आधुनिक हिंदी के निर्माता भारतेंदु ने बस्ती जिले के विषय में अपनी मेहदावल यात्रा के दौरान कही थी। ऐसे बस्ती में संत कबीर से लेकर आचार्य रामचंद्र शुक्ल तक अनेक साहित्यकारों ने जन्म लिया है।
इसी अवध की पावन भूमि में युवा आलोचक और लेखक डॉ. राजकुमार उपाध्याय "मणि" का जन्म बस्ती के नौली गांव में हुआ था। घर में बहुत गरीबी थी। इनकी बाल्यावस्था में पिता चतुर्भुज उपाध्याय का साथ छूट गया और माता मालती देवी का देहांत पीएचडी के दौरान स्वर्ग सिधार गईं। घर में कोई अभिभावक नहीं था।
इसलिए तीन छोटी बहनों की जिम्मेदारी इनके कंधों पर आ गई। लोक साहित्य के विद्वान् डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय और संस्कृत प्रकांड विद्वान् आचार्य बलदेव उपाध्याय के परिवार में काम करते हुए काशी में आपने पढ़ाई की। उनकी आरंभिक शिक्षा गांव में होने के उपरांत उच्च शिक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से हुई।
आपने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की एम ए हिंदी की प्रवेश परीक्षा और यूजीसी नेट जे आर एफ की प्रवेश परीक्षा में टॉप किया था। उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में पीएचडी शोध के दौरान 2004 से 2006 तक अध्यापन कार्य भी किया।
इसके पश्चात आपका चयन अरुणाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग में हुआ। इन्होंने अवध विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अपना अध्यापन कार्य शुरू किया, तत्पश्चात चित्रकूट विश्वविद्यालय और अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल में अपनी सेवाएं दीं।
इसके उपरांत छत्तीसगढ़ के सरगुजा विश्वविद्यालय, अंबिकापुर में 2014 से लेकर 2023 तक आदिवासी बहुल क्षेत्र में अपनी शिक्षा सेवा के द्वारा विशेष योगदान दिया।2009 में सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना के उपरांत यहां विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग संचालित हुआ जिसमें अध्यापकों का चयन 2014 में हुआ।
डॉ उपाध्याय यहां के हिंदी विभाग में आए और प्रयोजनमूलक हिंदी विभाग शुरू किया। यहां दस वषों तक अध्यापन कार्य किया तथा हिंदी विभाग के प्रथम अध्यक्ष के पद को गौरवान्वित किया।
विश्वविद्यालय के अनेक दायित्वों के साथ आप विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी भी रहे। यहां के लोगों द्वारा आपको अभूतपूर्व स्नेह और सहयोग मिला। इसी बीच कुछ समय के लिए आप हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला में भी अध्यापन कार्य किया।
इसके बाद एक वर्ष तक आप पंजाब केंद्रीय विश्वविद्यालय, बठिंडा में भी अपनी सेवाएं देने के उपरांत आपका चयन देश के सबसे बड़े विश्वविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली) के हिंदी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर हो गया, जिस विभाग को आचार्य डॉ नगेंद्र ने संस्थापित किया था।
वहां चयनित होने से उनके मित्रों ने हर्ष जताया है क्योंकि डॉक्टर उपाध्याय विगत 20 वर्षों से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सतत् अध्यापन कार्य कर रहे हैं। आपकी अनेक पुस्तकें अनेक विश्वविद्यालय के हिंदी विभागो में पढ़ाई जाती हैं।
आपकी अब तक 55 पुस्तकें देश के प्रतिष्ठित प्रकाशनों से प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य जगत् में "हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा", "हिंदी शब्दान्वेषी कोश" (हिंदी थिसारस), "मानसवर्णानुक्रम कोश" जैसी प्रसिद्ध कृतियों के द्वारा आपकी पहचान बनी हुई है।
आपके 65 शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। 200 से अधिक विविध आलेखों से आपने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। आप अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं के उत्तरदायित्व को भी निर्वहन किया है।
आप अखिल भारतीय नवोदित साहित्यकार परिषद् के राष्ट्रीय संयोजक और हिंदी साहित्य भारती के हिमाचल प्रदेश और पंजाब प्रांत के प्रभारी के रूप में भी अपना नेतृत्व प्रदान किया है।
देश की अनेक संस्थाओं में 1999 से अब तक शताधिक शोध पत्रों का वाचन भी किया है। आपको देश के अनेक क्षेत्रों में स्थापित विविध सात विश्वविद्यालयों के कुल दस कुलपतियों के साथ अध्यापन कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।