सुधार और रुपांतरण की स्थिति दिखाने वाली फोटो दिखाई)



उन्होंने कहा कि, 'हमने जो तस्वीरें दिखाई थीं, वो पहले और बाद की हैं, और वो जो एंड का है, वो 2011 की तस्वीरें हैं। ये 2011-12 में बन गया था। ये जो मॉर्डनाइज तस्वीरें हैं, ये आज की नहीं हैं। ये प्रोजेक्ट रुपांतरण 2007 से 2011 के बीच में चला है और मेरे पास उसकी छोटी प्रस्तुति है, बाकी कई स्कूलों का मेरे पास है, अगर आप लोग देखना चाहो तो।



संदीप दीक्षित ने कहा कि, ये भी इसी तरह की तस्वीरें दिखाते हैं, पुरानी बिल्डिगें और नई बिल्डिगें, बिल्कुल वही हैं, तब भी वही होता था, आज भी वही होता है। उसी तरीके का बदलाव ये नए स्कूल उस समय भी बन रहे थे, आज भी वही बन रहे हैं। ये बिफोर, आफ्टर की तस्वीरें हैं।



उन्होंने कहा कि, मैं ये केवल आपको छोटा सा दर्पण देना चाहता हूँ, कम से कम 40-50 स्कूलों की फोटो, जो बड़ी मुश्किल से मुझे मिल पाई। वो तो मेरे पास संग्रह करके रखी हुई हैं। बाकी किसी को आवश्यकता हो, एजुकेशन डिपार्टमेंट से आप तस्वीरें ले लीजिएगा, अपने आप पता चल जाएगा कि न इंफ्रास्ट्रक्चर में ये बेहतर कर पाए, न रिजल्ट में ये बेहतर कर पाए, न टीचरों में ये बेहतर कर पाए और न गुणवत्ता में ये बेहतर कर पाए और जहाँ तक रिजल्ट की बात है, पहले से घटिया रिजल्ट इस शिक्षा प्रणाली का रहा है। कहने को पानी व्यवस्था में जो बर्बादी हुई है, उसमें मैं अभी नहीं जाना चाहता, इंफ्रास्ट्रक्चर में जिस तरह से दिल्ली आज चरमरा रही है, उसमें आज नहीं जाना चाहता। 



दीक्षित ने कहा कि, 'हमारा एम्पलॉयमेंट रेट, जो सुना है कि साढ़े बारह लाख नौकरियों इन्होंने दी हैं, उसमें एक आंकड़ा, बल्कि दो इंट्रेस्टिंग आंकड़े बताता हूँ। हमारे समय में 2014 में अनएम्पलॉयमेंट सर्वे में दिल्ली में 4.4 प्रतिशत अनएम्पलॉयमेंट माना जाता था, यानि 25 लोगों में एक व्यक्ति बेरोजगार हआ करता था। आज का आंकड़ा और ये कोविड के पहले का मैं बता रहा हूँ, समझ लेते हैं कोविड में बर्बादी हुई होगी, 11 प्रतिशत था ये। मतलब हर 10वां बच्चा आज सड़क पर बेरोजगार घूम रहा है। तो कौन सी इन्होंने 12- 12.5 नौकरियाँ दी हैं, वो तो मैं नहीं जानता है, लेकिन इनसे जब हमारे एक मित्र ने आरटीआई में पूछा कि चाहे एम्पलॉयमेंट एक्सचेंज ले लीजिए, चाहे बाकी एक्सचेंज ले लीजिए, तो उसमें बताईए कि पिछले 8-9 साल में आपने कितनी नौकरियाँ मुहैया करवाई?



तो मुझे आरटीआई पर खुद विश्वास नहीं हो रहा है क्योंकि इतनी निकम्मी सरकार तो हिंदुस्तान में कहीं नहीं रही होगी, लेकिन फिगर आया 440 का। अब 12.5 लाख 440 कैसे हो गए, या तो हो सकता है, आरटीआई डिपार्टमेंट में बाहर से मिलीभगत हो गई हो, कोई एजेंट मिल गए हों, क्या हो गया हो, वो ये ही जानें। मैं इसलिए आपके माध्यम से ये आग्रह जरुर करूँगा कि इनका शिक्षा का जो मॉडल है इस पर सवाल करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि खुदा न करे, भगवान न करें अगर और राज्य इस मॉडल को अच्छा समझकर कॉपी करने लगे, तो अच्छी-खासी जो शिक्षा व्यवस्थाएं इस देश के राज्यों में चल रही हैं, वो कहीं दिल्ली की तरह बर्बाद न हो जाएं।



एक प्रश्न के उत्तर में श्री दीक्षित ने कहा कि मैं यह दिखा रहा था कि क्या हुआ, स्कूल जैसे थे, हमारे समय में 140 के करीब नए स्कूल बने, 15 साल में। समझ लीजिए कि 1,006 थे, तो उसमें से 140 के करीब आप समझ लीजिए, कि करीब 850 लगभग स्कूल रहे होंगे। तो नए स्कूल तो बने ही बने थे, उसके साथ-साथ पुरानी बिल्डिंगों की मरम्मत करना, उनके कमरों को सुंदर करना, उनमें सुविधाएं ठीक करना, पंखे ठीक करना, बाथरूम ठीक करना, लेबोरेट्री ठीक करना, जहाँ टूटा था, उसकी मरम्मत करना, जहाँ कई ऐसे स्कूल थे, जो डेंजरस डिक्लेयर हो गए थे, उनको ठीक करना, मेरा ये कहना है कि ये काम आज का नहीं है. ये काम कोई सिसोदिया ने. या आतिशी जी ने या इन लोगों ने कोई नायाब काम नहीं किया, ये काम तो सब के सब पहले से चल रहे थे। 



उन्होंने कहा कि, 'हाँ, ये मैं मानता हूँ कि हमारे समय में 12 से 14 हजार के करीब कमरे ठीक हुए थे, इन्होंने एक आंकड़ा पब्लिक में डाला था, 24 हजार का, तो मैं कह रहा था कि अच्छा है, इन्होंने 10 हजार और कमरे कर दिए, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से पता चला कि वो 10 हजार भी नहीं हैं, बल्कि 4 हजार कमरे बनकर रह गए। इसको दिखाने का मेरा ध्येय यह था कि कोई भी ऐसा मापदंड नहीं है शिक्षा का, जिसमें ये कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों के आसपास भी आ सके हों। अगर ऐसा है तो यो फिर मॉडल क्या है? फिर ये मॉडल ही इनका मॉडल है, शिक्षा का मॉडल नहीं है।



एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री दीक्षित ने कहा कि मैंने आज से करीब 3 महीने पहले निजामुद्दीन पुलिस स्टेशन में सेक्शन 420 पर एक रिपोर्ट भेजी है, केजरीवाल के ऊपर, पुलिस के आईओ मेरे पास दो बार आ चुके हैं और ये केवल इस पर नहीं है, मैंने उसमें ये लिखा है कि इस आदमी का झूठ बोलने का एक  तरीका है, बल्कि वो अगर आप चाहें तो पीडबल्यूडी की चिट्ठी भी मैं आपको दे सकता हूँ, उसमें मैंने शुरु से कहा है, बल्कि, क्योंकि आपने जब ये सवाल पूछ ही लिया, तो आपने देखा होगा कि दिल्ली सरकार ने कई जगहों पर इश्तेहार दिया, आर्टिकल लिखवाए कि तमाम फ्लाई ओवरों पर इन्होंने दमादम पैसे बचाए थे, आपको याद होगा। उन्होंने 8 या 10 फ्लाई ओवर्स का आंकड़ा बहुत दिया है। वो अगर आप चाहें तो मैं आंकड़ा आपके सामने उसके तथ्य दे सकता हूँ। 



मैंने वो पूरे 8 के 8 फ्लाई ओवर पकड़े, उसमें इन्होंने ये कहा कि शीला जी के समय में जैसे एक उदाहरण देता हूँ, एक फ्लाई ओवर है 402 करोड़ रुपया वो खर्च करना चाहती थीं, मैंने उसको 280 करोड़ में बना दिया और 120 करोड़ में दिखाते हैं कि सत्येंद्र जी, ईश्वर उनकी मेमोरी ठीक करे, जल्दी उनको ये आंकड़े फिर से याद आएं, हो सकता है आंकड़ों की उनको दिक्कत तभी आ गई होगी, इसलिए झूठे आंकड़े बोलने लगे होंगे तो मेमोरी लॉस इसमें तो उन्होंने दिखाया ही दिखाया, बाकी वो क्या पुलिस को बोलते होंगे। 



संदीप दीक्षित ने कहा कि,;हमने जब इसके आंकड़े पता किए, तो ये हुआ कि डीपीआर इस प्रोजेक्ट का और ये आप मेरे सामने आंकड़े ले लीजिएगा, पूरे 8-9 प्रोजेक्ट्स का यही हाल है। डीपीआर जो डीटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट है, वो 2012 में बनती है। 2012 में केवल ये वहाँ बैठे थे, इंडिया अगेन्स्ट करप्शन में, कम से कम सरकार इनके हाथ में नहीं थी। जनवरी, या फरवरी, 2013 में कैबिनेट में टेक्नोलॉजी का रिवीजन होता है, फिर फरवरी, मार्च, अप्रैल, जून इन 3-4 महीनों के अंदर-अंदर 8 या 9 टेंडर होते हैं। तो जैसे जो 402 करोड़ का प्रोजेक्ट था, उसका टेंडर 280 करोड़ में होता है। जो 300 करोड़ का प्रोजेक्ट था, उसको 240 करोड़ में होता है और वही सेविंग जो है, ये बताते हैं। 



एग्जेक्टली वही फिगर। तो टेक्नोलॉजी हमारे समय में बदली, टेंडरिंग हमारे समय में हुई, पैसे की बचत हमारे समय में हुई, तो मेरा ये कहना है कि जिस सरकार ने पैसे बचाए, अगर वो ईमानदार सरकार है, तो इसका मतलब है केजरीवाल जी खुला-खुला कह रहे हैं कि दिल्ली की सबसे ईमानदार सरकार शीला जी की सरकार थी, उनकी नहीं और बल्कि उसी लॉजिक से मैं दो और आपको आंकड़े दिखा सकता हूँ, जिसके मेरे पास कागज हैं। 



 कांग्रेस नेता ने कहा कि, आप चाहो इस बंडल में ढूंढ़ना मुश्किल होगा, मैं उतना ऑर्गेनाइज्ड नहीं हूँ, जितना आम आदमी है। इनके समय में तीन नए प्रोजेक्ट सेंक्शन होते हैं। एक है करीब 960 करोड़ का, एक कोई 600 करोड़ का और उसकी अगर आप पीडबल्यूडी की वेबसाईट पर चले जाइए, 900 करोड़ के प्रोजेक्ट में आज भी 1,330 करोड़ खर्च हो चुके हैं वो स्टिल अनकंप्लीटेड है, ऐसे करके तीन प्रोजेक्ट हैं मेरे पास। अगर आप केजरीवाल का लॉजिक समझें, तो केजरीवाल खुले-खुले कह रहे हैं कि शीला जी की ईमानदार सरकार थी और मेरी कट्टर बेईमान सरकार है। अब ये उनका शब्द है, कट्टर का। ये उनके आंकड़े कह रहे हैं, बाकी ये कहना कुछ भी चाहें, लोग कुछ भी उसको इंटरप्रेट करना चाहे, वो तो साहब आपके ऊपर है।



एक अन्य प्रश्न के उत्तर में श्री दीक्षित ने कहा कि आ रहे होंगे, कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन मेरा सिर्फ ये कहना है कि शिक्षा मॉडल बेहतर है, मैंने आपके सामने 3-4 आंकड़े प्रस्तुत किए। आप उसमें आंकड़े लो, कि ये शिक्षा मॉडल है या क्या है। अगर रिजल्ट गिर जाते हैं, अगर स्कूलों में बच्चे कम आते हैं, अगर जितने स्कूल बनाने चाहिए, आप बना नहीं पाते हैं, टीचरों की कमी हो जाती है, आप साइंस नहीं पढ़ा पाते हैं, आप प्रिंसीपल्स नहीं दे पाते हैं, तो आप क्या कर रहे हो? आखिरकार हम बच्चे किसलिए स्कूल भेज रहे हैं कि सुंदर पंखे के नीचे बैठे वो, कि कमरा उसका लाल की जगह पीले रंग का हो जाए, कि उसके दो गड्डे नहीं एक भी गड्डा न रहे, कॉरीडोर में और वो भी मैंने दिखाया, ये काम तो बल्कि उनके आने से 6-7 साल पहले से चल रहा था। 



हमने जितने कमरे किए, उसमें केवल बढ़ोतरी करते चले गए हैं, वो तो स्वाभाविक है न। कोई एक मोमेंटम भी तो होता है न सरकार के काम का। अगर आप यही बात करना चाहते हैं, तो मैं एक और आंकड़ा मैं बोलकर खत्म करता हूँ। आपने देखा होगा ये कई बार कहते हैं कि मेरी मुनाफे की सरकार होती है, तो दिल्ली सरकार मुनाफे की 1995 से है। एक आंकड़ा होता है इकॉनमिक्स में जिसको रेवन्यू सरप्लस कहते हैं सीधा साधारण है कि साल में हम कितना कमाते हैं, और कितना खर्च करते हैं। जिसको रेवेन्यू सरप्लस कहा था, जिसके आंकड़े ये दिखाते हैं। 1995-96 से जब साहब सिंह वर्मा जी की सरकार थी, उनके पहले मदन लाल जी की सरकार थी, तब से दिल्ली रेवेन्यू सरप्लस है, दिल्ली आज से रेवेन्यू सरप्लस नहीं है। वो दूसरी बात है कि ये पहला साल है, जब दिल्ली रेवेन्यू में भी डेफिसिट में गया है। ये पहला साल है दिल्ली के इतिहास में।



उन्होंने कहा कि, रेवेन्यू सरप्लस मैं आपको बता दूं, सबसे ज्यादा रेवेन्यू सरप्लस दिल्ली सरकार का अगर किसी सरकार में हुआ था, तो 2010-11 में हुआ था, जहाँ पर कॉमन वेल्थ हुआ था, जिस साल, 10,011 करोड़ का हमारे पास रेवेन्यू सरप्लस था, आज कल भी 6 हजार करोड़, 2 हजार करोड़, 7 हजार करोड़ का रेवेन्यू सरप्लस होता है और सरप्लस तो होगा ही न साहब, हम अपने अधिकारियों की पेंशन नहीं देते हैं, वो भारत सरकार देती है। 



दिल्ली सरकार के अधिकारियों की भी भारत सरकार पेंशन देती है। हम पुलिस में पैसा नहीं खर्च करते और जो तीन बहुत बड़े खर्चे हैं और प्रदेशों में, एग्रीकल्चर पर हमारा जीरो खर्च है, इरीगेशन पर हमारा जीरो खर्च है और रुरल डेवलपमेंट में हमारा जीरो खर्च है, जब खर्च ही नहीं होगा, तो रेवेन्यू सरप्लस होगा, न। लेकिन दो आंकड़े तो कभी आप इनसे पूछ लीजिए, कि जो डीटीसी हमारे समय में 16-17 हजार करोड़ के नुकसान पर चलती थी, जब हमने बसें खरीदीं, जब हमने बस स्टॉप ठीक किए, जब हमने सीएनजी की प्रणाली लागू की, वो आज 40 हजार करोड़ के घाटे पर कैसे पहुंच गई? बस आप खरीद नहीं पाए, आप ईमानदार सरकार भी हैं। तो आपके समय में 22-25 हजार करोड़ का नुकसान कैसे हो गया, केवल 6-7 साल में जब आपने काम कुछ नहीं किया, पैसा कहाँ जा रहा है?


110000 करोड़ के घाटे में डीटीसी और दिल्ली जल बोर्ड
दूसरा मैं दिल्ली जल बोर्ड की बात कर लेता हूँ, दिल्ली जल बोर्ड का जब हमारी सरकार हटी थी, तो पिछले 50-60 साल में दिल्ली जल बोर्ड का करीब 18 हजार करोड़ का लॉस था, आज वो 60 हजार करोड़ पर है। अगर केवल आप डीटीसी और दिल्ली जल बोर्ड को ले लीजिए तो 1,10,000 करोड़ के घाटे में दिल्ली सरकार चल रही है। 3.5 लाख करोड़ के घाटे पर पंजाब में त्राही-त्राही हो रही है, जो हमसे समझ लीजिए, डबल इंजन का स्टेट है। उसके आधे स्टेट में होकर ऑलरेडी हम 1,10,000 करोड़ के घाटे में हैं, आने वाले 10 सालों में क्या होगा दिल्ली में अब आप ही इमेजिन कर लीजिए।



दिल्ली जल बोर्ड में 20 करोड़ का दैनिक गबन

एक अन्य (दिल्ली जल बोर्ड में व्याप्त भ्रष्टाचार) प्रश्न के उत्तर में श्री दीक्षित ने कहा कि ये तो आप समझिए कि शेर भाग गया, चूहा पकड़ रहे हो। मैंने 20 करोड़ तो दिल्ली जल बोर्ड में अगर आप दिल्ली जल बोर्ड के अधिकारियों से कह दें, कि उनकी सरकार ने 20 करोड़ का गबन किया, तो वो हंसने लगेंगे। वहाँ तो 20 करोड़ का शायद दैनिक गबन होता है। मैं एलजी साहब से भी आग्रह करूँगा कि जिस तरीके की खबरें हमें कम से कम दिल्ली सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार की आ रही हैं, अगर गंभीरता से उस पर वो काम करते हैं, तो 20 करोड़ क्या उसकी इसके 10 गुना भी उनको उदाहरण मिल जाएंगे।




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