आज 26 जनवरी को हम अपना 71वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। 71 साल के गणतंत्र का मतलब है कि हमें प्राप्त हमारे अधिकार और संविधान भी 71 साल के हो गए हैं l आज इस गणतंत्र दिवस को गत वर्षो की भांति ही बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. समस्त देशवासियों को मेरी तरफ से भी असीम शुभकामनाएं!
इस वर्ष मुख्य अतिथि के तौर पर ब्राज़ील के राष्ट्रपति ‘ज़ेयर बोल्सोनरो’ जी पधार रहे हैं.
विदित हो की 26 जनवरी का दिन वास्तव में बड़ा ऐतिहासिक दिन है ,इस दिन को पहली बार 1930 में ‘पूर्ण स्वराज’ अर्थात दमनकारी सत्ता से मुक्ति के दिवस के रूप में मनाया गया, यही कारण है कि 26 नवंबर 1949 को संविधान को अंगीकृत करने के बावजूद भी 26 जनवरी 1950 को पूर्णतया लागू कर प्रथम गणतंत्र दिवस मनाया गया और इस प्रकार हजारों वर्ष के शोषणकारी असमानतावादी व्यवस्था को फेयरवेल देकर नए समतावादी संविधानवादी मानव मूल्य आधारित मानवतावादी समाज व्यवस्था और राष्ट्र राज्य की नींव रखी गई. सभी नागरिकों को सात सूत्रीय मौलिक अधिकारों (हालांकि अब 6 ही है-संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकारों से बाहर कर दिया गया) के साथ-साथ उनके साथ सामाजिक और आर्थिक न्याय करने की बात कही गई. यहां कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि भारत की औपनिवेशिक गुलामी से आजादी के लिए संघर्षशील सभी योद्धाओं विचारको नेताओं की सामूहिक अभिव्यक्ति " भारत के संविधान " के रूप में स्थापित की गई और इसी को हम भारत का विचार "द आइडिया ऑफ इंडिया" की संज्ञा समय-समय पर देते रहते हैं. हालांकि हमेशा से देश में जरूर एक ऐसा गुट रहा है जिसे यह साझा संस्कृति और साझा वैधानिक नियम कभी भी रास नहीं आया , यह उस समय भी द्वि-राष्ट्र सिद्धांत नस्लीय-धार्मिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और मनुवादी कानून कायदे की बात गाहे-बगाहे किया करते थे और दुर्भाग्यवश आज वही लोग सत्तासीन भी हैं. खैर छोड़िए, यह सब लौट आइए;
क्या 70 वर्ष बाद भी हम आजादी और अधिकार, सामाजिक और आर्थिक न्याय , मान-अभिमान- स्वाभिमान- सम्मान के लिए लड़ रहे हैं और इस खूबसूरत कहे जाने वाले संविधान के लागू हुए 70 वर्ष बीत जाने के बाद भी यह सवाल जीवंत है और लगातार देश के सिविल सोसायटी द्वारा समय समय पर उठाया जाता रहा. हालांकि अब तो सवाल करना भी कथित तौर पर देशद्रोह के जुर्म के समतुल्य घोषित किया जा रहा है लेकिन फिर भी मेरे हिसाब से "आपका भारत कैसा हो?" यह सवाल सिर्फ एक गणतंत्र दिवस के दिन ही नहीं बल्कि यह सवाल और ख्याल हमारे अंदर रोज़ उमड़ना चाहिए।
एक मज़बूत देश बनाने के लिए बुलंद आवाज में सवाल जरूर जरूर पूछे जाने चाहिए.
यह कैसी आजादी है जहां सवाल पूछना कथित देशद्रोह घोषित किया जा रहा हो, लगातार दलितों और अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और लिंचिंग, लूटपाट भ्रष्टाचार ,बलात्कार ,नरसंहार ,महंगाई , बेरोजगारी, आर्थिक असमानता घोर चरम पर हो अर्थव्यवस्था चरमरा गई हो और इन सब नाकामियों को छिपाने के लिए नागरिकता संशोधन कानून,एनपीआर ,एनआरसी का बखेड़ा खड़ाकर नागरिकों को उलझा देना और उस पर भी सवाल पूछने वालों पर देशद्रोह का ठप्पा लगा देना सही मायनों में आइडिया आफ इंडिया के खिलाफ है. और जिस तरह से सीएए विरोधी जन आंदोलनों को बर्बरता पूर्वक कुचला जा रहा है वह गणतंत्र विरोधी है क्योंकि ‘गणतंत्र’ का अर्थ सही मायनों में एक ऐसे राष्ट्र से है जिसकी सत्ता जनसाधारण में समाहित हो। इस तरह यह दिन प्रचलित शासन पद्धति व व्यवस्था के आकलन के पश्चात उसको सेलिब्रेट करने का दिन है। वह दिन है, जहां संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता और भारत भूमि में निहित विश्वास की परीक्षा के परिणामों को आकलन के पश्चात स्वीकार करें व आने वाले दिनों के लिए उद्देश्य तय कर उन्हें प्राप्त करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर रहे।
और अंत में बाबा नागार्जुन की कविता का एक अंश-
‘मार-पीट है, लूट-पाट है, तहस-नहस बरबादी है
ज़ोर-ज़ुल्म है,जेल-सेल है, वाह ख़ूब आज़ादी है।'
- अमित कुमार मंडल
(छात्र- राजनीतिशास्त्र विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ )